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कोणार्क नहीं, ये है सबसे पुराना सूर्य मंदिर, दोनों के बीच है ख़ास रिश्ता

locationमहोबाPublished: Apr 18, 2018 05:03:30 pm

Submitted by:

Dikshant Sharma

जानकारी के अनुसार 12वीं सदी में ही इस मंदिर के स्वरूप पर सबसे पहला वार कुतुबुद्दीन एबक ने किया और धन की लालसा से इसका कुछ हिस्सा गिरा दिया था।

Konark Sun Temple, mahoba sun temple

mahoba sun temple

महोबा। इतिहास के पन्नों में कई अहम घटनाएं समेटे महोबा का सूर्य मंदिर सदियों का साक्षी है। कहा ये भी जाता है कि कोणार्क के सूर्य मंदिर से काफी समय पहले ही चंदेला शासन में बुंदलेखंड में ऐसे पत्थर थे जहां से सूर्य की पूजा की जाती थी। कुछ ख़ास तरह से बने इस मंदिर को देखने की चाहत अब भी बड़ी संख्या लोगों को महोबा खींच लाती है। लेकिन, ये संख्या कोणार्क सूर्य मंदिर के मुकाबले काफी कम है। कोणार्क मंदिर में जहां 25 लाख श्रद्धालु हर साल आते हैं तो महोबा में ये संख्या 12 लाख के करीब है। मंदिर समय के साथ अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।
महोबा से दक्षिण में करीब डेढ़ किमी दूर इस सूर्य मंदिर का निर्माण 850 वीं सदी में राजा राहुल देव बर्मन ने कराया था। रमंदिर में शिलाओं पर कई आकृतियां भी बनी हैं और लिखावट है। मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट के पत्थरों का इस्तेमाल भी देखने को मिल सकता है। इसे देख पुरातत्त्ववेत्ता अधीक्षक एएसई (लखनऊ) इंदु प्रकाश मानते हैं कि कोणार्क मंदिर और महोबा के मंदिर में गहरा रिश्ता है।
जानकारी के अनुसार 12वीं सदी में ही इस मंदिर के स्वरूप पर सबसे पहला वार कुतुबुद्दीन एबक ने किया और धन की लालसा से इसका कुछ हिस्सा गिरा दिया था। मंदिर के अवशेष रहेलिया सागर तट तालाब के किनारे दूर तक फैले देखे जा सकते हैं।
ऐसे में इस प्राचीन मंदिर के संरक्षण के लिए अब तक कोई ठोस योजना तक नहीं बनी। इंदु प्रकाश ने कहा कि फिलहाल सूर्य मंदिर के कायाकल्प करने के शासन से कोई दिशा निर्देश नहीं है। हमारे पास बजट भी सीमित है। अगले वित्तीय वर्ष में इसे प्रस्ताव में शामिल किया जाएगा।
मंदिर के पास बना सूर्य कुंड

सूर्य मंदिर से करीब सौ मीटर पहले सूर्य कुंड बना हुआ है। इसमें तीस फीट गहरा पानी भरा है। कुंड का पानी कभी नहीं सूखता। लोग यहां स्नान भी करते हैं। कुंड में नीचे तक सीढि़यां बनी हैं। परिसर में काली जी का प्राचीन मंदिर भी है।
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