
बांदा में विंध्यवासिनी पर्वत श्रंखला में स्थित खत्री पहाड़ का रंग सफेद है।
पौराणिक कथा है कि देवी शती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। आज भी इन शक्तिपीठों में सालभर श्रद्घालु पहुंचते हैं। पूजा-अर्चना कर मां से मन्नतें मांगते हैं। उत्तर प्रदेश में पांच शक्तिपीठ हैं। इनके बीच एक ऐसा पहाड़ भी है। जिसे कन्यारूपी देवी मां ने कोढ़ी होने का श्राप दिया था। इस श्राप के प्रभाव से पहाड़ का रंग सफेद हो गया। यह निशान पहाड़ पर आज भी मौजूद हैं, तो आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी...
श्रीकृष्ण जन्म से जुड़ी है कहानी
हम बात कर रहे हैं विंध्य पर्वत पर विराजमान रहने वाली मां विंध्यवासिनी की। यह वही मां हैं। जो नंदबाबा के घर कन्या रूप में जन्मी थीं। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्मे श्री कृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुंचा दिया था। जबकि वहां यशोदा के गर्भ से जन्मीं आदि पराशक्ति योगमाया को चुपचाप मथुरा जेल में ले आए थे।
इधर, जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह नवजात की हत्या के लिए कारागार में पहुंचा। क्रूर कंस ने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप दिखाकर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल पर्वत पर चली गईं।
खत्री पहाड़ को कन्यारूपी मां ने दिया था श्राप
विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में बसे बुन्देलखण्ड के बांदा में एक स्थान है खत्री पहाड़। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार कंस को चेतावनी देकर आदिशक्ति देवी विंध्याचल पर्वत की ओर जा रही थी। इस दौरान वह खत्री पर्वत पर थोड़ी देर रुकी थीं। इस पर्वत ने उनका भार उठाने में असमर्थता जताई। इसपर क्रोधित होकर देवी ने इस पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया था और इसके चलते पूरे पर्वत में सफ़ेद दाग हो गए। जिससे इस पहाड़ का नाम खत्री पहाड़ हो गया और फिर यहाँ से देवी मिर्ज़ापुर के विंध्याचल में विराजमान हो गयी थी।
मध्य प्रदेश से भी आते हैं श्रद्धालु
मां विंध्यवासिनी का मंदिर बांदा मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर गिरवां क्षेत्र के शेरपुर गांव की खत्री पहाड़ में स्थापित है। नवरात्रि के दिनों में यूपी और एमपी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। ऊंचे पर्वत पर विराजमान मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 511 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। कुछ श्रद्धालु सीढ़ियों पर लेटकर मां के दरबार पहुंचकर अपनी अर्जी लगाते हैं।
मंदिर से जुड़ी है यह मान्यता
मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि यहां आने वाले मरीजों के रोग ठीक हो जाते हैं। आसपास के इलाके के नवविवाहित जोड़े सबसे पहले यहीं आकर आशीर्वाद लेते हैं। यहां शारदीय नवरात्र पर 10 दिनों तक मेला लगता है जिस वजह से यहां सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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Updated on:
21 Mar 2023 06:45 pm
Published on:
21 Mar 2023 06:43 pm
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