शहर में ड्राई ड्रिलिंग पर प्रतिबंध है। लेकिन हकीकत यह है कि जोधपुर में उद्योगों के लिए पानी की उपलब्ध नहीं होने के कारण अवैध रूप से ड्राई ड्रिलिंग हो रही है। ऐसे में हर क्षण खदानों से निकलने वाले सिलिका के कण मजदूरों के फेफड़ों को बीमार कर रहे हैं।
सिलिकोसिस पीडि़तों की सहायता के लिए राज्य सरकार ने सहायता राशि भी तय कर रखी है। खनिज विभाग की ओर से पिछले पांच साल से यह राशि ड्रिस्ट्रिक मिनरल फाउंडेशन के तहत दी जा रही है। 24 करोड़ की राशि अब तक पांच साल में इन पीडि़तों को मुआवजे के रूप में दी गई है। इस लिहाज से एक लाख 31 हजार की राशि प्रतिदिन जोधपुर जिले में इन पीडि़तों पर खर्च होती है। यदि इतनी ही राशि को ड्राइ डिलिंग के विकल्प के रूप में खर्च किया जाता तो इस रोग से बचाव किया जा सकता था।
खान सप्ताह के तहत खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट की ओर से ऐसे विकल्प खनन क्षेत्रों में जाकर बताए जा रहे हैं। इस ट्रस्ट से जुड़े राना सेनगुप्ता ने बताया कि ड्राइ ड्रिलिंग से बचाव के लिए इस मशीन का विकल्प दिया गया है। माइनिंग विभाग के अधिकारियों ने भी यह प्रजेंटेशन देखा है। अब इसे हर खदान में लागू करने की तैयारी है।
– 11 हजार से ज्यादा सिलिकोसिस के मरीज है प्रदेश में औपचारिक रूप से।
– 16 हजार से ज्यादा संख्या जिनको चिह्नित नहीं किया गया।
– 1500 के करीब मरीज जोधपुर जिले में चिह्लित
– 12 हजार 500 खदानें हैं जोधपुर जिले में।
– 6 हजार खदानें जोधपुर शहर के आस-पास।
– 24 करोड़ का मुआवजा पांच साल में बांटा जा चुका है पांच साल में।
खान सुरक्षा सप्ताह के तहत लोगों को जागरूक कर रहे हैं। ऐसे विकल्प भी खान मजदूरों के सामने रख रहे हैं जिससे ड्राई ड्रिलिंग का विकल्प मिल सके। सिलिकोसिस को बढऩे से रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।
– श्रीकृष्ण शर्मा, माइनिंग इंजीनियर, जोधपुर