कोटा

नीट यूजी काउंसलिंग में बढ़ी एमबीबीएस की सीटें, पहले छोड़े तीन एम्स भी जुड़े

604 सरकारी सीटों की बढ़ोतरी

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Jul 24, 2025
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नीट यूजी-2025 की सेंट्रल काउंसलिंग के पहले राउंड में बड़ी राहत मिली है। मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (एमसीसी) ने पहले जारी की गई सीट मैट्रिक्स में संशोधन करते हुए नई सूची जारी की। जिसमें कई एमबीबीएस सीटें जोड़ी गई हैं। चॉइस फिलिंग के दौरान तकनीकी गड़बड़ी और अपूर्ण डेटा के कारण कुछ कॉलेज और सीटें पहले लिस्ट में शामिल नहीं थे।

नई मैट्रिक्स के अनुसार, अब कुल 22,951 एमबीबीएस सीटों पर प्रवेश होगा, जिनमें 12,302 सरकारी और 10,649 निजी/डीम्ड यूनिवर्सिटी की सीटें शामिल हैं। पहले जारी सूची में सरकारी सीटों की संख्या 11,698 थी, जो अब बढ़कर 604 सीटों के इजाफे के साथ 12,302 हो गई है।

तीन एम्स पहले नहीं थे शामिल

एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा के अनुसार पहले जारी सीट मैट्रिक्स में एम्स भुवनेश्वर, गोरखपुर और गुवाहाटी शामिल नहीं थे। इसके अलावा, दिल्ली एम्स की एनआरआइ कोटे की 7 सीटें भी अब जोड़ी गई हैं। इन संशोधनों के चलते एम्स में कुल सीटें 2257 हो गई हैं, जो पहले 1900 थी।

ईएसआइसी व जिप्मेर की सीटों में भी बढ़ोतरी

ईएसआइसी कॉलेजों की बात करें तो पहले 446 सीटें दर्शाई गई थीं, जो इंश्योरेंस पर्सन कोटे से भरी जानी हैं। अब इनमें 189 ऑल इंडिया कोटे की सीटें भी जोड़ दी गई हैं, जिससे ईएसआइसी की कुल सीटें 635 हो गई हैं। इसी तरह, जिप्मेर कराईकाल व पुडुचेरी में पहले 179 सीटें थीं, जिनमें 64 सीटों की वृद्धि के साथ संख्या 243 हो गई है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी की सीटें भी 1014 से बढ़कर 1152 हो गई हैं।

राज्यों की सीटों में आई कमी

जहां एक ओर सेंट्रल कॉलेजों की सीटें बढ़ी हैं, वहीं राज्य मेडिकल कॉलेजों की ऑल इंडिया कोटे की सीटें पहले की तुलना में घटी हैं। पहले जहां इनकी संख्या 8159 थी, अब घटकर 8015 रह गई है।

तकनीकी गड़बड़ी से चॉइस फिलिंग प्रभावित

एमसीसी ने बताया कि कुछ कॉलेजों ने आवश्यक प्रारूप में डेटा नहीं भेजा था, जिसके चलते सीटें चॉइस फिलिंग में नहीं दिखाई दे रही थीं। इसके अलावा, तकनीकी गड़बड़ी के कारण कुछ कॉलेजों की सीटें दो बार दिखाई दे रही थीं, जिन्हें हटाकर अब अंतिम और अद्यतन सीट मैट्रिक्स जारी की गई है।

पत्रिका ने उठाया था मामला

राजस्थान पत्रिका ने 24 जुलाई के अंक में सीट मैट्रिक्स सूची में एम्स गुवाहाटी, भुवनेश्वर और गोरखपुर के नाम नहीं शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें बताया था कि इन तीन एम्स संस्थानों के नाम नहीं होने के कारण सीटों की संख्या में कमी आ गई थी।

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