
कर्मकांडी ब्राम्हण परिवार से रहे देवीदीन मलखंभ, कुश्ती के अलावा शास्त्र के साथ ही शस्त्र संचालन के शौकीन थे। अभी मुगल सेना संभल भी नहीं पाई थी कि देवीदीन पाण्डेय ने हमला बोल दिया...।
Ram Mandir Katha 17: बाराबंकी गजेटियर में हैमिल्टन लिखते हैं, "जलालशाह ने हिंदुओं के खून का गारा बनाकर लखौरी ईटों से मस्जिद तामीर करने को दी…"
राम जन्मभूमि पर स्थित हिंदुओं के आराध्य का मंदिर टूट चुका था और यह सूचना जंगल की आग की तरह फैल गई। सूर्यवंशी क्षत्रियों के पुरोहित रहे देवीदीन पाण्डेय को जैसे ही सूचना मिली, वह बेचैन हो गए। देवीदीन अयोध्यास्त सूर्य कुण्ड के पास सनेथू गांव के रहने वाले थे। जिनकी विद्वत्ता और वीरता की चर्चा दूर-दूर तक होती थी। कर्मकांडी ब्राम्हण परिवार से रहे देवीदीन मलखंभ, कुश्ती के अलावा शास्त्र के साथ ही शस्त्र संचालन के शौकीन थे। भगवान राम के भक्त देवीदीन पाण्डेय ने ग्रामीणों की ही सेना बना ली और मीर बांकी की सेना का सामना करने निकल पड़े।
पुरोहित को युद्ध में जाता देख निकल पड़े सूर्यवंशी
अपने पुरोहित को युद्ध के लिए जाता देख बड़ी तादात में सूर्यवंशी क्षत्रियों ने साथ हो लिया। देखते ही देखते एक बड़ी सेना तैयार हो गई जिसने बाबर के वजीर मीर बांकी ताशकंदी की सेना को चारों तरफ से घेर लिया। भयंकर युद्ध शुरू हुआ और आसमान में हर-हर महादेव के नारे गूंजने लगे। धरती का रक्त अभी सूखा भी नहीं था कि एक बार फिर से अयोध्या लाल हो गई।
युद्ध के दौरान देवीदीन मुगल सैनिकों से घिर गए और सैनिकों ने इनपर लखौरी ईंटों की बरसात कर दी। जिससे देवीदीन की खोपड़ी से रक्त का फुहारा निकलने लगा। इसके बाद देवीदीन ने अपनी खोपड़ी को पगड़ी से कसकर बांध लिया।
दूसरी तरफ बाबरी सेना का सेनापति और बाबर का वजीर मीर बांकी था। देवीदीन ने लपक कर उसपर भाले से प्रहार किया लेकिन वह हाथी के हौदें में छिपकर बच गया। हालांकि देवीदीन के प्रहार से हाथी का महावत मारा गया और हाथी भी घायल हो गया। इस बीच हाथी के हौंदे में छिपे मीर बांकी ने बंदूक भरकर देवीदीन पर फायर कर दिया। जिससे देवीदीन की मौके पर ही मौत हो गई। तुजुके बाबरी में बाबर अपनी जीवनी में स्वयं लिखता है, "अकेले देवीदीन ने सात सौ मुगल सैनिकों को मार डाला...।"
पिता की मौत के बाद युद्ध मैदान में आई राजकुमारी
संघर्ष का सिलसिला थमा नहीं। देवीदीन के संघर्ष के पहले भीटी के महाराजा महताब सिंह शहीद हो चुके थे। उनके साथ हसबर के राजा रणविजय सिंह भी मुगल सेना से लड़ते हुए शहीद हो चुके थे। लेकिन उनकी बीस वर्षीय पुत्री राजकुमारी जयराज अपने पिता की मौत के बाद मुगल सेना से युद्ध के लिए निकल पड़ी। तीन हजार सैनिकों को लेकर राजकुमारी ने जन्मभूमि के पास गौरिल्ला युद्ध आरंभ कर दिया। राजकुमारी के गुरु संयासी स्वामी महेश्वरानंद थे जो गांव-गांव घुमकर जन्मभूमि पर मुगल आक्रमण की सूचना पहुंचा रहे थे। भयंकर युद्ध जारी था, रामभक्त शांत नहीं बैठै और हमले जारी रहे।
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संयासी, दंडी, वैरागी, संत, महंतों ने अलख जगाना शुरू किया और यहां तक कि बाबरी ढांचा तामीर हो जाने के बाद भी बाबर के बाद तक यह संघर्ष जारी रहा। बाबर के बेटे हूमायूं के समय एक वक्त ऐसा भी आया जब बाबरी ढांचे पर हिंदुओं ने कब्जा कर लिया। लेकिन तीसरे ही दिन शाही फरमान आ गया और जन्मभूमि फिर से छीन ली गई। इसी दल ने अकबर के समय करीब बीस बार हमला किया और आखिरी हमले में शाही सेना काट डाली गई और सारी छावनियां फूंक दी गई। इस युद्ध में संयासी महेश्वारानंद के साथ राजकुमारी जयराज भी वीरगति को प्राप्त हो गई।
श्रीराम जन्मभूमि के रोमांचकारी इतिहास के लेखक स्वर्गीय पंडित रामगोपाल पाण्डेय शारद लिखते हैं, "इस युद्ध का एक परिणाम निकला हिंदुओं ने बाबरी ढांचे की चारदीवारी गिरा दी और बीच में एक चबूतरा का निर्माण कर दिया। उसी चबूतरे पर भगवान श्रीराम की मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा-पाठ शुरू हो गया। हांलाकि यह अकबर का कालखंड था। जैसे ही सूचना अकबर को मिली तो अकबर ने राजा टोडरमल और बीरबल से सलाह मशवीरे के बाद मुगल सैनिकों को आदेश दिया कि इस चबूतरे की रक्षा की जाए और हिंदूओं का पूजा-पाठ में कोई भी असुविधा नहीं होनी चाहिए।"
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रामगोपाल पाण्डेय लिखते हैं, "अकबर के बाद जहांगीर और शाहजहां के शासन तक किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आया लेकिन शाहजहां के बाद उसका पुत्र औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर बैठा। औरंगजेब की सबसे पहले नजर अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि पर गई और उसने तत्काल अपने सिपहसालार जांबाज खां की अध्यक्षता में हमले की योजना बना डाली।"
मुगल कालीन इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है कि औरंगजेब को उसके दरबारी लेखकों ने जिंदा पीर कहा और उसने मंदिरों को तोड़ने का एकसूत्रीय कार्यक्रम ही बना डाला। अयोध्या से लेकर मथुरा, काशी पर औरंगजेब ने हमले शुरू कर दिए...
Updated on:
06 Oct 2023 08:11 am
Published on:
06 Oct 2023 08:05 am
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