दरअसल, सीबीआई की विशेष अदालत राउज एवेन्यू कोर्ट में बृहस्पतिवार को पी चिदंबरम सुनवाई के लिए पहुंचे। यहां पर सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चिदंबरम को न्यायिक हिरासत में भेजने की पैरवी की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले की गंभीरता समझी और फिर आदेश पारित किया।
पी चिदंबरम भेजे गए तिहाड़ जेल, एक क्लिक में जानिए क्या है INX मीडिया केस वहीं, कपिल सिब्बल ने चिदंबरम को न्यायिक हिरासत में भेजे जाने का विरोध करते हुए कहा कि अभी तक उनके मुव्वकिल पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ का कोई आरोप नहीं लगा है। यह पूरा मामला आरोपी के खिलाफ दस्तावेज का है। ऐसे में उन्हें जमानत दे देनी चाहिए।
सिब्बल ने दलील दी कि चिदंबरम को सीबीआई ने 15 दिन के लिए हिरासत में रखा, लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पेश कर सकी। उन्होंने यह भी कहा अगर चिदंबरम को सीबीआई हिरासत में नहीं लेना चाहती है, तो वह स्वयं ईडी के सामने सरेंडर कर सकते हैं, लेकिन उन्हें न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जा सकता।
जबकि इसके विरोध में मेहता ने दलील दी कि यह मामला पी चिदंबरम को न्यायिक हिरासत में भेजने से संबंधित है। अदालत ही जमानत की याचिका पर फैसला लेगी। उन्होंने कहा की जब तक जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं होती, अदालत में बहस की कोई जरूरत नहीं है।
एटीएम-क्रेडिट कार्ड फ्रॉड से बचने के 10 अचूक तरीके सिब्बल ने इस पर कहा कि न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के लिए न्याय होना चाहिए। ज्यूडिशियल रिमांड पर भेजे जाने का आदेश तथ्यों के आधार पर होना चाहिए।
वहीं, चिदंबरम ने भी कहा कि क्या इस बात कोई सबूत है जब उन्होंने गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया हो। क्या उन्होंने किसी भी दस्तावेज को प्रभावित करने का कभी प्रयास किया है? चिदंबरम ने स्पष्टीकरण दिया कि उन्होंने कभी भी सबूत मिटाने का प्रयास नहीं किया।
गौरतलब है कि अदालत ने पहले ही पी चिदंबरम को 5 सितंबर यानी आज तक के लिए सीबीआई की हिरासत में भेजा था। आज उनकी हिरासत की अवधि समाप्त हो रही थी। जबकि सुप्रीम कोर्ट से भी चिदंबरम को राहत नहीं मिली थी और उन्हें अंतरिम जमानत नहीं मिल सकी। इसके बाद से ही प्रवर्तन निदेशालय द्वारा चिदंबरम को गिरफ्तार किए जाने का रास्ता साफ हो गया था।