वर्जिनिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी की ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं की टीम इस पर काम कर रही है। वह न्यूट्रॉन स्केटरिंग के जरिए देख रहे हैं कि कोरोना वायरस कोशिका झिल्ली में कैसे प्रवेश करता है। इसे किस तरह और किस स्तर पर प्रभावित करता है। वह यह भी जांच रहे हैं कि इस प्रक्रिया को किस चरण में और कैसे रोका जा सकता है।
शुरुआती जांच में मिली सफलता के आधार पर शोधकर्ता स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करके वायरस को नष्ट करने की कोशिश में हैं। अभी तक उस कारक यानी कोशिका झिल्ली पर ध्यान कम दिया जा रहा था, जहां से वायरस शरीर मेे प्रवेश करने के बाद सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा था। शोधकर्ता इससे झिल्ली के गुणों और इसकी आणविक समझ को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
शोधकर्ता अपनी रिसर्च में यह पता लगा रहे हैं कि वायरस के संपर्क में आने पर झिल्ली कैसे बदल जाती है और यह संशोधन प्रक्रिया को रोक सकती है या नहीं। यही नहीं, यह टीम झिल्ली और वायरल रीबाइक प्रोटीन की संरचना की जांच के लिए खास तरह के तरल पदार्थ परावर्तक का उपयोग भी कर रही है। टीम के मुताबिक, इसकी टेस्टिंग शुरू कर दी गई है। शोधकर्ताओंं की टीम रिसर्च के जरिए यह निर्धारित कर रही है कोशिका की आणविक स्तर और जैविक परिकल्पनाओं के बीच सामंजस्य कैसे व्यवस्थित करें।
शोधकर्ताओं ने हाल ही में इससे जुड़े नमूने का प्रदर्शन किया, जिसमें मानव फेफड़ों के भीतर कोशिका झिल्ली के आकार और संरचना को बारीकी से दर्शाया गया है। उन्होंने रिसर्च में देखा कि मेलाटोनिन या एजिथ्रोमाइसिन के संपर्क में आने पर झिल्ली अपने गुण कैसे बदल रही है। इसमें उन दवाओं और तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जो वर्तमान में कोविड-19 के लक्षण दिखने पर अमल में लाए जा रहे हैं।