फलोदी की स्थापना सिद्धूजी कल्ला ने विक्रम संवत १५१५ मेें की थी। वे लटियाल माता के अनन्य भक्त थे। उनके फलोदी आगमन के बाद यहां लटियाल माता का मंदिर बना जो आज भी लोगों के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र है। यहां के वेदपाठियों की विद्वता के कारण फलोदी को पश्चिमी काशी नाम से भी जाना जाता है।
फलोदी की स्थापना के बाद यहां बना किला यहां के इतिहास का साक्षी है। अक्सर जोधपुर राजघराने के अधीन रहा यह किला सुरक्षा के लिहाज से अभेद्य रहा है। मुगल शासक हुमायूं के लिए जब सहयोग के सभी रास्ते बंद हो गए थे, तब जोधपुर के शासक मालदेव ने उन्हें फलोदी किले में शरण दी और सुरक्षित रखा।