
शनि जयंती: शनि का प्रकोप है तो श्मशान के इस मंदिर में मिलेगी समस्याओ से मुक्ति
कोटा. कोरोना वायरस व लॉकडाउन के बीच शुक्रवार को शनि जयंती मनाई। घंटाघर स्थित प्राचीन शनि मंदिर समेत अन्य मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की, लेकिन मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए नहीं खोले गए। लोगों ने घर पर ही शनिदेव को मनाया।
घंटाघर स्थित शनि मंदिर में तड़के केसर दूध से भगवान शनिदेव का अभिषेक कर मंगला की गई, बाद में शनिदेव का पंचामृत अभिषेक किया गया।
दोपहर 108 बातियों से आरती की गई। संध्या में पंचामृत अभिषेक तेलाभिषेक कर विशेष रूप से स्वर्ण श्रृंगार किया गया। भगवान को कचोरी इमरती खीर पुरी उड़द के लड्डू का भोग लगाया गया। भगवान को शनि प्रिय वस्तुंएं अर्पित की गई। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, शनि चालीसा शनि स्तुति से भगवान का गुणगान किया गया। कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना की गई।
500 वर्ष प्राचीन शनि धाम
शनि का सबसे प्रिय स्थान श्मशान है। कोटा में 500 वर्ष प्राचीन शनि धाम है जिसकी ख्याती दूर दूर तक फैली है। मंदिर का निर्माण श्मशान में हुआ था और यहां शनि देव की तांत्रिक प्रतिमा क्रोधी बाल स्वरूप में स्थापित है। जिसके दर्शन विशेष महत्व माना जाता है। कोटा का यह प्राचीन शनि मंदिर जो शनिचर धाम सिगनापुर की तर्ज पर नजर आता है।
मंदिर के बदलते स्वरूप के साथ ही यह मंदिर श्रद्धालुओ के लिए आस्था का केंद्र है।मकराना के 13 कारीगरों ने मंदिर का निर्माण करवाया है। मंदिर के निर्माण कार्य मे मकराना के काले पत्थर का उपयोग किया गया है। खास बात यह है कि मुगल ,जैन, बौद्ध कला से मंदिर तैयार किया गया है। प्रवेश द्वार पर वास्तु के अनुसार द्वार र्पाॅल बनाए गए है। सिगनापुर की तरह ही यहा भी मंदिर को चारो तरफ से खुला हुआ रखा गया है शनि अमावस्या व अन्य उत्सवो पर आने वाले भक्तो के लिए मंदिर के पास बने मकान को तैयार किया है, ताकि दूर दराज से आने वाले लोग यहा पर स्नान कर पूजा पाठ कर सके।
मंदिर मे नो ग्रहो की स्थापना भी की गई है। नव ग्रहों में शनि को सबसे शक्तिशाली माना जाता है। शनि देव से हर कोई डरता है। शनि मंदिर को शहर के बाहर जगह दी जाती थी। कोटा में इस प्राचीन शनि मंदिर को भी इसी कारण 500 साल पहले परकोटे के बाहर शमशान में जगह दी गयी तब से अब तक यह मंदिर यहीं स्थापित है लेकिन मंदिर की ख्याती दूर दूर तक फैलती जा रही है।
शनि प्रतिमा का स्वरूप है निराला यहां स्थापित शनि प्रतिमा का स्वरूप भी निराला है। संज्ञा का विवाह सूर्य से हुआ..संज्ञा भगवान सूर्य का तेज सहन नहीं कर पायीं और अपनी छाया छोड कर वे चलीं गयीं। छाया और सूर्य के मिलन से शनि देव का जन्म हुआ। जन्म के बाद शनि का काला रूप देखकर सूर्य ने उन्हें अपना पु़़त्र मानने से इंकार कर दिया...
शनि पिता सूर्य की बात सुनकर क्रोधित हो गये और सूर्य को अपने मुंह में लेकर पाताल चले गये। कोटा शनि धाम में शनि के इसी बाल क्रोधी स्वरूप के दर्शन होते हैं।
सामप्रदायिक एकता का प्रतिक
वैसे 500 साल पहले श्मशान में स्थापित यह मंदिर अब आबादी क्षैत्र के बीचों बीच आ चुका है। मंदिर के आसपास ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हंै इसलिये मंदिर साम्प्रादायिक एकता का प्रतीक भी बन गया है। सुबह की आरती और अजान से माहौल पूरा भक्तिमय हो जाता है। कोटा के प्राचीन शनि मंदिर में आरती सुबह ब्रम्ह मुहूर्त से ही शुरू हो जाती है शनिवार के दिन दूर दूर से भक्त पूजा के लिये यहां आते हैं। कहा जाता है कि ा शनि की तांत्रिका प्रतिमा के दर्शन मात्र से ाभक्तों को लाभ मिलता है। ाशनि अमावस्या और जयन्ती के दिन यहां उत्सवों सा माहौल बना रहता है। शनि के अभिषेक के लिये लम्बी कतारें लगी रहतीे हैं। लेकिन लॉकडाउन में शनि जयंती पर लोगों का प्रवेश निषेध रहा ।
Published on:
22 May 2020 11:18 pm
बड़ी खबरें
View Allकोटा
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
