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फिजिक्स के टीचर ने किया ऐसे जनरेटर का आविष्कार, बिजली विभाग के हर दिन बचेंगे 1 लाख करोड़

रावतभाटा के फिजिक्स के शिक्षक और वैज्ञानिक एसएल छाबड़ा ने एक क्रांतिकारी तकनीकी आविष्कार किया है। उन्होंने एक सिंगल टरबाइन ट्विन जनरेटर टाइप (Single Turbine Twin Generators Type) विद्युत संयंत्र ( Power Unit) संरचना की खोज की है। इस संयंत्र के उपयोग से वर्तमान में संयंत्रों में किया जा रहा विद्युत उत्पादन दोगुना किया जा सकता है।

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कोटा

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Akshita Deora

Jan 09, 2024

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मुकेश शर्मा
रावतभाटा के फिजिक्स के शिक्षक और वैज्ञानिक एसएल छाबड़ा ने एक क्रांतिकारी तकनीकी आविष्कार किया है। उन्होंने एक सिंगल टरबाइन ट्विन जनरेटर टाइप (Single Turbine Twin Generators Type) विद्युत संयंत्र ( Power Unit) संरचना की खोज की है। इस संयंत्र के उपयोग से वर्तमान में संयंत्रों में किया जा रहा विद्युत उत्पादन दोगुना किया जा सकता है। इसे भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय ने उनके नाम से पेटेंट किया है। छाबड़ा ने बताया कि वर्तमान में जितनी दाब ऊर्जा की मात्रा का उपयोग कर एक विद्युत संयंत्र जितना विद्युत उत्पादन कर रहा है, अब यदि उतनी ही दाब ऊर्जा की मात्रा नई तकनीक के सिंगल टरबाइन ट्विन जनरेटर टाइप के विद्युत संयंत्र के संचालन के लिए उपयोग की जाएगी तो वह वर्तमान तकनीक से बने विद्युत संयंत्र दोगुनी विद्युत ऊर्जा की मात्रा का उत्पादन करेगा।

25 वर्ष की मेहनत
उन्होंने बताया कि मूल रूप से फिजिक्स शिक्षक होने के कारण जब उन्होंने हाइड्रो, थर्मल व न्यूक्लियर विद्युत संयंत्रों का अध्ययन किया तो पाया कि वहां वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत ऑफ कंजरवेशन ऑफ एनर्जी ( Law of Conservation of Energy) की पालना नहीं हो रही है। इस पर उन्होंने अपने पुत्र इंजीनियर हेमंत कुमार के सहयोग से अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत पर काम करते इस नई तकनीक का आविष्कार किया। इससे दाब ऊर्जा की 30 फीसदी ऊर्जा का ही उत्पादन हो पा रहा है, जबकि 70 फीसदी दाब ऊर्जा व्यर्थ जा रही है।
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प्रतिदिन बचेंगे एक लाख करोड़ रुपए
देश में कई हाइड्रो पावर स्टेशन, थर्मल पावर स्टेशन व न्यूक्लियर पावर स्टेशन में सैकड़ों विद्युत संयंत्र कार्यरत हैं। जहां इनके संचालन के लिए प्रतिदिन करीब दो से ढाई लाख करोड़ रुपए के ऊर्जा स्रोत (रॉ मैटेरियल) प्रयुक्त किए जाते हैं। इनका करीब 50 फीसदी भाग बिना किसी उपयोग के व्यर्थ जा रहा है। इससे देश को प्रतिदिन करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य के ऊर्जा स्रोतों का व्यर्थ दोहन हो रहा है।