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लखनऊ, पहले के गुरुजन या उस्ताद जब षिष्यों से प्रसन्न होते थे तो उन्हें विलक्षण बंदिषें सिखाते थे, पर मैंने कभी अपने षिष्यों से भेदभाव नहीं किया। पहले के गुरु भले ही कट्टर रहे हों पर मैंने कभी सिखाने में भेदभाव नहीं बरता, ये मुझे संगीत के साथ बेइमानी लगती है।
विभिन्न तबला घरानों की विषेषताओं का उल्लेख दिलचस्प संस्मरणों के साथ करते हुए ये बात बनारस घराने के विख्यात तबलावादक पं.शीतलप्रसाद मिश्र ने संस्कृतिकर्मी अनूप मिश्र को सवालों का जवाब देते हुये बतायीं। गोमतीनगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने आज अपने स्टूडियो में अभिलेखागार के लिये उनकी रिकार्डिंग करायी।
बिहार में पैदा और षिक्षित हुए पं.शीतलप्रसाद ने बनारस घराने के तबला उस्तादों से वादन सीखा। केजी गिण्डे, असगरी बेगम जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ बजाने वाले पं.शीतलप्रसाद एक लम्बे अरसे तक भातखण्डे संगीत संस्थान में षिक्षक के तौर पर सेवायें दे चुके हैं।
त्रिपल्ली, फर्द, गत के संग ही बढ़इया जैसी दुर्लभ बंदिषों में बताने के साथ ही पं.शीतलप्रसाद ने दिल्ली, लखनऊ, बनारस, अजराड़ा, फरुर्खाबाद के तबला घरानों के बारे में गुरुओं से सुनी हुई बात बताने के साथ इन घरानों की विषेषताएं भी बताईं।
पं.शीतलप्रसाद ने बताया कि एक बार मुम्बई में सितारादेवी ने लगातार 12 घण्टे तक कथक किया, उसमें कई तबला वादक बदले गये। सितारा देवी को देखकर पं.गोपीकिषन का भी जोष बढ़ा और बारह-साढ़े बारह घण्टे उन्होंने भी डांस किया। उसमें भी कई तबला वादक बदले गये। इसी तरह पं.शीतलप्रसाद ने अयोध्या में स्वामी पागलदास के कहने पर असगरी बेगम के लिये पखावज बजाने का जिक्र करते हुये पखावज वादक कुदऊ सिंह आदि के रोचक संस्मरण रखे और कुछ दुर्लभ बंदिषों का वादन किया।
Published on:
16 Dec 2019 09:25 pm
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