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Valentine Day Special : अनूठा प्रेमाख्यान ढोला-मारू, पढिये पूरी कहानी

Valentine Day Special : कभी तलवारों की खनक से गूंजने वाले राजपुताना (Rajasthan) के झुलसते रेगिस्तान में परवान चढ़ी 'ढोला-मारू की प्रेम गाथा में मानव हृदय के रागात्मक संबंध और प्रेम की मर्मस्पर्शी दास्तान सदियों बाद आज भी राजस्थानी गीतों-पोथियों और साहित्य में अमर है। Wold Famous प्रेम गाथाओं में शुमार Dhola-Maru की प्रेम गाथा का नायक एक ऐसा अद्वितीय प्रेमी है जिसने बचपन के अदृश्य प्रेम को पाने के लिए संघर्ष किया और मिलन के लिए कई बाधाओं को पार कर अन्तत: सुखद प्रेम की विजय पताका फहराता है।

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Valentine Day Special : अनूठा प्रेमाख्यान ढोला-मारू, पढिये पूरी कहानी

Valentine Day Special : अनूठा प्रेमाख्यान ढोला-मारू, पढिये पूरी कहानी

नंदकिशोर सारस्वत

जोधपुर (Jodhpur News)। कभी तलवारों की खनक से गूंजने वाले राजपुताना (Rajasthan) के झुलसते रेगिस्तान में परवान चढ़ी 'ढोला-मारू की प्रेम गाथा में मानव हृदय के रागात्मक संबंध और प्रेम की मर्मस्पर्शी दास्तान सदियों बाद आज भी राजस्थानी गीतों-पोथियों और साहित्य में अमर है। Wold Famous प्रेम गाथाओं में शुमार Dhola-Maru की प्रेम गाथा का नायक एक ऐसा अद्वितीय प्रेमी है जिसने बचपन के अदृश्य प्रेम को पाने के लिए संघर्ष किया और मिलन के लिए कई बाधाओं को पार कर अन्तत: सुखद प्रेम की विजय पताका फहराता है। यह किसी Bollywood फिल्म का कथानक नहीं बल्कि में नरवरगढ़ के राजा नल के पुत्र ढोला और पूंगल के राजा पिंगल की पुत्र मारू उर्फ मारवणी की प्रेम गाथा का एक अंश मात्र है।

259 साल पहले का है प्रेम काव्य

त्रिकोणीय प्रेम पर आधारित ढोला मारू का अत्यंत लोकप्रिय काव्य है जिसकी 17 से 19 वीं शताब्दी की हस्तलिखित प्रतियां जोधपुर के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में मौजूद है। इनमें बहुत से ग्रंथ तो सचित्र है। इसके नायक-नायिका भी इतने लोकप्रिय है कि वे व्यक्तिवाचक न रहकर जातिवाचक बन गए है। वस्तुत:'ढोला मारू रा दूहा राजस्थान का एक राजस्थानी प्रेमाख्यान है जिसमें राजस्थानी रहन-सहन, जीविका, आशा-आकांशा, मनोभावना के सुंदर चित्रण सहित राजस्थान की आत्मा अपने सरल एवं स्वाभाविक ढंग से झांकती दृष्टिगोचर होती है। काव्य के अधिकांश भाग में मारू के प्रेम संदेश को अधिक स्थान मिला है। प्राविप्र जोधपुर के वरिष्ठ शोध सहायक डॉ. केके सांखला के अनुसार प्रेम कथानकों पर आधारित हस्तलिखित ग्रंथों में विसं-1819 के ढोला-मारू, 1890 के फूलजी-फूलयती, 1853 के मधु-मालती, 19 वी सदी के सदैवच्छ सावलिंगा के सचित्र ग्रंथ संस्थान में मौजूद है। प्रेम की विरह गाथाओं के प्राचीन साहित्य पर अनेक शोधार्थियों की ओर से शोध प्रबंध भी प्रस्तुत किए जा चुके है।

कुरजां के माध्यम से प्रियतम को प्रेम का संदेश

पूंगल की राजकुमारी मारवणी उर्फ मारू का विवाह बचपन में ही नरवरगढ के राजा ढोला से होता है लेकिन ढोला जब युवा होता है तो उसका विवाह मालवा की राजकुमारी मालवणी से कर दिया जाता है। उधर मारू को यौवन का प्रथम बसंत झकझोरने लगता है तब वह सपने में अपने प्रियतम की मधुर छवि देखती है और उसके विरह में व्याकुल होकर कबूतर -कुरजां व अन्य पक्षियों के माध्यम से प्रियतम ढोला को प्रेम का संदेश भेजती है। लेकिन मालवणी मारू के प्रेम संदेश को ढोला तक पहुंचने से पहले ही नष्ट कर देती है। अन्त में कुछ ढाढी गायक मालवा पहुंचकर लोकगीतों के माध्यम से मारू की विरह गाथा को गायन के माध्यम से ढोला को सुनाने में सफल हो जाते हैं। मारू की विरह वेदना सुनकर ढोला तत्काल मिलने के लिए अनेक बाधाओं को पार करते हुए तीव्रगामी ऊंट पर सवार होकर पूंगलगढ़ पहुंचता है और मारू की विरह वेदना का शमन करता है। मारू के साथ नरवरगढ़ लौटने के बाद दोनों प्रेमिका पत्नियों के साथ आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।