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बरसात ने दिया धोखा, यूपी में मानसून सुस्त, जानें आने वाले दिनों का हाल

उत्तर प्रदेश में अभी तक मानसून का असर देखने को नहीं मिला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में कहीं पर अधिक तो कहीं पर कम बारिश की संभावनाएं बनी हुई है। अभी तक के मौसम को देखें तो मानसून सुस्त रहा है। हालाकी, जुलाई 8 अगस्त महीने में बारिश की संभावनाएं हैं।

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लखनऊ

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Prashant Mishra

Jul 12, 2022

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लखनऊ. काफी इंतजार के बाद मानसून यूपी की सीमा में प्रवेश कर गया है लेकिन उम्मीद के विपरीत इसकी चाल ऐसी बदली की दूर-दूर तक बारिश का अता पता नहीं है। मानसून के न आने से प्रदेश में लोग तीखी धूप, बेहाल कर देने वाली उमस के बीच बारिश के लिए तरस रहे हैं। वही, मौसम विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ती जा रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो यह चिंता स्वाभाविक है क्योंकि जुलाई के शुरुआती 11 दिनों की ही बात करें तो लखनऊ में 70 फ़ीसदी कम बरसात हुई है इस दौरान 20.3 मिमी पानी गिरा है।

जून में हुई कम बारिश
पूरे प्रदेश की बात करें तो जून से अब तक बारिश तो हुई है लेकिन यह सामान से 59 प्रतिशत कम रही। जुलाई में 9 और 10 के आसपास बारिश के आसार जताए गए थे लेकिन यह फेल ही रहे अब 14 को छिटपुट बूंदाबांदी की संभावनाएं दिख रही है। मौसम वैज्ञानिक निखिल वर्मा का कहना है कि बरसात का सिस्टम बन रहा है लेकिन यह इतना मजबूत नहीं है कि मानसून को आगे बढ़ा सके।

आने वाले दिनों का हाल
वरिष्ठ भू वैज्ञानिक डॉक्टर सीएम नौटियाल कहते हैं कि जुलाई के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में 542.2 वर्ष 2014 में 266.5 वर्ष 2012 में 372.3 मिमी बारिश हुई है। इन तीन सालों में वर्षा के अनियमित होने के कारण का अनुमान था। इसी प्रकार या भी पूर्वानुमान था कि कुछ दिन पूर्व वर्षा होगी, पर कुछ दिन सूखा रहेगा। इसके विपरीत इन वर्षों में पर्याप्त पानी गिरा। कुछ ऐसी ही स्थिति इस बार बन रही है ऐसे में जुलाई-अगस्त में भारी वर्षा के लिए लखनऊ वासी तैयार रहें।

पिछले 4 साल में सबसे कम बारिश जून में
इस बार प्री मानसून बारिश भी जून के अंत में महज एक ही दिन हुई। मौसम विभाग ने कहा था कि मानसून के आने में देरी हो रही है ऐसे में इस बार शायद ही प्री मानसूनी बारिश की घोषणा की जाए। 30 जून को मानसून की पहली फुहार ने भिगोया था। मानसून की सामान्य चाल भी इस बार करवाएगी इसके संकेत जून में हुई 40.1 मिमी बारिश ने दे दिया है थे।

खेती पर पड़ सकता है बुरा असर
बीरबल साहनी पुरावनस्पति संस्थान लखनऊ की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अंजुम फारुकी कहती हैं कि आमतौर पर मानसून की चाल ही ऐसी होती है कि कभी कहीं ज्यादा तो कहीं पानी कम बरसता है। इससे संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है लेकिन जिस तरह से धरती का तापमान बढ़ रहा है और जल संसाधन सूख रहे हैंB-)थृत या बरसात में बाधक बन रहे हैं बढ़ता ताप हवाओं को कमजोर कर रहा है जिससे कम दबाव वाला सिस्टम विकसित होने के बावजूद बारिश नहीं हो पा रही है वर्तमान में कहीं ज्यादा और कहीं कम बारिश से संतुलन जरूर बना है लेकिन लंबी अवधि तक इस बदलाव का असर खेती किसानी पर बुरी तरह से पढ़ने की संभावनाएं हैं।