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Shiksha Mitra Protest : 25 जुलाई को बड़ा प्रदर्शन करेंगे शिक्षामित्र, लोकसभा चुनाव से पहले योगी सरकार की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

locationलखनऊPublished: Jul 24, 2018 03:58:19 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

UP Shiksha Mitra Protest : इसलिये प्रदर्शन कर रहे हैं यूपी के शिक्षामित्र, जानें- शिक्षामित्रों की नियुक्ति से लेकर अब तक का पूरा घटनाक्रम…

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25 जुलाई को बड़ा प्रदर्शन करेंगे शिक्षामित्र, जानें- सरकार से क्यों नाराज हैं शिक्षामित्रों

लखनऊ. 25 जुलाई को शिक्षामित्र बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं। शिक्षामित्रों का कहना है कि अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं तो यूपी के सभी शिक्षामित्र बुधवार से सामूहिक मुंडन कराएंगे। इसमें पुरुषों के साथ औरतें भी शामिल होंगी। उत्तर प्रदेश शिक्षामित्र संघ 25 जुलाई को काला दिवस के रूप में मनाने की तैयारी में है। पदाधिकारियों का कहना है 25 जुलाई 2017 को सहायक अध्यापक पद से समायोजन रद्द होने के बाद अब तक 700 से अधिक शिक्षामित्रों की मौत हो चुकी है। इनकी स्मृति में प्रदेश भर के शिक्षामित्र लखनऊ सहित सभी जिला मुख्यालयों पर मृतक साथियों को श्रद्धांजलि देंगे और काली पट्टी बांधकर सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे।
शिक्षामित्रों की मांग है कि शिक्षामित्रों की वापसी को लेकर सरकार नया अध्यादेश लाये और फिर से इन्हें समायोजित करे, ताकि शिक्षामित्रों को फिर से पूरी तनख्वाह (40 हजार रुपये) मिलने लगे। बता दें कि 23 अगस्त 2010 को तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) लागू हुआ था, जिसके पैरा नंबर चार में लिखा है कि टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) पास करने के बाद ही कोई शिक्षक बन सकता है। इसी पैरा चार के कानून का हवाला देते हुए कोर्ट ने भी शिक्षामित्रों को शिक्षक मानने से इनकार कर दिया था। शिक्षामित्रों की मांग है कि मोदी सरकार एनसीटीई के इसी पैरा चार में संशोधन कर शिक्षामित्रों की राह आसान कर दे, ताकि शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द हो और वे नियिमित शिक्षक बन सकें।
शिक्षामित्रों का कहना है कि मोदी सरकार ने 9 अगस्त 2017 को शिक्षा का अधिकार अधिनियम में एक संशोधन किया था। इसके मुताबिक, अगर कोई शिक्षक लंबे समय से पढ़ा रहा है, लेकिन उसके पास नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) के मानकों के अनुरूप डिग्री नहीं है तो उसे डिग्री हासिल करने के लिये चार साल का वक्त दिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी उन्हें चार वर्षों का समय देता है, लेकिन शिक्षामित्रों को वो वक्त भी नहीं दिया गया और सीधे उनका समायोजन रद्द कर दिया गया है।
शिक्षामित्रों का कहना है उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने अपने फैसले के दौरान कहा था कि संविदा पर नियुक्त कोई कर्मचारी लगातार 240 दिनों तक लगातार किसी विभाग में काम कर लेता है, तो उसे रेगुलर होने का पूरा हक है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ही शिक्षामित्रों का समायोजन रद कर दिया गया, जबकि उन्होंने शिक्षा विभाग में 17 साल सेवायें दीं। उन्होंने कहा कि भारत कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतर 24 हजार रुपये प्रतिमाह देने की बात करती है, तो भी फिर शिक्षामित्रों को 10 हजार रुपये ही क्यों दिये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के सदस्य जफीर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शिक्षामित्र संघ क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रद्द हुआ था समायोजन
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 25 जुलाई 2017 को शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद से समायोजन रद कर दिया गया। उन्हें फिर से शिक्षामित्र बना दिया गया। समायोजन रद होते ही शिक्षामित्रों को 38,848 रुपये प्रति माह मिलने वाली सैलरी 3500 रुपये मानदेय पर आ गई। इसके विरोध में पूरे यूपी में शिक्षामित्रों ने सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। कई जानें भी गईं। शिक्षामित्रों के विरोध को देखते हुए योगी सरकार का रुख भी थोड़ा नरम पड़ा। सरकार ने शिक्षामित्रों को मिलने वाले 3500 रुपये मानदेय को बढ़ाकर 10,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया। इससे शिक्षामित्रों को थोड़ी राहत जरूर मिली, लेकिन वे सहायक अध्यापक के पद पर तैनाती को लेकर प्रदर्शन करते रहे।
शिक्षक भर्ती में शिक्षामित्रों को वेटेज
सरकार ने गाइड़लाइन जारी करते हुए कहा कि अब सहायक अध्यापक वही बन पाएंगे, जिन्होंने टीईटी पास किया होगा। साथ ही आवेदकों को लिखित परीक्षा भी पास करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने शिक्षक भर्ती में शिक्षामित्रों को वेटेज देने की बात भी कही। इसके मुताबिक, टीईटी पास कर चुके शिक्षामित्रों को लिखित परीक्षा में उनके कार्याअनुभव के आधार पर अधिकतम 25 अंक दिये जाने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टीईटी पास करने वाले शिक्षामित्रों को आने वाली दो शिक्षक भर्तियों में यूपी सरकार मौके देगी।
कल्याण सरकार में शुरू हुई थी शिक्षामित्रों की भर्ती
26 मई 1999 को कल्याण सिंह की सरकार ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति का आदेश जारी किया। इसके लिये आवेदकों की शैक्षिक योग्यता 12वीं पास रखी गई। पहली बार गोरखपुर मंडल में शिक्षामित्रों को 11 महीने के कॉनट्रैक्ट पर रखा गया। एक जुलाई 2001 को सरकार ने पूरे प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी। वर्ष 2008 तक पूरे प्रदेश में शिक्षामित्रों की संख्या एक लाख 71 हजार तक पहुंच गई। शुरुआत में इन्हें मानदेय 1800 रुपये प्रतिमाह मिलता था, बाद में इसे बढ़ाकर 2250 और फिर 2400, 3000 और फिर 3500 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया।
4 अगस्त 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) लागू हो गया। इसके बाद तय हुआ कि प्राइमरी स्कूलों में बिना ट्रेनिंग किए हुए लोग शिक्षक नहीं बन सकते। इसी के बाद से शिक्षामित्रों की भर्ती पर रोक लगा दी गई। वर्ष 2011 में मायावती सरकार ने शिक्षामित्रों को टीचर की ट्रेनिंग दिलवाकर नियमित करने की कवायद शुरू कर दी। इसके लिये दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से शिक्षामित्रों को बीटीसी कोर्स करवाने की बात कही गई। 2012 में शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग के दौरान ही मायावती की सरकार सत्ता से बाहर हो गई। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री बने। सपा सरकार में भी शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग जारी रही। वर्ष 2012-2014 के बीच पहले चरण के कुल 58 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया गया। वर्ष 2015 में दूसरे बैच की ट्रेनिंग पूरी होते ही करीब 90 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना दिया गया। सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त होते शिक्षामित्रों की सैलरी 38,878 रुपये हो गई।
इस बीच टीईटी पास अभ्यर्थियों ने शिक्षामित्रों की नौकरी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गये। 2015 में कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद कर दिया। तत्कालीन अखिलेश सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की। शिक्षामित्रों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की। 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद से समायोजन रद्द कर दिया।
संकल्प पत्र ने बीजेपी ने शिक्षामित्रों से किया था वादा
यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले शिक्षामित्रों का मामला सियासी गलियारों जमकर गूंजा। चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी समेत सभी दलों ने तमाम वादे किये। बीजेपी के संकल्प पत्र में सरकार बनने के तीन महीनों के अंदर शिक्षामित्रों की समस्या को सुलझा लेने की बात कही गई थी। लेकिन अभी भी शिक्षामित्रों की समस्या जस की तस है। हालांकि, बीजेपी सरकार ने शिक्षामित्रों को मिलने वाले 3500 रुपये मानदेय को बढ़ाकर 10000 रुपये कर दिया है। शिक्षामित्र बीजेपी को उसी संकल्प पत्र की याद दिलाकर शिक्षामित्रों के बहाली की मांग कर रहे हैं।

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