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जानिए… भारत का भविष्य है यह गोवंश, जिसे आप सड़क पर दुत्कारते हैं

यह कुदरत का करिश्मा है कि भारत में गिर, थारपारकर, साहीवाल नस्ल के गोवंश का पालन हो रहा है। देसी नस्ल की गायों को विदेशी ले गए।

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कोटा

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Zuber Khan

Dec 17, 2017

Animal husbandry management

कोटा . हमने देसी गोवंश की कद्र नहीं की, इसे न खाने को चारा दिया न रख-रखाव पर ध्यान। उसकी संतान के हिस्से का दूध भी हम पी गए। पंजाब के जालंधर जिले के नूरमहल में कामधेनु आधुनिक गोशाला संचालक संत चिन्मयानंद ने यह बात शनिवार को 'पत्रिका' से विशेष बातचीत में कही।

करीब दो दशक से सिर्फ देशी गायों के नस्ल सुधार, पालन प्रबंधन पर काम कर रहे संत चिन्मयानंद दो दिवसीय प्रवास पर कोटा आए। उन्होंने यहां भामाशाह मंडी क्षेत्र में संचालित सीमन बैंक का जायजा लिया। साथ ही बैंक के निदेशक सुरज्ञान गुप्ता से देसी गायों के सुधार पर चर्चा की।

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विदेशी से बेहतर नस्ल है देसी गोवंश

चिन्मयानंद ने कहा कि यह कुदरत का करिश्मा ही है कि भारत में गिर, थारपारकर, साहीवाल आदि नस्ल के गोवंश का पालन हो रहा है। कई सालों पहले देसी नस्ल की गायों को विदेशी ले गए। क्रॉस ब्रिड कराकर एचएफ, हॉलीस्टन आदि नस्ल तैयार की। इससे दूध उत्पादन क्षमता तो बढ़ गई, लेकिन गुणवत्ता कमजोर हो गई। उन्हीं नस्लों को भारत में लाया गया तो यहां के लोगों ने देसी की अपेक्षा विदेशी गायों की दूध उत्पादन अधिक होने पर उसे स्वीकार कर लिया।

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अब समझ रहे हैं लोग

सीमन बैंक संचालक सुरज्ञान गुप्ता ने बताया कि देसी गोवंश के पालन, प्रबंधन पर अब लोग जागरूक होने लगे हैं। १९९० के बाद से एकदम से कृषि कार्य में मशीनरी का अंधाधुंध उपयोग होने लगा। किसानों की पशुओं पर निर्भरता खत्म होने लगी तो उन्होंने गोवंश पालना कम किया। जो मवेशी उनके पास थे, उन्हें लावारिस छोडऩा शुरू किया। अब लोग दुबारा से गोवंश पालन को जागरूक होने लगे हैं। प्रदेश में कई गोशालाओं में नस्ल सुधार किया जा रहा है। शेखावाटी, मारवाड़, वागड़ में गिर, थारपारकर, साहीवाल आदि गायों के सीमन का उपयोग किया जा रहा है। धीरे-धीरे पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश में भी कोटा से सीमन की मांग बढऩे लगी है।