
नई दिल्ली।
मैं एक बेहतर भविष्य चाहती हूं, सभी बच्चों और आने वाली पीढिय़ों के भविष्य को बचाना चाहती हूं। यह मेरी इच्छा नहीं बल्कि संकल्प है। 2013 की बाढ़ के उस रूप से मेरे मन में डर बैठ गया था। तब मैं करीब छह साल की थी। जब भी बादल गरजते और बारिश होती तो मुझे डर लगने लगता था। मन में यही विचार आता कि बादल फट गया तो या होगा? तब मुझे पता नहीं था कि यह प्राकृतिक आपदा है। मैं अपने माता-पिता से सिर्फ बाढ़ के बारे में बातें करती। बाढ़ को कैसे रोक सकते हैं, उसके बारे में पूछा करती। तब उन्होंने मुझे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बताना शुरू किया।
जब मैंने पिटीशन दायर की
मैं सोचने लगी कि मुझे मेरा और आने वाली पीढिय़ों का भविष्य बचाने के लिए कुछ ऐसा करना होगा, जिससे पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। 2017 में मैंने भारत सरकार के खिलाफ एक पिटीशन दायर की जिसमें कहा गया कि सरकार पर्यावरण को बचाने के लिए कोई ठोस ए शन नहीं ले रही है। इस बीच मुझे फ्रांस में एक सम्मेलन में जाकर अपनी बात रखने का मौका मिला। जब 2019 में यूएन की लाइमेट चेंज समिट में गई तो वहां जानने को मिला कि दुनिया में पर्यावरण को लेकर बच्चे और युवा किस तरह का काम कर रहे हैं।
पर्यावरण के लिए आगे आए युवाशक्ति
मुझे महसूस होने लगा कि पर्यावरण को लेकर जितनी जागरूकता दूसरे देशों में है, उतनी हमारे यहां नहीं। हमारे यहां सबसे ज्यादा जंगल खत्म हो रहे हैं। इसलिए मुझे लगा कि हम बच्चों को यदि अपने भविष्य को बचाना है तो जागरूक होना बेहद जरूरी है। इसके लिए युवाशक्ति को आगे आना ही होगा। रिद्धिमा के पिता दिनेश चंद पांडे कहते हैं कि मुझे बेटी पर गर्व है। इतनी-सी उम्र में वह इतना बड़ा काम कर रही है। उसकी पढ़ाई पर भी हम पूरा ध्यान देते हैं। लेकिन कभी उसे इस काम से रोका नहीं है।
Published on:
06 Dec 2020 12:46 pm
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