18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Good News For Farmers: वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए गेहूं और सरसों की नई प्रजाति की विकसित, कम समय होगी अधिक पैदावार

सीएसए कानपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने गेहू, सरसों और अलसी की नई प्रजातियां विकसित की हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ इन फसलों को खेतों में बुवाई के बाद किसानों को बेहद लाभ होगा। कम समय में अच्छी पैदावार होगी, इसके अलावा फसल रोगों से भी राहत मिलेगी।

2 min read
Google source verification
wheat crop fired

wheat crop fired

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
कानपुर. सीएसए विश्वविद्यालय (CSA Kanpur) के वैज्ञानिकों ने किसानों को गेहूं, सरसों और अलसी की नई प्रजातियों के रूप में फिर से सौगात दी है। इन प्रजातियों की फसलों को करने पर किसानों को बड़ा मुनाफा होगा। वैज्ञानिकों (Agriculture Scientist) ने इन किस्मों को विकसित कर बताया कि नई प्रजातियां फसल को रोगों से बचाने के साथ-साथ प्रदेश की जलवायु के अनुकूल हैं। कुलपति डॉ. डीआर सिंह ने बताया इससे किसानों को लाभ ही लाभ है।

बुवाई के लिए राज्य बीज विमोचन समिति लखनऊ ने दी मान्यता

उन्होंने कहा कि गेहूं की के-1711, सरसों की केएमआरएल 15-6 (आजाद गौरव) और अलसी की एलसीके-1516 (आजाद प्रज्ञा) प्रजाति विकसित की गई हैं। ये प्रजातियां कम समय में अच्छी पैदावार देंगी। प्रदेश में इन प्रजातियों को बोने के लिए राज्य बीज विमोचन समिति लखनऊ ने मान्यता दे दी है। कुलपति, निदेशक शोध डॉ. एचजी प्रकाश, संयुक्त निदेशक शोध डॉ. एसके विश्वास ने वैज्ञानिकों को बधाई दी है।

इस 1711 प्रजाति में रस्ट व पत्ती झुलसा रोग नहीं लगता

इस प्रजाति को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. सोमबीर सिंह ने बताया कि प्रदेश के ऊसर प्रभावित क्षेत्रों के लिए यह प्रजाति तैयार की गई है। इसका उत्पादन 38 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह प्रजाति 125 से 129 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसमें प्रोटीन 13 से 14 प्रतिशत पाया जाता है जो अन्य प्रजातियों की तुलना में अधिक है। इस प्रजाति में रस्ट और पत्ती झुलसा रोग भी नहीं लगता है।

इसकी फसल 128 दिन में हो जाती तैयार

सरसों के आजाद गौरव प्रजाति को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. महक सिंह ने बताया कि इस प्रजाति की अति देरी की दशा में 20 नवंबर से 30 नवंबर तक बुआई की जा सकती है। साथ ही यह 120 से 125 दिनों में पककर तैयार होती है। उत्पादन क्षमता 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 39 से 40 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि इसका दाना मोटा है। अन्य प्रजातियों की तुलना में इसमें कीड़े और रोग कम लगते हैं। कोहरे से भी काफी हद तक यह प्रजाति बची रहती है। 128 दिनों में तैयार हो जाती है।

सिंचित क्षेत्रों के लिए यह प्रजाति की गई विकसित

आजाद प्रज्ञा अलसी की इस प्रजाति को विकसित करने वाली वैज्ञानिक डॉ. नलिनी तिवारी ने बताया कि प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए यह प्रजाति विकसित की गई है। इसकी उपज 20 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और 128 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। तेल की मात्रा 35 प्रतिशत है जो अन्य की तुलना में 11.22 प्रतिशत अधिक है। यह प्रजाति रोग और कीटों के प्रति सहनशील है।