
कोटा .
ब्रिटेन में पूरे साल में सिर्फ 900 घंटे धूप (सोलर ऑवर्स) निकलती है। बावजूद इसके 13 गीगावॉट सोलर एनर्जी का उत्पादन हो रहा। भारत में 23०० घंटे धूप निकलती है फिर भी 16 गीगावॉट ही एनर्जी प्रोडक्शन है। इसलिए सरकार को सब्सिडी के बजाय सौर ऊर्जा के उन्नत उपकरण विकसित करने पर जोर देना चाहिए। इससे ज्यादा सस्ती बिजली बनाई जा सकेगी।
न्यूटन भाभा प्रोजेक्ट के तहत कोटा विश्वविद्यालय में आयोजित चार दिवसीय सौर ऊर्जा कार्यशाला का गुरुवार को समापन हो गया। समापन सत्र में डरहम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. डगलस हेलिडे ने कहा कि ब्रिटेन के मुकाबले भारत के पास कई गुना ज्यादा खाली जमीन और सोलर ऑवर्स हैं। कोटा विवि में शोधार्थियों के साथ चार दिन गुजारने पर समझ आया कि यहां हुनर की भी कोई कमी नहीं। इसलिए भारत सरकार को ब्रिटेन की तरह सस्ते सौर ऊर्जा उपकरण विकसित करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए। क्रेनफील्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. जेवियर टॉनीलियर ने कहा कि ब्रिटेन का मौसम बेहद खराब रहता है, इसलिए वहां प्रयोग करने की संभावनाएं बेहद कम हैं जबकि भारत में ज्यादा। बिजनेस डवलपर इस मौके का फायदा उठाने को तैयार हैं और वे भारत के सोलर साइंटिस्टों के साथ मिलकर व्यापक स्तर पर शोध कर रहे हैं। दुनिया इंडियन इंटेलीजेंस की कायल है, इसका फायदा भारत को उठाना चाहिए। जब हम 16 स्क्वायर मीटर जगह में 500 मेगावाट का सोलर पॉवर प्लांट लगा सकते हैं तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?
टेक्नोलॉजी डवलपमेंट की योजनाएं बनें : जाने-माने सोलर साइंटिस्ट और मुनि सेवा आश्रम गुजरात के संस्थापक दीपक गडिय़ा ने कहा कि भारत ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए 1982 में वैकल्पिक ऊर्जा विभाग बनाया लेकिन यह सिर्फ सब्सिडी बांटने के चक्कर में ग्लोबल अपॉर्चुनिटी को हाथ से निकाल रहा। हम सोलर प्लेट बनाने के लिए पॉली क्रिस्टलाइन जर्मनी से, सोलर बैट्री चीन से और केबल कोरिया से इंपोर्ट कर रहे। इस क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर बनें इसके लिए सब्सिडी के बजाय इक्यूपमेंट और टेक्नोलॉजी डवलपमेंट की योजनाएं बनानी चाहिए। कार्यशाला में न्यूटन भाभा प्रोजेक्ट की अनुसंधान अधिकारी डॉ. नम्रता सेंगर, प्रो. एनके जैमन, विभागाध्यक्ष डॉ. सौरभ दलेला, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. घनश्याम शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एन.एल. हेडा आदि शिक्षक मौजूद रहे।
Published on:
12 Jan 2018 06:54 pm
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