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विजयदान देथा जब नोबल के लिए नॉमिनेट हुए

locationजोधपुरPublished: Nov 10, 2019 09:26:14 pm

Submitted by:

M I Zahir

जोधपुर राजस्थानी के मशहूर साहित्यकार ( Rajasthani writer ) विजयदान देथा ( Vijayadan Detha ) का नोबल पुरस्कार ( Nobel Prize ) के लिए नॉमिनेट हुए थे। उस समय पत्रिका ने उन्हें बताया था कि उन्हें नोबल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया है। अमरीकी महिला क्रिस्टी ए मेरिल ( Christie A. Merrill ) व उनके पुत्र कैलाश कबीर ( Kailash Kabir ) ने अंग्रेजी में चौबोली एंड अदर स्टोरीज नाम से अनुवाद प्रकाशन किया, जिसमें उनकी चुनिंदा 20-20 कहानियां शामिल थीं।उनसे जुड़ा एक संस्मरण :

Vijayadan Detha when nominated for Nobel Prize

Vijayadan Detha when nominated for Nobel Prize

एम आई जाहिर ( m i zahir ) / जोधपुर. विजयदान देथा ( Vijayadan Detha ) राजस्थानी ( Rajasthani writer ) व हिन्दी ही नहीं, फिक्शन के निमित्त पूरे भारतीय साहित्य में विशिष्ट पहचान रखते हैं। कई भाषाओं के साहित्यकार व प्रकाशक केवल उनसे मिलने के लिए जोधपुर आते थे और यहां से बोरुंदा तक का सफर करते थे।
यह 4 अक्टूबर 2011 की बात है, जब अपने प्रशंसकों और प्रियजनों के बीच बिज्जी के नाम से लोकप्रिय राजस्थानी भाषा के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथाकार विजयदान देथा के नाम की साहित्य के सर्वोच्च सम्मान नोबल पुरस्कार ( Nobel Prize ) के लिए अनुशंसा की गई। इस पुरस्कार के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें राजस्थान पत्रिका के जोधपुर संवाददाता को दूरभाष पर वार्ता में यह बात बताई थी। बिज्जी उस दिन अपने घर बोरूंदा ( जोधपुर ) में ही थे। उन्हें सुनने में दिक्कत थी, पत्रिका संवाददाता ने उन्हें बताया कि उनका नॉमिनेशन हुआ है, तब बिज्जी ने कुछ सोचते हुए कहा था- मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि यह अनुशंसा किसने की है, वैसे जहां तक मुझे पता है-नोबल अवार्ड के लिए कोई आवेदन नहीं किया जाता है, इसके लिए साहित्य अकादमी, संस्कृति विभाग या शिक्षा विभाग अनुशंसा करता है। वो बोले थे- कथा प्रकाशन ने मेरी कहानियों का अंग्रेजी में चौबोली एंड अदर स्टोरीज ( Chauboli ) नाम से प्रकाशन किया है, प्रकाशक ने इसका हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित किया है, जिसमें मेरी चुनिंदा 20-20 कहानियां शामिल की गई हैं, यह किताब अमरीका के विश्वविद्यालय की एक महिला क्रिस्टी ए मेरिल ( Christie A. Merrill ) व मेरे पुत्र कैलाश कबीर ( Kailash Kabir ) ने छह महीने तक बोरूंदा में रह कर इसका अनुवाद किया, हो सकता है कि उसे आधार बना कर अनुशंसा की गई हो, लेकिन मैं सही-सही कुछ नहीं बता सकता।
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