scriptजहां जंग-ए-आजादी के 32 सिपाहियों की दी गई यातना वो जगह आज भी है वीरान | Where the torture of 32 soldiers of Jung-e-Azadi was still deserted. | Patrika News

जहां जंग-ए-आजादी के 32 सिपाहियों की दी गई यातना वो जगह आज भी है वीरान

locationजोधपुरPublished: Aug 14, 2020 11:28:10 pm

Submitted by:

Nandkishor Sharma

 
– जोधपुर के माचिया किले में कीर्ति स्तंभ दुर्दशा का शिकार
– 21 साल पहले सीएम अशोक गहलोत ने स्वतंत्रता सेनानियों की याद में किया था लोकार्पण

जहां जंग-ए-आजादी के 32 सिपाहियों की दी गई यातना वो जगह आज भी है वीरान

जहां जंग-ए-आजादी के 32 सिपाहियों की दी गई यातना वो जगह आज भी है वीरान

जोधपुर. अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई में वतनपरस्तों के कैदखाने के तौर पर जंगी हौसलों का गवाह रहा जोधपुर का ऐतिहासिक माचिया किला 73 साल बाद भी वीरान है। माचिया किले में दिसम्बर 1942 से अगस्त 1943 करीब 8 माह तक 32 स्वतंत्रता सेनानियों को नजरबंद रखा गया था। अगस्त 1943 में भारी वर्षा के कारण किले की चहार दीवारी ढहने के बाद सभी बंदियों को बिजोलाई शिफ्ट किया गया। उस समय जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह व अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि के रूप में डोनाल्ड फील्ड अधिकारी थे। वर्तमान में माचिया ऐतिहासिक किला जंगे आजादी के परवानों की तरह विसरा देने के बाद पूरी तरह वीरानी और गुमनामी के अंधरे में डूब चुका है। आजादी के बाद कई वर्षों तक लोगों का बेरोकटोक आना रहा लेकिन 1 जुलाई 1990 में माचिया वन खंड को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के बाद आम जनता के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
21 साल पहले अशोक गहलोत ने किया था लोकार्पण
स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए आजादी के स्वर्ण जयंती वर्ष के दौरान 15 अप्रेल 1999 में अशोक गहलोत ने कीर्ति स्तंभ का लोकर्पण किया था। कीर्ति स्तंभ पर जमी मिट्टी की परत को जोधपुर की एक स्वयंसेवी संस्था को साल में दो बार (15 अगस्त व 26 जनवरी) कार्यक्रम मे लिए वनविभाग के अधिकारियों की विशेष अनुमति लेकर साफ करना पड़ता है। कीर्ति स्तंभ के दांए-बांए और पीछे की तरफ उन क्रांतिकारियों के नाम उत्कीर्ण है जिन्हें सात माह तक माचिया किले में बंदी रखा गया था।
यह थे माचिया किले में नजरबंद स्वतंत्रता सेनानी

दिसम्बर की भीषण सर्दी में जंगली सुअरो और वन्यजीवों के बीच किले में रखना किसी भयानक यातना से कम नहीं था। यातना सहने वालों में जंगे आजादी के सिपाही रणछोड़दास गट्टानी, राधाकृष्ण बोहरा तात, भंवरलाल सर्राफ, तारकप्रसाद व्यास, शांति प्रसाद व्यास , गणेशचन्द्र जोशी, मौलाना अतहर मोहम्मद, बालकृष्ण व्यास, पुरुषोत्तमदास नैयर, नरसिंगदास लूंकड़, हुकमराज मेहता, द्वारकादास पुरोहित, माधोप्रसाद व्यास, कालूराम मूंदड़ा, गोपाल मराठा, पुरुषोत्तम जोशी, मूलराज घेरवानी, गंगादास व्यास, हरिन्द्र कुमार शास्त्री, इन्द्रमल फोफलिया, छगनलाल पुरोहित, श्रीकृष्ण कल्ला, तुलसीदास राठी,(सभी जोधपुर ) शिवलाल दवे नागौर, देवकृष्ण थानवी, गोपाल प्रसाद पुरोहित, संपतलाल लूंकड़,सभी फलोदी, भंवरलाल सेवग पीपाड़, हरिभाई किंकर, मीठालाल त्रिवेदी सोजत, शांति प्रसाद व्यास, अचलेश्वर प्रसाद शर्मा मामा, बालमुकुंद बिस्सा, जोरावरमल बोड़ा आदि शामिल थे।
विरासत का आमजन के लिए खोलने की मांग लंबे अर्से से

किले में जिन 32 स्वतंत्रता सेनानियों को कैद में रखा गया वहां का अधिकांश हिस्सा खण्डहर में तब्दील हो चुका है। देश आजाद होने के बाद छह दशकों तक गुमनाम रहे माचिया किले को राजस्थान पत्रिका ने वर्ष 2015 में पुन: प्रकाश में लाने का प्रयास किया। आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान समिति ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के सहयोग से माचिया किले में नजरबंद रहे स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें लगाई गई है।
रामजी व्यास, अध्यक्ष, आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान समिति जोधपुर

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