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History of khalwa – तराई क्षेत्र में बसे होने के कारण खालवा पड़ा नाम

कोरकू भाषा में निचले स्थल को खाल कहा जाता है

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renuka mata tample

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खालवा. मांजरी नदी के तट पर बसे खालवा का इतिहास लगभग 136 वर्ष पुराना है। वर्तमान में 3 वर्ग किलोमीटर में फैला 9775 की आबादी वाले खालवा ग्राम को अंग्रेजों के शासनकाल में सन 1884 में गुजराती मूल के ब्राह्मण टोडरमल पटेल के द्वारा 4 - 5 टप्परों के साथ बसाया गया था। उक्त जानकारी देते हुए ग्राम के संजय पटेल ने बताया कि जब उनके परदादा टोडरमल पटेल एवं उनके भाई विनायकराव अंग्रेजों के जमाने में मालगुजारी के तहत हरदा जिले के हीरापुर से यहां आए तब खालवा बियावान जंगल था।

बुजुर्गों के बताए अनुसार यहां शेरों की दहाड़ सुनाई दिया करती थी, गांव बसाने के लिए आसपास के गांवों से कुछ आदिवासी परिवार व होशंगाबाद जिले से मिस्त्री, सिलावट, कुम्हार, लोहार सहित अन्य समाजों को धीरे-धीरे यहां बुलाकर बसाया गया। टोडरमल पटेल पढ़े-लिखे विद्वान व लोकलवाडी के सदस्य थे, उनके प्रयासों से पुलिस थाना एवं वन विभाग का कार्यालय जो ग्राम जामधड़ में था उसे खालवा सिप्ट करवाया गया। धीरे-धीरे स्कूल सहित अन्य कार्यालय खुलते गए और खालवा का आकार बढ़ता गया।

ऐसे पड़ा खालवा नाम
ग्राम की 85 वर्षीय वृद्धा विमलाबाई दुबे ने बताया कि कोरकू बोली में निचली जगह या गड्डे को "खाल" कहा जाता है इसी से यहां नदी के किनारे निचली जगह में हुई बसाहट को "खालवा" नाम दिया गया।

यहां के प्राचीन स्थल
मांजरी नदी के किनारे प्राचीन शिव मंदिर है, जहां शिवलिंग, माता पार्वती, भगवान गणेश व नंदी की प्राचीन मूर्तियां विराजमान हैं। चिमटा वाले बाबा की मढिय़ा का दूर-दूर तक ख्याति है।

ख्याति प्राप्त रेणुका माता का मंदिर
खालवा स्थित मां रेणुका देवी के प्राचीन कालीन मंदिर में पत्थरों पर नक्काशीदार खुदाई कर सुंदर चित्रकारी एवं मूर्तियां देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने समय में मंदिर की सुंदरता एवं भव्यता कैसी रही होगी। वैसे तो हमेशा ही मंदिर में भक्तों की आवाजाही लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के समय दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से प्रार्थना कर मंदिर परिसर में पत्थरों से घर की आकृति बनाता है तो भगवती जल्दी उसके घर बनाने मनोकामना पूरी करती हैं। मंदिर के चारों ओर फैले नक्काशी दार पत्थर गुंबद एवं खंडित मूर्तियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मुगल काल में किसी कू्रर शासक के द्वारा मंदिर में तोडफ़ोड़ की गई है। ग्रामीणों की हमेशा से मांग रही है कि पुरातत्व विभाग प्राचीन मंदिर को संरक्षित करे।