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Chhava Movie Review: ‘छावा’ की गर्जना! विक्की कौशल की फिल्म सिनेमाई इतिहास में एक नया अध्याय, पढ़ें रिव्यू

Chhava Movie Review In Hindi: विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना, अक्षय खन्ना, आशुतोष राणा, स्टारर मूवी छावा रिलीज हो चुकी है। वेलेंटाइन डे के मौके पर आई इस मूवी का कैसा है रिव्यू पढ़ें यहां। 

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Chhava Movie Review

Chhava Movie Review

फिल्म: छावा 

डायरेक्टर: लक्ष्मण उतेकर

कास्ट: विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना, अक्षय खन्ना, आशुतोष राणा, दिव्या दत्ता, विनीत कुमार सिंह, डायना पेंटी

अवधि: 161 मिनट

रेटिंग: 4/5

Chhava Movie Review In Hindi: छावा रिलीज हो चुकी है। वेलेंटाइन डे के मौके पर आई इस मूवी का कैसा है रिव्यू पढ़ें यहां। फिल्म में जैसे ही विक्की कौशल घोड़े पर सवार होकर दमदार एंट्री मारते हैं, 'छावा' की कहानी एक रोमांचक सफर पर निकल पड़ती है। 

छावा रिव्यू 

लक्ष्मण उतेकर के निर्देशन में बनी ये पीरियड एक्शन फिल्म मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है और हर फ्रेम में दमदार नजर आती है। ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि साहस, बलिदान और विश्वासघात की महाकाव्यात्मक गाथा है, जो आपको झकझोर कर रख देगी। 'छावा' की भव्यता, शानदार विजुअल्स और विक्की कौशल का दमदार अंदाज इसे बड़े पर्दे पर देखने का एक यादगार अनुभव बना देता है। अगर आपको इतिहास, एक्शन और बॉलीवुड का परफेक्ट मिश्रण पसंद है, तो ये फिल्म मिस करने लायक नहीं!

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कैसा है अभिनय 

विक्की कौशल की ये परफॉर्मेंस सिर्फ अभिनय नहीं, बल्कि इतिहास का दोबारा जीवंत होना है। उनकी दमदार स्क्रीन प्रेजेंस और उग्रता ऐसी है कि हर फ्रेम में वो मराठा योद्धा की आत्मा को सजीव कर देते हैं। जैसे ही वह युद्ध के मैदान में उतरते हैं, ऐसा महसूस होता है कि दर्शक खुद भी उस दौर में पहुंच गए हैं। हर सीन में उनका जुनून और शौर्य देखने लायक है, लेकिन जब फिल्म अपने भावनात्मक शिखर पर पहुंचती है, तो विक्की की अदाकारी आपके रोंगटे खड़े कर देती है।

रश्मिका मंदाना भी छाई 

रश्मिका मंदाना ने ‘छावा’ में महारानी येसूबाई के रूप में एक यादगार छाप छोड़ी है। उनकी मुस्कान भले ही हमेशा दिल जीतने वाली हो, लेकिन इस किरदार में वह सिर्फ खूबसूरती ही नहीं, बल्कि साहस, बुद्धिमानी और अटूट प्रेम को भी पूरी शिद्दत से जीती हैं। येसूबाई सिर्फ एक रानी नहीं थीं, बल्कि संभाजी महाराज की सबसे बड़ी ताकत थीं, और रश्मिका ने इस किरदार में वही मजबूती और गहराई दिखाई है।

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अक्षय खन्ना की दमदार परफॉर्मेंस 

अक्षय खन्ना का औरंगजेब ना गरजता है, ना चीखता है, फिर भी उसकी मौजूदगी भारी पड़ती है। वह अपने किरदार को शोर से नहीं, बल्कि सटीक हावभाव और नियंत्रित संवाद अदायगी से निभाते हैं। उनके चेहरे पर एक ऐसी ठंडक है जो औरंगजेब के अंदर की निर्दयता को दर्शकों तक पहुंचाती है। जब वो बोलते हैं, तो शब्द तीर की तरह चुभते हैं, और जब चुप रहते हैं, तो सिर्फ उनकी आंखों से ही पूरा किरदार जीवंत हो उठता है।

‘छावा’ की कहानी को सिर्फ मुख्य किरदारों ने नहीं, बल्कि इसके सहायक कलाकारों ने भी मजबूती दी है। आशुतोष राणा सरलष्कर हंबीरराव मोहिते के रूप में फिल्म में जोश, रणनीति और मराठा गर्व को शानदार तरीके से प्रदर्शित करते हैं। उनकी संवाद अदायगी और बॉडी लैंग्वेज किरदार को और अधिक प्रामाणिक बना देती है। दिव्या दत्ता ने राजमाता के रूप में अपनी अदाकारी से ऐसी परतें जोड़ी हैं कि दर्शकों को हर सीन में उनके इरादों पर सवाल उठता रहता है।

कैसा है डायरेक्शन 

अगर फिल्म की आत्मा इतिहास है, तो इसका दिल इसके युद्ध दृश्य हैं। हर एक्शन सीन एक अलग रोमांच लेकर आता है। कहीं घात लगाकर हमला, तो कहीं खुले मैदान में महायुद्ध। युद्ध की भव्यता के साथ-साथ इसमें रणनीतिक चतुराई भी झलकती है, जो इसे सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक अनुभव बनाती है। मराठाओं की गोरिल्ला वारफेयर तकनीक और रणनीतिक चालें लड़ाई को और भी रोमांचक बना देती हैं। खासकर चार प्रमुख युद्ध दृश्य, हर एक अगले से ज्यादा भव्य और जोश से भरा, फिल्म को एक विजुअल मास्टरपीस बना देते हैं।

फिल्म सिर्फ युद्ध के मैदान में भिड़ंत की कहानी नहीं कहती, बल्कि रणनीति, नेतृत्व और समझदारी से लड़ी गई लड़ाइयों को भी बखूबी पेश करती है। मराठाओं की मात्र 25,000 सैनिकों की सेना मुगलों की विशाल फौज से लड़ने के लिए ताकत से ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल करती है। फिल्म में डायना पेंटी का किरदार जीनत जब कहती हैं, "हमारे यहां सैनिकों से ज्यादा बावर्ची हैं," तो यह संवाद न सिर्फ मज़ाकिया है, बल्कि मराठाओं और मुगलों के बीच के अंतर को भी दर्शाता है। हर रणनीतिक चाल दर्शकों को रोमांचित करती है और यह दिखाती है कि असली जीत सिर्फ संख्या से नहीं, बल्कि सोच और तैयारी से मिलती है।

फिल्म का संगीत इसकी कहानी का एक और नायक है। हर धुन, हर बीट फिल्म के इमोशंस को और गहराई देती है, चाहे वो किसी भावुक दृश्य में बजती हल्की धुन हो या युद्ध के समय गूंजने वाला जोशीला संगीत। ये सिर्फ बैकग्राउंड स्कोर नहीं, बल्कि कहानी की धड़कन है, जो हर सीन को और भी असरदार बना देता है।

‘छावा’ सिर्फ एक ऐतिहासिक फिल्म नहीं, बल्कि शौर्य, बलिदान और मराठा स्वाभिमान की गूंज है।