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Patrika Key-Note: कोटा में ‘पत्रिका की-नोट’ के तहत ‘लोकतंत्र और मीडिया’ विषय पर मंथन, देखें वीडियो

Kota Update: पत्रिका समूह के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर रविवार को कोटा में ‘पत्रिका की-नोट’ के तहत ‘लोकतंत्र और मीडिया’ विषय पर मंथन कार्यक्रम आयोजित किया गया।

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कोटा

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Akshita Deora

Dec 21, 2025

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फोटो: पत्रिका

Patrika Key-Note 2025 In Kota: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सच्ची और नैतिकतापूर्ण पत्रकारिता समाज और सरकार के लिए दर्पण का काम करती है। मीडिया एक ऐसा माध्यम है, जो समाज के अभावों और कठिनाइयों को सामने लाते हुए समाज को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों के प्रति सजग करता है। वहीं दूसरी ओर समाज की पीड़ा और समाज के चिंतन के प्रति सरकार को आगाह करते हुए उसे सामाजिक समस्याओं के समाधान के प्रति जवाबदेह बनाने की जिम्मेदारी भी पूरा करता है। बिरला पत्रिका समूह के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चन्द्र कुलिश की जन्मशती वर्ष के तहत कार्यक्रमों की शृंखला में रविवार को कोटा में ‘पत्रिका की-नोट’ के तहत ‘लोकतंत्र और मीडिया’ विषय पर मंथन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की उपस्थिति में बिरला ने कहा कि मीडिया में आए समाचार यदि सत्य और नैतिकता पर आधारित हैं तथा समाज के अभावों, चुनौतियों और कठिनाइयों की प्रतिध्वनि हैं, तो प्रत्येक राजनीतिक-सामाजिक व्यक्ति का दायित्व है कि उसका संज्ञान ले। इसके साथ ही समाधान की दिशा में गंभीरता से प्रयास करे।

राजस्थान पत्रिका के लिए पाठक ही सर्वोपरि

बिरला ने कहा कि राजस्थान पत्रिका के लिए पाठक ही सर्वोपरि है। पत्रिका पाठकों के विचार, भावनाएं, समस्याएं, चुनौतियां, अभावों का ध्यान रखता है। दूरदराज के गांवों के वंचितों की भी आवाज बनता है। पत्रिका निर्भीक होकर, बिना भय के अपनी नैतिक बात को रखता है। पत्रिका सरकार या व्यावसायिक घरानों के प्रति जिम्मेदार नहीं है, पत्रिका की जिम्मेदारी तो केवल पाठकों के प्रति है। कई उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन पत्रिका ने अपनी नैतिकता को नहीं छोड़ा। जनता के ज्वलंत मुद्दों को प्राथमिकता दी, इसके लिए सरकार के दबाव भी झेले। चाहे विज्ञापन मिले या नहीं मिले, पत्रिका ने पाठकों का ध्यान रखा है।

पत्रिका संपूर्ण समाज का दर्पण

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पाठक सबसे पहले राजस्थान पत्रिका पढ़ता है। पाठक को पता होता है कि उसकी बात पत्रिका में जरूर आई होगी। पत्रिका संपूर्ण समाज का दर्पण है। बिरला ने कहा, कई बार राजनेता अखबार को अपना विरोधी मानने लग जाते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि अखबार समय-समय पर समाज के अभाव और विचारों से राजनेताओं को अवगत कराता है। इसलिए अखबार की ऐसी खबरों को सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए।

मीडिया चौथा स्तंभ बनने का प्रयास करेगा तो नुकसान जनता को: कोठारी


कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी ने कहा कि जिस तरह लोकतंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा है, उसी तरह मीडिया भी जनता के लिए है। आप जैसा चाहेंगे, मीडिया वैसे ही चलेगा। आप इसकी चाबी अपने पास रखो। सबकी चाबी जनता के पास है। यह संकल्प लें कि अपने जन्म दिवस पर एक आरटीआई जरूर लगाएं। संवाद क्या है, मैं आपसे बात कर रहा हूं, कौन बोल रहा है और कौन सुन रहा है। पत्रकारिता साधारण घटना नहीं है। संवाद आत्मा से होता है और आत्मा का ही होता है। आत्मा की अभिव्यक्ति आत्मा तक पहुंचेगी। हम बस बीज हैं। पेड़ बनने के लिए जमीन में गढ़ना ही पड़ेगा।


उन्होंने कहा कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली पैकेज आधारित हो गई है। इसी कारण विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। मीडिया भी इसी समाज का ही भाग है। इस दूषित शिक्षा प्रणाली ने मीडिया जगत के दृष्टिकोण को भी बाधित कर दिया है। लोकतंत्र के तीन ही स्तंभ होते हैं, लेकिन मीडिया यदि चौथा स्तंभ बनने का प्रयास करेगा तो वह सरकार का भाग बन जाएगा, जिसका नुकसान जनता को होगा। मीडिया का काम लोकतंत्र के इन स्तंभों पर नजर रखते हुए उन्हें सकारात्मक दिशा दिखाना है। सरकार का भाग बनने पर मीडिया की जनता और सरकार के बीच सेतु की भूमिका समाप्त हो जाएगी। यहां जनता की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

मीडिया के शब्द समाज की सोच बदलने की दिशा देते हैं : रहाटकर

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने कहा कि मीडिया समाज की आंख, कान और आवाज है। मीडिया महिला उत्पीड़न के मामले में पीडि़ता की पहचान गुप्त रखकर महिलाओं की मदद करता है। मीडिया लोकतंत्र की आत्मा है। महिलाओं की सफलताओं की जानकारी देकर मीडिया महिलाओं में हौसला भरती है। उनको आगे और आत्मनिर्भरता से बढ़ने में मदद करती है। मीडिया के शब्द किसी महिला को शिकायत दर्ज करने का साहस दे सकते हैं।

मीडिया के शब्द समाज सोच बदलने में दिशा दे सकते हैं। सभी मिलकर काम करें तो बहुत अच्छे तरीके से आगे बढ़ सकते हैं। महिला आयोग मीडिया को सूचना का माध्यम ही नहीं समाधान का साझेदार मानती है। जब मीडिया बताता है कि कोई महिला सरपंच शानदार काम कर रही है। कोई बहन अपने परिवार अपने आंगन को संभालते हुए अंतरिक्ष तक जाती है। कोई महिला कठिन हालात में अपने घर को संभाल रही है तो यह केवल एक कहानी नहीं होती है, वह समाज में परिवर्तन का बीज बोती है।

टूल्स और क्रिएटर के युग में तथ्यों की पहचान जरूरी : चौधरी

राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. निमित रंजन चौधरी ने कहा कि टूल्स और कंटेंट क्रिएटर के इस दौर में तथ्यों की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। सूचना तंत्र के बदलते स्वरूप पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आज मीडिया में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आज भी पाठक तथ्यों की पुष्टि के लिए अखबारों पर भरोसा करते हैं। तकनीक का उपयोग आवश्यक है, लेकिन उसे हावी नहीं होने देना चाहिए।

आज लोग टूल्स और क्रिएटर दोनों की भूमिका में हैं। टूल्स के माध्यम से जब कोई व्यक्ति किसी डेटा को सर्च करता है तो वह जानकारी कितनी तथ्यपरक है, यह स्पष्ट नहीं होता। वहीं, कई बार क्रिएटर अपनी व्यक्तिगत राय को तथ्य के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं, जिस पर लगातार टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं आती रहती हैं। उन्होंने कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और समय तेजी से बदल रहा है। ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए मीडिया को सजग, सतर्क और जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी, ताकि नागरिकों तक सही और विश्वसनीय जानकारी पहुंच सके। जागरूक नागरिक से ही लोकतंत्र बचेगा।

किसान आत्मनिर्भर नहीं होंगे तो विकसित भारत अधूरा रहेगा : पाटीदार

पद्मश्री हुकुम चंद पाटीदार ने कहा कि समय-समय पर कृषि और किसानों की स्थिति पर गंभीर मंथन की आवश्यकता है। उन्होंने पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के लेख ‘रुपया किलो बिकता कैंसर’ का उल्लेख करते हुए कहा कि आज भी देश उसी दिशा में सोचने को मजबूर है। देश आजादी की शताब्दी की ओर बढ़ रहा है और ‘विकसित भारत’ की परिकल्पना की जा रही है। रक्षा, आर्किटेक्चर सहित कई क्षेत्रों में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन कृषि प्रधान देश होने के बावजूद आज भी लगभग 70 करोड़ किसान कृषि पर निर्भर हैं।

किसान एक-एक दाना चुनकर देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, लेकिन किसान और उसकी कृषि आज भी आत्मनिर्भर नहीं है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में भारत का किसान और उसकी कृषि आत्मनिर्भर है। दुनिया की बड़ी-बड़ी बीज कंपनियों ने किसानों को अपने अधीन कर रखा है। हाइब्रीड बीज किसानों के सामने परोसे जा रहे हैं, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। किसानों को गहने बेचकर बीज खरीदना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कृषि और किसान आत्मनिर्भर नहीं होंगे तो विकसित भारत अधूरा रहेगा।