बढ़ रहा प्रदूषण
डीजल गाडिय़ों का धुंआ और खुदाई के चलते उडऩे वाली धूल से हवा खराब हो चुकी है। गाडिय़ों से निकलने वाली सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड ने हवा को सांस लेने लायक भी नहीं छोड़ा। शहर के लोगों को दमा के साथ सीओपीडी का भी शिकार होना पड़ रहा है।
डीजल गाडिय़ों का धुंआ और खुदाई के चलते उडऩे वाली धूल से हवा खराब हो चुकी है। गाडिय़ों से निकलने वाली सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड ने हवा को सांस लेने लायक भी नहीं छोड़ा। शहर के लोगों को दमा के साथ सीओपीडी का भी शिकार होना पड़ रहा है।
क्या है सीओपीडी
क्रॉनिक अब्सट्रिक्टिव पल्मनरी डिजीज यानि सीओपीडी फेफड़े से संबंधित रोगों का समूह है। यह रोग सांसों में दिक्कत पैदा करता है। यह बीमारी अचानक नहीं होती, बल्कि कई वर्षो में विकसित होती है। कई बार शुरुआती लक्षणों में बीमारी का एहसास नहीं हो पाता है। इसमें साँस की नलियाँ सिकुड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है। यह सूजन निरंतर बढ़ती रहती है जिससे आगे चलकर फेफड़े छलनी हो जाते हैं। इसे एम्फायसेमा कहते हैं। यह बीमारी साँस में रुकावट से शुरू होती है और धीरे-धीरे साँस लेने में मुश्किल होने लगती है। अगर समय पर इलाज नहीं मिला तो फेफड़े खराब होने लगते हैं। यह स्थिति जानलेवा बन जाती है।
काले पड़ रहे फेफड़े
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसके कटियार ने बताया है कि ज्यादातर लोगों के फेफड़ों की जांच में सामने आया है कि उसका कलर गुलाबी की जगह काला पड़ रहा है। प्रदूषण की वजह से दमा और सीओपीडी के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि दमा और सीओपीडी के मरीजों का पल्मनरी फंक्शन टेस्ट कराया जाना चाहिए। इससे श्वसन तंत्र मजबूत होता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता पता लग जाती है।
क्रॉनिक अब्सट्रिक्टिव पल्मनरी डिजीज यानि सीओपीडी फेफड़े से संबंधित रोगों का समूह है। यह रोग सांसों में दिक्कत पैदा करता है। यह बीमारी अचानक नहीं होती, बल्कि कई वर्षो में विकसित होती है। कई बार शुरुआती लक्षणों में बीमारी का एहसास नहीं हो पाता है। इसमें साँस की नलियाँ सिकुड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है। यह सूजन निरंतर बढ़ती रहती है जिससे आगे चलकर फेफड़े छलनी हो जाते हैं। इसे एम्फायसेमा कहते हैं। यह बीमारी साँस में रुकावट से शुरू होती है और धीरे-धीरे साँस लेने में मुश्किल होने लगती है। अगर समय पर इलाज नहीं मिला तो फेफड़े खराब होने लगते हैं। यह स्थिति जानलेवा बन जाती है।
काले पड़ रहे फेफड़े
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसके कटियार ने बताया है कि ज्यादातर लोगों के फेफड़ों की जांच में सामने आया है कि उसका कलर गुलाबी की जगह काला पड़ रहा है। प्रदूषण की वजह से दमा और सीओपीडी के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि दमा और सीओपीडी के मरीजों का पल्मनरी फंक्शन टेस्ट कराया जाना चाहिए। इससे श्वसन तंत्र मजबूत होता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता पता लग जाती है।
फेफड़ों का विकास हो रहा बाधित
प्रदूषण का ज्यादा असर किशोर उम्र के लोगों पर पड़ रहा है। १७ साल तक की उम्र तक फेफड़ों का विकास होता है, लेकिन प्रदूषण की वजह से यह बाधित हो रहा है। विदेशों के मुकाबले वैसे भी देश के लोगों में फेफड़ों की क्षमता कम है, उस पर प्रदूषित हवा इन्हें और कमजोर बना रही है।
प्रदूषण का ज्यादा असर किशोर उम्र के लोगों पर पड़ रहा है। १७ साल तक की उम्र तक फेफड़ों का विकास होता है, लेकिन प्रदूषण की वजह से यह बाधित हो रहा है। विदेशों के मुकाबले वैसे भी देश के लोगों में फेफड़ों की क्षमता कम है, उस पर प्रदूषित हवा इन्हें और कमजोर बना रही है।
दिल दिमाग और लिवर को नुकसान
पहले २.५ आरएसपीएम को खतरनाक माना जाता था। मगर अब ज्यादा प्रदूषण से लोगों के फेफड़ों में अल्ट्राफाइन कण जा रहे हैं। यह कण लोगों के खून के सहारे दिल, दिमाग और लिवर को भी जख्मी कर रहे हैं, जिससे शरीर के इन अंगों को भी नुकसान पहुंच रहा है और वे कमजोर हो रहे हैं।
पहले २.५ आरएसपीएम को खतरनाक माना जाता था। मगर अब ज्यादा प्रदूषण से लोगों के फेफड़ों में अल्ट्राफाइन कण जा रहे हैं। यह कण लोगों के खून के सहारे दिल, दिमाग और लिवर को भी जख्मी कर रहे हैं, जिससे शरीर के इन अंगों को भी नुकसान पहुंच रहा है और वे कमजोर हो रहे हैं।