समाजवादी पार्टी विचारों के द्वंद का शिकार हो गई है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव युवा हैं। उनकी सोच आधुनिक है। मुलायम सिंह वृद्ध हो चुके हैं। वे पार्टी को 2007 के यादव-मुस्लिम गठजोड़ पर लठ्ठधारी मॉडल से हांकना चाहते हैं। अखिलेश विदेश में पढ़े-लिखे हैं। वे बदलाव को महसूस कर रहे हैं। अमरीकी चुनावों की बात हो फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान। उन्होंने देखा है कि कैसे चुनावों का कारपोरेटीकरण हो चुका है। इवेंट मैनेजमेंट कंपनियां नेता की ब्रांड इमेज बनाती हैं और धूम धड़ाके के साथ प्रचार कर चुनाव जीतती हैं। इसीलिए सीएम अखिलेश अपनी ब्रांड पर जोर दे रहे हैं। वे विकास के ब्रांड पर चुनाव जीतना चाहते हैं तो मुलायम का मानना है कि उम्मीदवार की छवि और सामाजिक भूमिका का चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ता। शायद यही वजह है उन्होंने वे बेटे के बेहतर कामकाज को घूरे पर डाल दिया है। और लठ्ठधारी,मूंछधारी अतीक अहमद और शिगबतुल्लाह अंसारी जैसों को तरजीह दे रहे हैं। अखिलेश को यही नागवार लग रहा है। पिता-पुत्र में लड़ाई की एक बड़ी वजह यही है। आइए जानते हैं आखिर दोनों की विचारधारा किसके पुष्पित और पल्लवित हो रही है और उनकी सोच कहां आड़े आ रही है।