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‘प्रधानमंत्री से करते हैं नफरत, भारतीयों के लिए पाकिस्तानियों के पास नहीं है रहम’

पाकिस्तानी हमारे देश के पीएम नरेंद्र से इस कदर नफरत करते हैं कि न से शुरू होने वाले भारतीय कैदी को हर रोज पेड़ पर बांधकर कोड़ों से पीटते है

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Ruchi Sharma

Jan 01, 2017

कानपुर. पाकिस्तानी हमारे देश के पीएम नरेंद्र से इस कदर नफरत करते हैं कि न से शुरू होने वाले भारतीय कैदी को हर रोज पेड़ पर बांधकर कोड़ों से पीटते है। गंदी-गंदी गालियां देने के बाद बैलों की तरह काम लेते देते। पाकिस्तानी आवाम से लेकर जेलर, सिपाही, सेना के जवान के साथ ब्यूरोकेट्स तक हमारे वतन से नफरत करता है। वह लोग पाक जेल में हर भारत के बंदी को खाने, पीने का पानी पर नजर रखते हैं। इतना ही नहीं जो पाकिस्तानी जेल का सिपाही भारतीय कैदी को जितनी बेदर्दी से पीटता है उसे पाकिस्तानी अफसर उतने पैसे देते हैं। पाकिस्तानी भारत के लोगों से इस कदर नफरत करते हैं कि अगर कोई देख ले तो उसकी रुह कांप जाएगी। यह बात पाक जेल से रिहा होकर शनिवार को घाटमपुर तहसील के मोहम्मदपुर निवासी पहुंचे मछुआरे रविशंकर गौड़, जयचंद्र गौड़ और संजय ने पत्रिका संवाददाता से फोन पर बातचीत के दौरान कही।

इंदिरा गांधी व मोदी को मानते हैं विलेन

संजय कुरील ने बताया कि पाकिस्तानी अफसर हमारे देश के पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी को विलेन मानते हैं। पाकिस्तान की मलीर लांघी जेल के जेलर, सिपाही और बंद अन्य बंदी हमारे सामने इन्हें अपशब्द कहते थे। इतना ही नहीं जेल में हर माह सेना के साथ ही सिविल के अफसर आते रहते हैं और भारतीय बंदी से अपने बूटों में पॉलिस करवाते हैं। नानुकुर करने पर लम्बरदारों से जमकर पिटवाते हैं। बताया, आठ माह पहले सेना का एक अफसर जेल आया और हमारे देश के पीएम के बारे में गलत बयानबाजी करने लगा तो मैने उसे हंसकर कह दिया कि साहब मोदी जी का इतना क्रेज है कि हरदिन हर पाकिस्तानी उनका नाम लेकर जगता और सोता है। जिस पर उसने मुझे दो दिन तक खाने और पीने पर रोक लगा दी थी ।

एक को लगी थी गोली, 27 को अरेस्ट कर ले गए थे फौजी

मोहम्मदपुर गांव निवासी रविशंकर गौड़, जयचंद्र गौड़ और संजय कुरील बीते वर्ष 15 अक्तूबर 2015 को गुजरात के ओखा समुद्री तट पर मछली का शिकार करते समय अन्य 27 भारतीय मछुआरों के साथ पाक जल सेना के हत्थे चढ़ गए थे। जेल से रिहा होकर इपने घर लौटो तीनों मछुआरों ने बताया कि घटना वाले दिन वह लोग अनजाने में भारतीय जल सीमा से 8 किमी भीतर (पाक सीमा) पर चले गए थे। तभी, अचानक फायरिंग शुरू हो गई और देखा तो उनकी नावें चारों ओर से घिरी हुई थी। फायरिंग में गुजरात के धनकी नामक मछुआरे को दो गोलियां लगी थीं। ऊपर वाले का शुक्र है कि हम पर गोलियां नहीं लगीं।

दिनभर करवाते थे काम, देते थे पांच रोटी

मलीर लांघी जेल के अनुभव बताते जयचंद्र रो पढ़े। आंख से आंसू छलकते हुए जयचंद्र ने बताया कि खाने में दिनभर में सिर्फ पांच रोटियां मिलती थीं। इनमें एक रोटी सुबह और दो-दो दोपहर और रात को दी जाती थीं। साथ में तीन दिन दाल और तीन दिन मीट जबकि, रविवार की रात चावल भी मिलता था। ज्यादा खाना मांगने पर पाकिस्तानी सैनिक पीटने लगते थे और गंदी गालियां भी बकते थे। युवकों ने बताया कि आखिरकार जेल-जेल ही होती है। वह भी शत्रु देश में अपनों और अपने मुल्क से दूर। बताया कि मलीर लांघी जेल में कुल 439 मछुआरे बंद थे इनमें कोई न कोई अपनों और वतन की याद में रोता ही मिलता था। ऐसी स्थिति में हमलोग आपस में एक-दूसरे को दिलासा देकर उसका दुख-दर्द बंटाने की कोशिश जरूर करते थे।

तीनों ने नौ हजार रुपए कमाए

संजय ने बताया कि जेल के कुछ गार्डों और अधिकारी किसी कैदी के घर से पत्र का उत्तर आने पर लिफाफे में निकलने वाले रुपये और फोटो आदि जब्त करके अपने पास रख लेते थे। दुश्मन देश की जेल में बंद होने के बावजूद भी युवकों ने अपनी कला के जरिए दो पैसे कमाए।

उसकी कुछ बानगी निशानी के तौर पर वह अपने साथ भी लाए हैं। युवकों ने बताया कि जेल में वह लोग नकली मूंगे-मोतियों से सजावट के सामान के साथ ही डिजा?नदार पेन, अंगूठी, गले में पहनने वाले हार (माला), हेयर पिन और बैंड के अलावा छोटे बच्चों के लिए जूतियां बनाकर चार पैसे भी कमाते थे। बताया कि वहां तिरंगा कलर का सामान बनाने में मनाही थी। बताया कि हुनर के बदौलत वह एक दिन में डेढ़ हजार रुपये तक कमा लेते थे। जेल से रिहा होने के समय उनको तीन-तीन हजार रुपये (पाकिस्तानी मुद्रा) मिली थी जिसकों बाघा बार्डर पर पहुंचते ही भारतीय मुद्रा में चेंज करवा लिया।