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6 महीने से नहीं चलीं बसें, मालिक बने कर्जदार, एजेंट ने बदले काम, सरकार से लगाई मदद की गुहार

कोरोना महामारी के बीच यात्री बसों का संचालन पूरी तरह से बंद है। सरकार की ओर से पूर्व में मिली छूट के बाद भी सवारियां नहीं मिलने के कारण मालिक बस चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

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6 महीने से नहीं चलीं बसें, मालिक बने कर्जदार, एजेंट ने बदले काम, सरकार से लगाई मदद की गुहार

6 महीने से नहीं चलीं बसें, मालिक बने कर्जदार, एजेंट ने बदले काम, सरकार से लगाई मदद की गुहार

कवर्धा. कोरोना महामारी के बीच यात्री बसों का संचालन पूरी तरह से बंद है। सरकार की ओर से पूर्व में मिली छूट के बाद भी सवारियां नहीं मिलने के कारण मालिक बस चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। वहीं इनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो चुकी है। कबीरधाम जिले में 132 बसें रजिस्टर्ड हैं। इनमें 89 बसे ही चलती हंै वह भी 23 मार्च से कोरोना काल के चलते खड़ी है। इससे बस संचालकों को रोजाना ही 10 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है। अब शासन की ओर से बस संचालन की अनुमति मिल चुकी है लेकिन कर्ज में दबे ऑपरेटर और एजेंट हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। बस संचालकों की पीड़ा है कि बसें नहीं चलने के बाद भी राज्य सरकार को हर महीने अग्रिम रोड टैक्स और परमिट का टैक्स भरना पड़ता है। हालांकि सरकार की ओर से अभी जुलाई और अगस्त का छूट मिला, लेकिन अब सितंबर का टैक्स ऑनलाइन पेंमेंट करना होगा। मतलब बिना कमाई ही टैक्स की भरपाई करनी होगी।

बस एजेंट: कोई वेल्डिंग कर रहा तो कोई ई-रिक्शा चला रहा
कवर्धा में मात्र बस 3 ऑपरेटर हैं जबकि बाकी बसों का संचालन एजेंट के माध्यम से होता है। छह माह से बस नहीं चलने से एजेंटों की स्थिति खराब हो चुकी है। अधिकतर एजेंट अपना काम बदल रहे हैं। बस एजेंट विजय सिंह बिल्डिंग मटेरियल दुकान खोल चुके हैं। वहीं शकील खान और परवेज खान वेल्डिंग दुकान, रोजदार खान चुड़ी दुकान, रितेश श्रीवास्तव बीमा एजेंट, पप्पु कुर्रे ई-रिक्शा चालक का काम कर रहे हैं जबकि अधिक एजेंट बेरोजगार हैं।

के-एम फार्म भरने की अनुमति मांगी
बस मुंशी पदाधिकारियों ने बताया कि सितंबर से सामान्य दिनों की तरह सभी बसों का टैक्स भरना पड़ेगा। जबकि आलम यह है कि सभी बसें बंद हैं। ऐसे में सरकार को के और एम फ ॉर्म के तहत परमिट सरेंडर करने की अनुमति देनी चाहिए। के फ ार्म के माध्यम से बस के कागजातों को दो महीने के अग्रिम टैक्स के साथ आरटीओ विभाग में जमा कर दिया जाता है। इससे बसों को निष्प्रयोज्य मानते हुए उस पर टैक्स माफ हो जाता है।

यात्री बसों के फाइनेंस के चलते खड़ी बसों पर भी 60 हजार से अधिक खर्च होगा। बस एजेंट के अनुसार एक बस का ईएमआई 40 हजार रुपए और बीमा का सालाना एक लाख रुपए के हिसाब से महीने का 8500 होगा। इसके अलावा मेंटेनेंस खर्च। इस तरह एक खड़ी बस पर भी मालिकों को 60 हजार रुपए से अधिक खर्च आ रहा है।

बसों की किस्त जमा करने पर अगस्त तक रोक लगी है। फिर सितंबर से किस्त देनी होगी। बस मालिक और एजेंट चिंतित हैं कि वह सितंबर से किस्त के रुपए कहां से लाएंगे। बस एजेंट का कहना है कि बसों को चलाने की कोशिश भी करेंगे तो एक बस को रोड पर चलाने के लिए टैक्स सहित एक लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे।

आर्थिक रूप से परेशान बस मुंशी संघ सोमवार को कलेक्टर से मिलने पहुंचे। उन्होंने बताया कि वह बसें नहीं चलने के कारण छह माह से बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। इसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। उन्होंने जिला प्रशासन से आर्थिक सहायता की मांग रखी।