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रिंकू सिंह तो नाई हैं, लेकिन यूपी में सिंह लिखने वाले क्या होते हैं, पहली बार किसने लिखा था?

IPL-2023: आजकल क्रिकेटर रिंकू सिंह सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं। खासकर लोग उनकी जात‌ि जानना चाहते हैं। ‘स‌िंह’ टाइटल लिखने वाला हर कोई रिंकू सिंह को अपनी जाति का गौरव बता रहा है। आइए विस्तार से जानते हैं ‘सिंह’ टाटल का आरंभ, इतिहास और इससे जुड़ी अनेक बातें। पढ़िए मार्कंडेय पांडे की विशेष रिपोर्ट…

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लखनऊ

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Upendra Singh

Apr 13, 2023

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अलीगढ़ के रिंकू सिंह ने लगातार 5 सिक्स लगाकर बाजी पलट दी।

कोलकाता नाइटराइडर्स के क्रिकेटर रिंकू सिंह एक के बाद एक पांच छक्के लगातार मारकर रिकॉर्ड कायम किया है। जिसके बाद कई लोगों ने उनको जाट, सिद्ध, सैनी, ब्राम्हण और भूमिहार बिरादरी से अलग-अलग जोड़ते हुए अपना गौरव कहा है। अब्बल तो खिलाडियों, कलाकारों और देश के लिए काम करने वालों को जातिगत खांचे में ढालना ही गलत है, लेकिन वक्त के साथ यह प्रवृत्ति घटने के बजाए बढ़ती जा रही है।

नाम के साथ उपनाम में जातिगत टाइटल को जोड़ना देशभर में सैकड़ों सालों से किया जाता रहा है, जिसमें सबसे अधिक प्रचलन में ‘सिंह’ टाइटल है। जिसका प्रयोग सिक्ख समुदाय से लेकर हिंदूओं की अनेक जातियां करने लगी हैं।

ढाई हजार साल पुराना है 'सिंह' शब्द का ‌इतिहास
‘सिंह’ शब्द का इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना है। यह वास्तव में संस्कृत और पाली भाषा से निकला हुआ शब्द है, जिसका अर्थ शेर से है। NCERT की इतिहास की बुक और सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ‌बुक ‘गौतम बुद्ध इतिहास और दर्शन’ के अनुसार महात्मा गौतम बुद्ध का पूरा नाम गौतम बुद्ध शाक्यसिंह था, जिसमें शाक्य उनके गोत्र को माना जाता है।

जिसका संबंध शाक्य ऋषि से माना जाता है। हांलाकि बुद्ध के समय में सिंह टाइटल प्रचलन में नहीं देखा जाता है। मध्यकालीन भारत के इतिहास की बुक के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल रहे अमरसिंह का नाम सबसे पहले पाया जाता है। जिन्होंने अपने टाइटल के रूप में इसका प्रयोग किया है।

सिसोदिया राजपूतों में उपनाम के रूप में धारण करने की प्रथा तेजी से चली
कांलांतर में मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों में इसे उपनाम के रूप में धारण करने की प्रथा तेजी से चल पड़ी। जिसके बाद यह धीरे-धीरे अन्य जातियों में भी प्रचलित होती गई। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में देखें तो ‘सिंह’ टाइटल अनेक जातियों में प्रचलित है।

क्षत्रिय जाति से संबंध रखने वाले ‘सिंह’ टाइटल का प्रयोग शत प्रतिशत लोग करते देखे जाते हैं। जबकि अनूसूचित जाति और OBC समुदाय की कई जातियों ने भी इसका प्रयोग शुरू कर दिया है। बिहार, झारखंड में मैथिली ब्राम्हणों में भी यह टाइटल देखा जा सकता है।

अनूसूचित जाति–जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद रहे विजय सोनकर शास्त्री । IMAGE CREDIT:

सबसे अधिक पलायन राजस्‍थान के राजपूतों ने किया
इस बारे में अनूसूचित जाति–जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद रहे विजय सोनकर शास्त्री कहते हैं कि मुगल काल में धर्म की रक्षा और मुगल उत्पीड़न से बचने के लिए अनेक जातियों ने मूल स्थान से पलायन किया। जिसमें सबसे अ‌धिक पलायन राजस्थान के राजपूतों ने किया। बाद में वे घुमंतू जाति, अनुसूचित जाति सहित बंजारा आदि में देखे जाने लगे।

मुगल काल में लड़ाकुओं ने अपने राजाओं के हारने के बाद पलायन किया
सोनकर शास्त्री कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों ने जिस प्रकार पलायन के बाद विभिन्न व्यवसायों को अपनाया है, उसी तरह मुगल काल में भी लड़ाकुओं ने अपने राजाओं के पराजित होने अथवा बंदी बनाए जाने के बाद पलायन किया। अपने घर और जमीन से बेदखल होने के बाद उस दौरान सेवा का कार्य शुरू कर दिया। कहा जाता है कि धर्म भंग नहीं होने देने वालों को अंग्रेजों ने भंगी कहना शुरू किया।

लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीआर साहू कहते हैं कि भारत में भाषाओं की तरह ही जातियों की संरचना भी बेहद प्राकृतिक है। IMAGE CREDIT:

लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीआर साहू कहते हैं कि भारत में भाषाओं की तरह ही जातियों की संरचना भी बेहद प्राकृतिक है। भाषाओं ने धीरे-धीरे स्वरूप बदला है, ऐसे ही लंबे ऐतिहासिक कालखंड में खासकर मुगल काल में व्यापक पलायन का दौर रहा है। जिसमें जातियों और उनके उपनाम के साथ ही प्रथा और परंपराओं पर भी काफी असर पड़ा है।

क्रिकेटर रिंकू सिंह के गांव में लोगों से पता किया गया तो पता चला कि रिंकू सिंह नाई जाति से आते हैं। हालांक‌ि विकीपीडिया में उनकी जात‌ि जाट लिखा हुआ है।