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जन्माष्टमी विशेष: यहां इकब़ाल के लिए इबादत है मुरलीधर की पोशाक तैयार करना

वृन्दावन में कृष्ण की पोशाक बनाने का ये काम हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की एक बेजोड़ मिशाल है क्योंकि यहां पोशाक बनाने वाले ज्यादातर कारीगर मुस्लिम हैं।

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मथुरा

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Amit Sharma

Aug 29, 2018

Janmashtami

जन्माष्टमी विशेष: यहां इकब़ाल के लिए इबादत है मुरलीधर की पोशाक तैयार करना

मथुरा। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन देश-विदेश के सभी कृष्ण मंदिरों में भगवान कृष्ण को नयी पोशाक धारण करायी जाती है। जन्माष्टमी के मौके पर पहनाई जाने वाली इस विशेष पोशाक के महत्व को समझते हुए कृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन में पोशाक बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है। वृन्दावन में कृष्ण की पोशाक बनाने का ये काम हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की एक बेजोड़ मिशाल है क्योंकि यहां पोशाक बनाने वाले ज्यादातर कारीगर मुस्लिम हैं।

ये भाव होता है पोशाक बनाते समय

सुई और आरी से जरी का काम करते ये सभी शख्स वृन्दावन के रहने वाले हैं और पिछले कई सालों से पोशाक बनाने का काम करते आ रहे हैं। मुस्लिम होने के बावजूद हिन्दू धर्म के आराध्य देव भगवान कृष्ण की पोशाक बनाने का काम करते यह शख्स अपनी जीविका चला रहे हैं बल्कि ये काम करके उन्हें यह महसूस होता है जैसे वो भगवान कृष्ण की सेवा-पूजा कर रहे हों। इसकी वजह है हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस काम में बरती जाने वाली साफ़-सफाई। किसी की धार्मिक भावना को ठेस न पहुंचे इसके लिए वह पोशाक बनाने से लेकर पहुंचाने तक साफ़- सफाई का खास ख्याल रखते हैं। धर्म की बंदिशों को तोड़ते हुए ज्यादातर मुस्लिम पोशाक बनाने का काम करते हैंं और सभी हिन्दू धर्म की आस्था का खयाल रखते हुए इस काम को अंजाम दे रहे हैं। वैसे तो वृन्दावन में साल भर ही ये पोशाक बनाने का काम चलता रहता है, लेकिन जन्माष्टमी नजदीक आते-आते ये अपने शबाब पर होता है और कारीगरों को दिन में 15 से 16 घंटे तक काम करना पड़ता है।

पथवारी मंदिर और शाही जामा मस्जिद है एकता की मिशाल

वृन्दावन में हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव के इस काम से जुड़ा एक सकारात्मक पहलू नगर की शाही जामा मस्जिद की इमारत ब पथवारी देवी मंदिर भी है। जिसके आसपास के क्षेत्र में पोशाक बनाने का काम जोरों पर किया जाता है। यहां से तैयार की हुई पोशाकें वृन्दावन के पोशाक-व्यवसायियों के पास पहुंचती हैं और फिर वहां से अलग-अलग मंदिरों और घरों में पहुंचती हैं, जहां कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाल कृष्ण को धारण कराया जाती है।