Maha Shivratri 2018 : 300 साल बाद बना अदभुत संयोग, ये तीन कांवड़ यात्राएं देंगी मनोवांछित फल
Maha Shivratri 2018 : महाशिवरात्रि 14 फरवरी को है। देश प्रदेश के प्रमुख शिव मन्दिरों में जगह-जगह पर कांवड़ियों का आना शुरू हो गया है।

Maha Shivratri 2018 : महाशिवरात्रि 14 फरवरी को है। देश प्रदेश के प्रमुख शिव मन्दिरों में जगह-जगह पर कांवड़ियों का आना शुरू हो गया है। विश्व प्रसिद्ध लोधेश्वर महादेव मन्दिर के पुजारी के अनुसार इस शिवरात्रि ? पर 300 सालों बाद अदभुत संयोग बना है। जो भी शिव भक्त तीन कॉवड़ यात्राओं में से कोई एक कांवड़ यात्रा पूरे मनोभाव के साथ पूरी करेगा और शुभ मुहूर्त पर जलााभिषेक करेगा। भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे। परिवार में चल रहा कष्ट दूर होगा। आईए जानते हैं उन तीन कांवड़ यात्राओं के बारे में जिनको पूरा करने पर मनोवांछित फल मिलेगा।
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पंडित शिवदत्त यज्ञ शर्मा कोे अनुसार भगवान शिव को जलाभिषेक में ले जाए जाने वाली कांवड़ तीन तरह की होती हैं।
1. बैकुंठी कांवड़ - पंडित शिवदत्त यज्ञ शर्मा के अनुसार देखने में सभी कांवड़ एक जैसी होती है। लेकिन उनके लिए यानि जैसी कांवड़ वैसे नियम बैकुंठी कांवड़ लेकर सिर्फ एक ही व्यक्ति चलता है यानि घर से लेकर जलाभिषेक तक एक ही व्यक्ति के कन्धे पर कांवड़ होती है। इसमें रास्ते में किसी भी साफ सुथरी जगह पर रखकर नित्य क्रिया कर सकता है।
2. ठड्डी कांवड़ - भगवान शिव को खुश करने की यह सबसे कठिन यात्रा है इसमें कांवड़ यात्रा के दैरान कांवड़ को रखा नहीं जा सकता है। इसको लेकर चलने वाले के साथ एक जोड़ीदार भी होता है। जब एक साथी नित्य क्रिया के लिए जाता है। तो दूसरा कांवड़ अपने कन्धे पर रख लेता है यानि कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है।
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3. तपेश्वरी कांवड़ - ये कांवड़ यात्रा सबसे कठिन होती है। किसी भी संकल्प को पूरा करने के लिए इस कांवड़ को लेकर श्रद्धालु चलते है। इस कांवड़ में दो या दो से अधिक व्यक्ति होते हैं। इस कांवड़ यात्रा में सदस्यों को यह प्रण लेना होता है कि कन्धे पर पहली वार कांवड़ रखने के बाद 24, 48, 72 घण्टे में जलाभिषेक कर ही देता है। इसका अनुपालन करना जरूरी होता है।
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इस नियम का पालन जरूरी
कांवड़ यात्रा पर निकले प्रत्येक श्रद्धालु के लिए ये जरूरी है कि वह अपने साथ घोंघा लेकर चले। यदि उसे रास्ते में छोटा डोलडाल यानि लघुशंका जाना होता है तो कांवड़ साथी को देने के पहले और बाद में हांथ धोता है। बड़ा डोलडाल यानि शौच के लिए जाना होता है तो उस व्यक्ति को पूरे कपड़े बदलने होते हैं और स्नान भी करना होता है। इन दोनो क्रियाओं में घोंघे को शरीर में छुआकर खुद को पवित्र करना पड़ता है।
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