9 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

न कभी स्कूल देखा, न चढ़ी कॉलेज की सीढ़ियां और ऐसे बन गए कम्प्यूटर प्रोग्रामर, बैसाखी के सहारे रहा पूरा जीवन

Inspirational Story Of Disable Persons: परिवार का साथ मिला तो मुकेश ने खुद का हौसला कम नहीं होने दिया। धैर्य की बैसाखी के दम पर वाणिज्यिक कर विभाग में तकनीकी निदेशक के पद पर पहुंच गए। मुकेश ने बताया कि वे बचपन से पोलियो ग्रसित हैं।

4 min read
Google source verification

कोटा

image

Akshita Deora

Dec 03, 2024

International Disabled Day Special: शिक्षा नगरी कोटा में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने विकट हालातों से न हार मानी, न घुटने टेके। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, लगन व समर्पण से संघर्ष किया और खुद को बुलंदी पर ले जाकर सबके लिए मिसाल कायम की। इनमें कोई अधिकारी है तो कोई खेल व कोई अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। उनका मानना है कि धैर्य, विश्वास व मेहनत से हर मुकाम पाया जा सकता है। आज 3 दिसम्बर को अंतरराष्ट्रीय नि:शक्तजन दिवस है। पेश है ऐसे ही कुछ लोगों को कहानियां, जिन्होंने शारीरिक चुनौतियों के बाद भी मुकाम पाया और आज, दूसरे लोगों के लिए मिसाल बन गए।

धैर्य की बैसाखी के सहारे बने निदेशक


न कभी स्कूल का रास्ता देखा, न कॉलेज की सीढियां चढ़ी। पूरी पढ़ाई स्वयंपाठी के तौर पर की। ऐसे में कौन कह सकता था कि मुकेश विजय एक दिन अधिकारी बन जाएंगे। परिवार का साथ मिला तो मुकेश ने खुद का हौसला कम नहीं होने दिया। धैर्य की बैसाखी के दम पर वाणिज्यिक कर विभाग में तकनीकी निदेशक के पद पर पहुंच गए। मुकेश ने बताया कि वे बचपन से पोलियो ग्रसित हैं। छोटे थे तो कैलीपर्स का इतना चलन नहीं था, ऐसे में उन्होंने प्राइवेट पढ़ाई की। पोस्ट ग्रेजुएट व एमसीए किया। मेहनत रंग लाई और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग में कम्प्यूटर प्रोग्रामर बन गए। मेहनत के साथ कार्य करते रहे और कई सम्मान हासिल किए। मुकेश अब जयपुर में वाणिज्यिक कर विभाग में तकनीकी निदेशक के पद पर हैं।

हौसले की इबादत

देवकीनंदन मेलकनिया भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। एक हादसे ने उनके दोनों हाथ छीन लिए, लेकिन देवकीनंदन ने हार नहीं मानी और पैरों से कलम थाम कर एक नई इबादत रच डाली। एक बार मिट्टी पर पैर के अंगूठे से कमल का फूल बनाया। फूल मन में ऐसा खिला कि कलम से कागज पर लिखना शुरू कर दिया। अब वे कम्प्यूटर भी पैरों से ही चलाते हैं। उन्होंने ठान लिया था कि वे किसी पर बोझ नहीं बनेंगे। पैरों से लिखकर ही दसवीं की। उत्तराखंड के नैनीताल के रहने वाले देवकीनंदन भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति कोटा में सुपरवाइजर बन गए। अब वे मैनेजर हैं। उनका मानना है कि तकदीर उसी का साथ देती है, जो खुद का साथ देते हैं।

मुश्ताक भी कुछ ऐसे ही दृढ़ निश्चयी

नयापुरा निवासी मुश्ताक अली की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक हादसे में तकदीर ने उनके हाथ छीन लिए। मुश्ताक को लगा कि ऐसा जीवन किस काम का, लेकिन फिर दिल ने कहा, हालातों से लड़ो और तकदीर संवारो। जैसे-तैसे वह वापस लिखने लगे, फिर एमबीएस अस्पताल में सेवाभाव से कार्य करने लगे। अभी वे पूछताछ काउंटर पर सेवा दे रहे हैं। मुश्ताक अपना सारा कार्य खुद कर लेते हैं। साइकिलिंग में विभिन्न प्रतियोगिताओं में मेडल जीते। मुश्ताक अली बताते हैं कि हार के कभी रुकना नहीं है, चलते जाना है।

नाज मोहम्मद पर शहर को नाज


नाज मोहम्मद का सपना शुरू से ही अच्छा क्रिकेटर बनने का रहा। काफी समय तक सामान्य खिलाडियों की तरह क्रिकेट खेला, बाद में नि:शक्तता के कारण नाज को अलग राह चुननी पड़ी और देश में विभिन्न स्थानों पर आयोजित डिसेबल क्रिकेट टीम का हिस्सा बने। बतौर ऑलराउंडर अपनी प्रतिभा को दर्शा रहे हैं। नाज शतक भी लगा चुके हैं। राजस्थान टीम का हिस्सा हैं। वह मानते हैं कि डिसेबल क्रिकेट को भी बढ़ावा मिले। अभी तक प्रतियोगिताएं विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से होती हैं। बीसीसीआई जैसी संस्था प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाए।

गौरांशी ने दिए देश को गौरव के पल


रामगंजमंडी की मूक-बधिर बैडमिंटन खिलाड़ी गौरांशी ने देश-विदेश में अपनी खेल प्रतिभा से गौरव के कई क्षण दिए हैं। मूक बधिर होने के बावजूद तीन स्वर्ण पदक व राष्ट्रीय स्तर पर 25 से अधिक पदक जीते हैं। गौरांशी के ताऊ सौरभ शर्मा बताते हैं कि गौरांशी के पापा गौरव व मां प्रीति भी मूक बधिर हैं। वह किक्रेटर बनना चाहते थे, संभव नहीं हुआ तो उन्होंने बेटी को खिलाड़ी बनाने की ठान ली। वह भोपाल में बेटी को स्टेडियम ले जाते तो गौरांशी खिलाड़ी साइना नेहवाल के पोस्टर्स देखकर रुक जाती थी, पिता को अहसास हो गया कि बिटिया का सपना क्या है। उन्होंने बिटिया को कोचिंग दिलाना शुरू कर दिया। बेटी ने पिता के सपनों को साकार कर दिया। आज देश को गौरांशी पर गर्व है। वह सामान्य खिलाडियों की तरह देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती है।