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UP Crime: Ex IPS का दावा- प्रदेश में बदला क्राइम का पैटर्न, अतीक-अशरफ और जीवा की हत्या में एक बात कॉमन…

UP Crime: लखनऊ कोर्ट में मुख्तार के शूटर जीवा और पुलिस सुरक्षा में माफिया अतीक-अशरफ की हत्या प्रदेश में क्राइम का नया पैटर्न है।  

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लखनऊ

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Prashant Tiwari

Jun 13, 2023

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UP STF और ATS संस्थापक सदस्य राजेश कुमार पांडेय (बीच में)

15 अप्रैल 2023 को प्रयागराज में माफिया अतीक-अशरफ की हत्या हो गई थी। ठीक उसी तरह 7 जून को लखनऊ कोर्ट में मुख्तार के शूटर जीवा की गोली मारकर हत्या की गई। इन दोनों केस को देखकर साफ यही लगता है कि आरोपियों ने 'नाम कमाने' के लिए इस वारदात को अंजाम नहीं दिया। बल्कि इसके पीछे किसी और का भी हाथ है। हालांकि दोनों ही केस में अभी जांच चल रही है। पुलिस के साथ ही लोगों को भी इन दोनों केस में किसी और के भी शामिल होने की आशंका है।

घटनाएं कॉर्पोरेट सिस्टम की एक नई उपज
वहीं, इन दोनों वारदातों के कुछ बाते कॉमन है। इसको लेकर हमने यूपी के STF और ATS के संस्थापक सदस्य राजेश कुमार पांडेय से बात की। उन्होंने इन दोनों ही घटनाओं से जुड़ी कॉमन पहलुओं को बताया और शंका जताई की ये घटनाएं कॉर्पोरेट सिस्टम की एक नई उपज हैं।

हत्या के बाद आरोपी करते है सरेंडर
रिटायर्ड IPS राजेश कुमार पांडेय ने बताया की दोनों ही केस की प्लानिंग करने वाले सिंडिकेट वेल ट्रेंड और कानून की समझ रखते है। ऐसा लगता है की दोनों ही केस के आरोपियों को पहले से ही बताया जाता है कि हत्या के बाद हथियार छोड़ देना, सरेंडर-सरेंडर चिल्लाना, कैमरे लगे होंगे पुलिस वाले तुम्हे मारेंगे नहीं बाकी सिडींकेट आगे का देख लेगा। इन घटनाओं को ये देखकर नहीं लगता की ये आरोपी पहली बार हत्या कर रहे है। ये काम किसी कॉर्पोरेट सिस्टम का है। जो वारदात के पहले ही इनको ट्रेंड कर रहा है। हत्याओं की पूरी एक स्क्रिप्ट लिखी जाती होगी।

अपराधियों का क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं
राजेश कुमार पांडेय ने ये भी बताया की दोनों की हत्याओं में अपराधियों का कोई खास क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं है। जीवा की हत्या के आरोपी विजय यादव के ऊपर लड़की भगाने और पराली चोरी करने के केस है। साथ ही अतीक-अशरफ की हत्या के आरोपीयों पर भी वही केस हैं जो गांव-देहात में आपसी लड़ाई में लगवाए जाते है। इन पर कोई मर्डर, लूट, डकैती जैसे मुकदमें नहीं हैं। मतलब साफ है कि हत्याओं के लिए बैकग्राउंड के आरोपियों को चुना गया, ट्रेंड किया गया फिर मिशन पर भेजा गया। ताकि वर्चस्व की लड़ाई में आंच किसी गैंग तक न पहुंचे और ये सिर्फ एक 'नाम कमाने के लिए की गई' हत्या ही लगे।

मर्डर में ऑटोमैटिक बंदूकों का इस्तेमाल
देखा जाए तो दोनों ही वारदात में ऑटोमैटिक बंदूकों का इस्तेमाल किया गया है। मतलब साफ है कि आरोपियों का मकसद था की टारगेट एक ही बार में ढेर हो जाए। अतीक-अशरफ की हत्या में जिस जिगाना का इस्तेमाल किया गया उसकी कीमत करीब 6-7 लाख रुपए है। जबकि आरोपियों की कुल संपत्ति करीब 4 लाख रूपए भी नहीं है। वहीं जीवा की हत्या में इस्तेमाल हुए मैग्नम .357 रिवाल्वर अमेरिका में उपयोग किया जाता है। राजेश कुमार पांडेय के मुताबिक छोटे अपराधी 315 बोर की कट्टा का इस्तेमाल करते है। हालांकि जिगाना, मैग्नम जैसे हथियार प्रतिबंधित नहीं हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में ये ज्यादा पॉपुलर नहीं है। इससे संकेत यही होता है की जरायम की दुनिया के बड़े खिलाड़ी इस हत्याकांड में शामिल हो सकते हैं।

कम उम्र के अपराधियों ने वारदात को अंजाम दिया
रिटायर्ड आईपीएस आरोपियों की उम्र को भी एक पहलू बताया। उन्होंने कहा कि अतीक-अशरफ और जीवा दोनों की हत्याओं में शामिल अपराधी कम उम्र के हैं। इनका किसी गैंग से कोई वाबस्ता नहीं है। ऐसे में जाहिर तौर पर हत्या करवाने वाले उन युवाओं को ढूंढते हैं. जिनको किसी तरह की लालच दी जा सके, किसी तरह की कोई मजबूरी या फिर अन्य तरीकों से उनका माइंड वाश किया जा सके।

ये घटनाएं कॉर्पोरेट सिस्टम की टेंडेंसी को दर्शाती हैं
राजेश पांडेय के अनुसार ये हत्याएं किसी कॉर्पोरेट सिस्टम की टेंडेंसी को दर्शाती हैं। जहां एक ह्यूमन रिसोर्स होता है, वो कैंडिडेट फाइनल करता है। कांड से सम्बंधित चीजे मुहैया करवाते हैं। घटना में क्या चीज लेकर जाएंगे, ऐसे हथियार मुहैया कराइ जाए जो फसे नहीं। जैसे अतीक के केस में आरोपी डमी कैमरा लेकर आए थेय़ वो कैमरा लखनऊ, प्रयागराज, बनारस में नहीं मिलेंगे। ये सिर्फ दिल्ली और मुम्बई में मिलते है जहां फिल्मों की शूटिंग होती है। आरोपियों के पास आईडी कार्ड कैसी आई? अगर इन सब चीजों को देखा जाए तो यही नजर आता है की ये एक नए तरह का सिंडिकेट है। जो क्राइम को कॉर्पोरेट इस्टैब्लिशमेंट की तरह इस्तेमाल कर रहा है।

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यूपी में क्राइम का नया पैटर्न
इन हत्याओं पर राजेश पांडेय ने कहा की ये यूपी में क्राइम का नया पैटर्न है। यह कोई बड़े गिरोह का स्वयंभू लीडर करवा रहा है। इसका पता करने के लिए हमें कुछ सवालों को जानना जरूरी होगा की ये हथियार आरोपियों के पास कहां से आए? हत्या पीछे का क्या मकसद था? क्योंकि अभी तक कोई ख़ास वजह सामने नहीं आ सकी है। अगर कल्ट को पहचाना नहीं जाएगा तो ये तरीका भविष्य में गैंगवार से निकल कर व्यापारियों, नेताओं आदि की हत्या के लिए अपनाए जा सकते हैं।