6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Lok sabha election result: क्षेत्रीय क्षत्रपों का सूपड़ा साफ, शिवपाल, राजभर, राजा भैया की पार्टियों का रहा बुरा हाल

17वीं लोकसभा में क्षेत्रीय छत्रपों का सूपड़ा साफ हो गया है।

3 min read
Google source verification

लखनऊ

image

Abhishek Gupta

May 23, 2019

Om prakash Shivpal Raja Bhaiya

Om prakash Shivpal Raja Bhaiya

लखनऊ. 17वीं लोकसभा में क्षेत्रीय छत्रपों का सूपड़ा साफ हो गया है। चुनाव से पहले जीत का दावा करने वाले क्षेत्रीय छत्रप औंधे मुंह गिरे हैं। इस चुनाव में कम से कम आधा दर्जन सूरमाओं ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे थे। किसी ने कांग्रेस से गठबंधन किया था तो कुछ दल अपने बूते चुनाव लड़ रहे थे। विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया की जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी, शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, बाबूसिंह कुशवाहा का जनअधिकार मंच पार्टी, महान दल और कृष्णा पटेल के गुट वाला अपना दल के प्रत्याशी जमानत बचाने भर का वोट नहीं जुटा पाए हैं। सबसे खराब स्थिति तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की है। पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को न केवल मंत्रिपद गंवाना पड़ा है, बल्कि उनके सभी उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गयी। जीत का दम्भ भरने वाली किसी भी क्षेत्रीय पार्टी का कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका।

ये भी पढ़ें- Lok sabha election result: इस प्रत्याशी के घर के बाहर जीत का मनाया जा रहा जश्न, दोहराया जा रहा है इतिहास, इस पार्टी में हड़कंप

सुभासपा-
बागी होने के बाद सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने 39 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर भाजपा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। ऊपर से मंत्री पद भी गवां दिया। आखिरी चरण के मतदान के बाद ओमप्रकाश राजभर को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता तो पहले ही दिखा दिया था, वहीं बची-कुची कसर नतीजों ने पूरी कर दी। पूर्वांचल में राजभर वोट बैंक की एकजुटता इनकी ताकत थी। यहां की करीब 26 सीटों पर 50 हजार से सवा दो लाख तक राजभर जाति के वोट बताए जा रहे थे। 13 लोकसभा सीटों पर तो राजभर एक लाख से ज्यादा हैं। इनमें घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अम्बेडकर नगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर व भदोही जैसी सीटें शामिल हैं। लेकिन बड़ी हार के साथ ओमप्रकाश का मंत्री पद तो गया ही है, राजभरों के क्षत्रप का खिताब भी छिन गया है।

कृष्णा पटेल-
पिछड़ों और पटेलों को एक साथ लेकर चलने वाली अपना दल सोनेलाल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ समझौता किया। उनके भी उम्मीदवार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे। कृष्णा पटेल खुद गोंडा सीट से और उनके दामाद पंकज निरंजन फूलपुर सीट से कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़े। दोनों ही उम्मीदवार भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी से भारी अंतरों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। मां-बेटी की इस जंग में कुर्मी मत किधर गया है, यह सबके सामने है। चुनावी नतीजों के बाद अनुप्रिया ने पिछड़ों की नई नेता का खिताब कायम रखा है।

प्रसपा लोहिया-
सपा से आपसी कलह के चलते अपनी पार्टी बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव का भी यहीं हाल रहा। नए क्षत्रप के तौर में उभरने की कोशिश में शिवपाल अपने ही चुनावी मैदान में जीत दर्ज नहीं कर पाए। उनकी पार्टी प्रसपा से यूपी में 55 सीटों पर उम्मीदावार मैदान में थे। केंद्र में प्रसपा की मदद के बिना सरकार न बनने का दावा करने वाले शिवपाल को इस बात अंदाजा भी नहीं होगा कि उनकी पार्टी का कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाएगा।

राजा भैया-
राजा भैया की जनसत्ता दल लोकतांत्रिक ने भी पहली बार लोकसभा चुनाव में ताकत झोंकी। प्रतापगढ़ और कौशाम्बी में उन्होंने पार्टी कैंडिडेट उतारे। प्रतापगढ़ में राजा भैया अपनी पार्टी के कैंडिडेट की जीत का दावा कर रहे थे, लेकिन प्रतापगढ़ में पूर्व सांसद व राजा भैया के भाई अक्षय प्रताप सिंह 'गोपाल जी' तक को हार का सामना करना पड़ा। प्रतापगढ़ में अक्षय प्रताप चौथे नंबर पर और कौशाम्बी में शैलेंद्र कुमार तीसरे नंबर पर रहे।