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Demonetisation: कितनी बार हुई नोटबंदी, यूपी में बिल्डरों और निवेशकों पर क्या होगा असर

Demonetisation: दो हजार के नोट पर पाबंदी लगा दी गई है। इसे भी मिनी नोटबंदी कहा जा रहा है, भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में कब-कब नोटबंदी करनी पड़ी, इसका आधुनिक समय में हमारी घरेलू और वैश्विक अर्थशास्त्र पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसे ही जानने का प्रयास करते हैं।

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दो हजार की भारतीय मुद्रा

सबसे पहले बात शुरू करते हैं, पंजाब नैशनल बैंक गोमतीनगर शाखा लखनऊ से यहां पर जब बैंक अधिकारियों से बात की गई तो वह कहते हैं दो हजार के नोट बैंक में तकरीबन दो करोड़ हैं। अधिकारी बताते हैं कि ‘हमारी ब्रांच थोड़ी बड़ी है, इसलिए ज्यादा नोट हैं। दूसरी ब्रांच में कम भी हो सकते हैं। हमारे यहां करीब सौ के आसपास आईएएस अधिकारियों के बैंक अकाउंट है, पैसे का लेन-देन अधिक है।’ यही हाल भारतीय स्टेट बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया आदि बैंकों का भी है। पत्रिका संवाददाता ने मुख्य रुप से पंजाब नैशनल बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और सेेंट्रल बैक ऑफ इंडिया के बड़े ब्रांच का दौरा कर हाल जानने का प्रयास किया।

बैकों में दो हजार के नोट बदलने की जल्दबाजी नहीं दिखी। जैसा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में किए गए नोटबंदी के दौरान दिखी थी, वैसी अफरा-तफरी या लाईन बिलकुल ही नहीं है। सामान्य तौर पर ग्राहक ही आते-जाते दिखे। बैंक अधिकारी कहते हैं कि ‘हमारे पास बड़े ग्राहकों के फोन आए तो हमने साफ कह दिया है कि नियमानुसार आपके पा जितने भी नोट होंगे वह जमा किए जा सकते हैं, या बदले जा सकते हैं। नियम से अलग हटकर कोई कार्य नहीं होगा।’ बैंक अधिकारी दबी जुबान स्वीकार करते हैं कि बार-बार नोटबंदी का फैसला सरकार का उचित नहीं है।

करोड़ों एटीएम मशीनों के फार्मेट बदले जाएंगे
बैंक अधिकारी बताते हैं कि अब फिर से देशभर में लगभग सभी सरकारी, गैर सरकारी बैंक अपने एटीएम मशीनों के फार्मेट को बदलेंगे जिससे दो हजार की नोट जमा की जाती है अथवा निकाली जाती है। इसमें समय और पैसा दोनों नुकसान होता है। सरकार जनता को यह संदेश देना चाहती है कि कालाधन और जमाखोरों पर आर्थिक स्ट्राईक की जा रही है लेकिन हमारी घरेलू अर्थव्यस्था इससे तबाह हो जाती है।

ग्राहक से लेकर व्यवसायी और उद्योगजगत पर पड़ेगा प्रभाव
लखनऊ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की शोध छात्र पूनम गुप्ता, सौरभ मिश्रा, अखिल यादव बताते हैं कि बार-बार नोटबंदी से फिर से अर्थव्यस्था में ठहराव आएगा। रियल एस्टेट कारोबारी परेशान होंगे, उद्योग जगत की रफ्तार थमेगी और आम आदमी की पीपीपी अर्थात परचेजिंग पॉवर घटेगी। कालाधन या जमाखोरी पर थोड़ा असर जरुर पड़ता है लेकिन इसका व्यापक असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

लगभग इन्हीं बातों से सहमत दिखे समाज शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ डीआर साहू वह कहते हैं कि समाजशास्त्र और अर्थव्यवस्था का घनिष्ठ संबंध है। नोटबंदी, कोरोना, फिर नोटबंदी और इसीबीच जीएसटी आदि ने आम आदमी को पहले ही विचलित कर रखा है।

संदेह में घिरती है अर्थव्यवस्था
जानकारों का कहना है कि बार-बार मुद्रा बदलने या नोटबंदी करने से घरेलू स्तर से लेकर विश्व स्तर पर भी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था संदेह मेंं आती है। नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की कमजोरी झलकती है और यह माना जाता है कि यह अर्थव्यवस्था विश्वसनीय नहीं है। जब हम विश्व की पांचवी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर हैं, ऐसे में सरकार का यह कदम अत्यंत चिंताजनक है।

जनता पार्टी ने किया था नोटबंदी
अंगे्रजी शासन के दौरान कालेधन को बाहर करने के लिए सबसे पहले 1946 में नोटबंदी की गई थी। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की पूर्वज जनता पार्टी ने 16 जनवरी 1978 को एक हजार, पांच हजार और दस हजार रुपए के नोट बंद करने का फैसला किया था। उस जमाने में यह बहुत बड़ी धनराशि हुआ करती थी। देश में तीसरी बार नोटबंदी साल 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने किया था। अब फिर से एकबार साल 2023 में दो हजार के नोटों पर प्रतिबंध को मिनी नोटबंदी कहा जा रहा है।

ऑनलाईन देन-देन बंद कर रहा एटीएम मशीनों को
नोटबंदी के बाद से रुपए-पैसे के लेनदेन को लेकर तरह-तरह के एप्स साफ्टवेयर की दुनिया में आ चुके हैं। करीब 1300 प्रतिशत ऑनलाइन देनदेन बढ़ा है जिसके कारण एटीएम मशीनों की मांग घटी है। देश में इस समय करीब दो लाख 40 हजार एटीएम हैं, जिनमें से ऑनलाईन लेनदेन के प्रचलन के बढऩे के कारण आगामी दिनों में करीब एक लाख एटीएम बंद होने की आशंका बैंक के जानकार बताते हैं। इनमें से एक लाख ऑफ साइट और 15 हजार से अधिक ब्राईट लेवल एटीएम हैं।