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मनोज रावतः यूं तय किया कॉन्स्टेबल से IAS बनने का सपना, जानिए पूरी कहानी

कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी करने वाले यूथ अक्सर ये शिकायत करते हैं कि उन्हें सफलता नहीं मिलती

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Sunil Sharma

May 14, 2018

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रील लाइफ के कुछ किरदार ऐसे होते हैं, जो रियल लाइफ में लोगों की जिंदगी बदल देते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है आइएएस में ऑल इंडिया ८२४ रैंक हासिल करने वाले मनोज रावत की। विराटनगर के २९ साल के मनोज ने १३ साल की उम्र में सनी देओल स्टारर ‘इंडियन’ फिल्म देखी थी, बस उसी से इंस्पायर होकर उन्होंने आइपीएस बनने की ठान ली और आज खुद सनी देओल ने उनकी सफलता पर उन्हें बधाई दी है। मनोज के अनुसार, यह उनका चौथा प्रयास था। इससे पहले वे २०१४, २०१५ में प्रीलिम्स और २०१६ में मेन्स क्लियर कर चुके थे। मनोज का कहना है कि यदि इस बार भी उन्हें आइपीएस अलॉट नहीं हुआ तो वे एक बार फिर से प्रयास करेंगे।

मनोज की कहानी कई लोगों के लिए इंस्पिरेशन हो सकती है। मनोज इसकी शुरुआत कुछ ऐसे करते हैं... जब आइपीएस बनने की सोची तो सच बताऊं इसका मतलब भी नहीं जानता था, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया, तो उतना ही बड़ा लक्ष्य और बड़ी जिम्मेदारी समझ आने लगी। गांव में किसी ने भी यह ख्वाब नहीं देखा था। पापा प्राइवेट टीचर हैं और मां हाउसवाइफ। हम तीन भाई-बहिन हैं। मैं सबसे बड़ा हूं। जब २००८ में पापा की तबीयत खराब हो गई थी, तो उन्होंने बीमारी के चलते ड्यूटी पर जाना बंद कर दिया था। एेसे में परिवार में बड़ा होने के नाते जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। उसी दौरान कॉन्स्टेबल की वैकेंसी भी निकली हुई थी। मैंने सोचा कि मेरे जॉब करने से फैमिली को सपोर्ट मिल जाएगा।

वो आगे कहते हैं दूसरे प्रयास में मैंने कॉन्स्टेबल की जॉब में सफलता हासिल कर ली, लेकिन लक्ष्य तो मन में सफलता की सीढि़यां चढ़े जा रहा था। मैंने अभी तक अपने सपने को किसी से साझा नहीं किया था। मैंने सोचा कि जॉब के साथ पढ़ाई हो जाएगी, लेकिन एेसा संभव नहीं हुआ। मई २०१३ में मैंने कॉन्स्टेबल की जॉब छोडक़र ज्यूडीशरी में एलडीसी की जॉब जॉइन कर ली। कोर्ट में काफी काम होने की वजह से वहां भी तैयारी का समय नहीं मिल पाता था और उम्र भी ज्यादा हो रही थी। फिर जब २०१३ में ही छोटे भाई की कॉन्स्टेबल की जॉब लगी तो उस दौरान मैंने मां-पापा को आइपीएस के सपने के बारे में बताया। उन्होंने मेरा साथ दिया और मैंने जॉब छोड़ दी।

चार साल में सिर्फ एक शादी अटेंड की
मैंने कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। २०१४ में मैंने जेआरएफ क्लियर किया। पीएचडी एडमिशन के बाद मुझे एक्स्ट्रा काम करना पड़ रहा था, लेकिन एक अच्छी बात यह थी कि मुझे फैलोशिप के जो पैसे मिल रहे थे, उससे मैं सेल्फ डिपेंडेंट हो गया। हालांकि पैरेंट्स ने कभी फाइनेंशियल सपोर्ट से मना नहीं किया। २०१५ में ही मैंने सीआइएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंड के लिए क्वालिफाई कर लिया, लेकिन लक्ष्य तो एक ही था और उसके लिए प्रयास भी जारी था। इसलिए इसे छोडक़र मैंने तैयारी पर ही ध्यान दिया। पिछले चार साल में मैंने सिर्फ एक खास दोस्त की शादी अटेंड की, न तो किसी दोस्त, रिश्तेदार के गया और न ही सोशल मीडिया पर समय बिताया। एक बार कुछ गेम्स डाउनलोड कर लिए थे, लेकिन जब इस पर आधा-एक घंटा खराब होने लगा तो मैंने इन्हें डिलीट कर दिया।

इंटरव्यू का सवाल
लगातार एग्जाम से मैंने अपनी वीकनेस पर काम किया। जैसे शुरू में मेरी राइटिंग प्रेक्ट्सि अच्छी नहीं थी, इस पर मैंने मेहनत की। लास्ट वाले अटेम्प्ट में जब इंटरव्यू की बारी आई तो मुझसे पूछा गया कि आपने इतनी पढ़ाई क्यों की? मैंने कहा ताकि मैं एक बेहतर इंसान बन सकूं। इस पर इंटरव्यूअर ने कहा कि क्या अनपढ़ अच्छा इंसान नहीं हो सकता? तो मैंने कहा कि पढ़ा-लिखा होने से आपमें अच्छे निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है। तब आप भावनात्मक रूप से निर्णय न लेकर तार्किक रूप से अच्छे-बुरे का चयन कर सकते हैं।

टार्गेट किया सेट
मनोज का कहना है कि कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी करने वाले यूथ अक्सर ये शिकायत करते हैं कि उन्हें सफलता नहीं मिलती, लेकिन मुझे लगता है कि यदि मेहनत ईमानदारी से की गई है तो सफलता निश्चित ही मिलेगी। तमाम एग्जाम देने के बजाए एक टार्गेट सेट कर लिया जाए, मेहनत की जाए और आत्मविश्वास को रखा जाए तो सफलता मिल सकती है। यूपीएससी के लिए इंग्लिश भी कोई बैरियर नहीं है। मैंने कई एग्जाम दिए लेकिन मेरा टार्गेट हमेशा आइपीएस रखा और इसमें मैं सफलता के बहुत करीब पहुंच चुका हूं। मेरी इस सफलता पर सनी देओल और आइपीएस एसोसिएशन ने बधाई दी है।

जिसने मुझे किया मोटिवेट
जब मुझे दो अटेम्प्ट में सफलता नहीं मिली तो लगा कि मैंने गलत डिसीजन तो नहीं ले लिया। थोड़ी टेंशन भी हुई, लेकिन मैंने आत्मविश्वास का साथ नहीं छोड़ा। मैं बस यही सोचता था कि मुझे अपना मैक्सिमम एफर्ट देना है। मेरे घरवालों ने कभी मेरी पढ़ाई के बारे में कोई सवाल नहीं किए तो मैंने भी उनका विश्वास नहीं टूटने दिया।