
UP: उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। एनर्जी टास्क फोर्स की शुक्रवार को हुई बैठक में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के लिए निविदा दस्तावेज को मंजूरी दे दी गई है। अब यह दस्तावेज उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग को अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद निजीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
बैठक में प्राप्त निविदाओं का तकनीकी, वित्तीय क्षमता, अनुभव और निवेश योग्यता जैसे मानकों पर मूल्यांकन किया गया। ऊर्जा मंत्रालय ने निर्देश दिए हैं कि चयनित ऑपरेटर नियामक आयोग से मंजूरी प्राप्त करने के बाद ही प्रक्रिया को अंतिम रूप देंगे। जून तक प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
सरकार ने निजीकरण की स्थिति में कर्मचारियों के लिए तीन विकल्पों की घोषणा की है। पहले विकल्प के तहत कर्मचारी निजी कंपनी में समायोजित हो सकते हैं, जिसमें उनकी सेवा शर्तें यथावत बनी रहेंगी। दूसरा विकल्प उन्हें किसी अन्य सरकारी विभाग में समायोजन का अवसर देता है। तीसरे विकल्प के रूप में कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (VRS) का चयन कर सकते हैं। इन विकल्पों का उद्देश्य निजीकरण की प्रक्रिया के दौरान कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना है।
शुक्रवार को अदानी पावर लिमिटेड और यूपीएनएलसीएल के बीच 1600 मेगावाट बिजली आपूर्ति के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर ऊर्जा मंत्री एके शर्मा समेत कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारी संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार का एलान किया है। समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने आरोप लगाया कि सरकार ने वर्ष 2020 में हुए समझौते का पालन नहीं किया और अब एकतरफा निर्णय लेकर कर्मचारियों और उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी कर रही है।
उत्तर प्रदेश ऊर्जा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अनिल मिश्रा ने सरकार पर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि निजी कंपनियां केवल मुनाफे के लिए काम करती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को महंगी बिजली मिलेगी और हजारों कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। कर्मचारियों का कहना है कि यह निर्णय लगभग 26,500 कर्मचारियों के भविष्य को प्रभावित करेगा।
प्रशासन ने कार्य बहिष्कार से निपटने की रणनीति तैयार कर ली है। आवश्यक सेवाओं के लिए वैकल्पिक व्यवस्थाएं की जा रही हैं ताकि विद्युत आपूर्ति बाधित न हो।
संघर्ष समिति के नेताओं ने कहा कि पावर कॉर्पोरेशन द्वारा तैयार निविदा दस्तावेज में केंद्र सरकार की मॉडल बिड डॉक्यूमेंट की गाइडलाइन के विपरीत प्रावधान किए गए हैं। इसमें 51 प्रतिशत हिस्सेदारी का प्रावधान कमजोर किया गया है, जिससे कुछ निजी कंपनियों को अनुचित लाभ मिलने की आशंका जताई जा रही है।
उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण निगमों के निजीकरण को लेकर सरकार जहां तेज़ी से कदम बढ़ा रही है, वहीं कर्मचारी संगठनों का विरोध भी उतना ही तीव्र हो गया है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा प्रदेश में बड़ा आंदोलन बन सकता है।
Published on:
17 May 2025 05:38 pm
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