
Big Issue : पानी के रास्तों पर बस गई बस्तियां, अब इस जलभराव के जिम्मेदार कौन ?
के.आर. मुण्डियार
लगातार भारी बरसात के कारण पूरा हाड़ौती 'पानी-पानी' है। कोटा व बारां जिले में दर्जनों गांव टापू बन गए हैं। नावें चलाकर लोगों को रेस्क्यू किया जा रहा है। बरसात ने प्रशासन व स्थानीय निकायों की व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। ऐसी पोल हर साल खुल रही है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर हमारे गांव व शहरों में ऐसे हालात क्यों बनने लगे।
यह साफ है कि हाड़ौती में भारी बरसात पहली बार नहीं हो रही। यहां के लोगों ने भारी बरसात कई बार देखी और झेली है। हाड़ौती के लोग तो आपदा से निपटना भी जानते हैं। तीन दशक पहले तक कहीं पर अधिक बरसात के बावजूद जनजीवन खतरे में नहीं पड़ता था। बीते दशकों में ही लगातार शहरीकरण बढऩे के साथ ही रास्तों, नदी-नालों के किनारे बसी बस्तियों के कारण जलप्लावन का खतरा अधिक बढ़ गया है। अब औसत से कम बरसात में ही हालात विकट हो रहे हैं।
सवाल है कि ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार कौन है? बरसाती पानी के आवक व रास्तों पर बस्तियां किसने व क्यों बसने दी। नालों व तालाब की जमीनों पर अवैध मकान कैसे बन गए? जब अवैध बस्तियां बस रही थी, तब नेता और अफसर क्या कर रहे थे। आज हालात बिगड़ रहे हैं तो सरकार को ही कोसा जा रहा है। लेकिन ऐसे हालात क्यों बने, उस पर किसी का ध्यान नहीं है। किसी भी शहर व कस्बों में बरसाती पानी की निकासी सुगम नहीं है। बरसात से पहले नालों व नालियों की सफाई भी कागजों में ही पूरी हो जाती है। यही वजह है कि हर साल बरसात के दौरान कोटा व बारां शहर के कई क्षेत्रों में जल भराव की स्थिति बन जाती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनेताओं के संरक्षण के बिना नालों-तालाबों व कृषि भूमि पर अव्यवस्थित बस्तियां बस नहीं सकती। अवैध बस्तियों पर प्रभावी कार्रवाई करके देख लीजिए। अफसरों को ही बैकफुट पर आना पड़ेगा। 'नेतागिरी' के कारण ही आज हाड़ौती के शहरों व गांवों में बरसात के समय हालात बिगड़ रहे हैं। यदि हमें अपने शहर व गांवों को बड़ी आपदा से बचाना है तो सबसे पहले तो नेताओं का दखल बंद करना होगा। फिर बरसाती पानी के बहाव क्षेत्र की बाधाएं हटानी होगी। नालों व नदियों के तटों को अतिक्रमण से मुक्त करना होगा। निडर अफसरों को सख्त निर्णय भी करने पड़ेंगे। तब ही हमारे शहर व गांव सुरक्षित रह पाएंगे।
Published on:
05 Aug 2021 12:13 am
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