दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में ‘जंगलराज’ के लिए युवा बाघ बूढ़े बाघों पर हमलावर हो रहे हैं। इसके चलते बुजुर्ग बाघ जंगल से पलायन कर गन्ने के खेतों में ठिकाना बना रहे हैं। वहां से निकलकर वे इंसानों और पालतू जानवरों का आसान शिकार कर रहे हैं। पिछले वर्षों में मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं के अध्ययन से यह पता चला है कि गन्ने के खेतों में रह रहे बाघों में ज्यादातर बूढ़े हैं। पीलीभीत के अमरिया, दक्षिण खीरी के महेशपुर, बफरजोन के भीरा, मैलानी, पलिया जैसी रेंज में हर साल बूढ़े बाघ जंगल को छोड़कर गन्ने के खेतों में चले आते हैं। ये बाघ इंसानों के लिए बेहद खतरनाक हैं। तराई नेचर कंजरवेशन सोसायटी के प्रदेश सचिव डॉ. वीपी सिंह कहते हैं कि बाघों की बढ़ती आबादी को देखते हुए प्राकृतिक आवास को विस्तार दिया जाना चाहिए। जंगल में ग्रासलैंड और वेटलैंड के प्रबंधन पर जोर दिया जाए, ताकि भोजन व आवास के लिए उन्हें संघर्ष न करना पड़े। उपनिदेशक बफरजोन डॉ. अनिल कुमार पटेल ने बताया कि क्षेत्र के लिए आपसी संघर्ष बाघों को जंगल के बाहर करने का प्रमुख कारण है। बीते दिनों में हुई संघर्ष की घटनाओं के अध्ययन से इस तर्क को बल मिलता है। ग्रासलैंड और वेटलैंड के मैनेजमेंट से मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं को रोकने का प्रयास किया जा रहा है।