
Maharastra Assembly Election : पत्रिका ग्राउंड रिपोर्ट : पेसा ने माथे पर डाली पेशानी, हां कहें तो भी न कहें तो भी परेशानी
बरुण सखाजी.
गढ़चिरौली. आदिवासी गांवों को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की 5वीं अनुसूची पेसा गढ़चिरौली के लिए बड़ी समस्या बनकर उभरा है। इसमें आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकारों ने महज 10 फीसदी आदिवासी आबादी वाले गांवों को पेसा के तहत विशेषाधिकारी दे डाला। इससे वहां रह रहे शेष ओबीसी परेशानी में पड़ गए। इस चुनाव में यही बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। महाराष्ट्र के बस्तर कहे जाने वाले गढ़चिरौली में करीब 1200 छोटे-बड़े गांव हैं। महाराष्ट्र सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक राजस्व गांवों की संख्या 600 पार है। इनमें सभी आदिवासी गांव नहीं हैं, लेकिन पूर्ववर्ती शासनों ने वोट बैंक को साधने के लिए बिना मुकम्मल पड़ताल किए अनेक गांवों को पेसा में शामिल कर लिया। इससे वहां शेष गैर आदिवासी लोगों के पास अवसर समाप्त हो गए। ऐसा पहली बार है जब पेसा का मुद्दा अहेरी, अरमोरी यहां तक कि गढ़चिरौली तक में बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। हालांकि भाजपा ने ओबीसी वोटर को ध्यान में रखते हुए ऐसे गांवों को पुन: सर्वे करवाने का वादा किया था, लेकिन यह प्रक्रियाधीन है।
ओबीसी का विरोध
अरमोरी में ओबीसी नेता जगराम गावड़े ने कहा, पेसा के कारण ओबीसी के साथ अन्याय हो रहा है। हम इसके विरोधी नहीं, लेकिन आदिवासी जनसंख्या महज 10 फीसद है वहां यह युक्तियुक्त नहीं। मौजूदा सरकार ने 2014 में किए वादे को निभाया जरूर है, लेकिन प्रक्रिया इतनी जटिल और कठिन है कि कई गांव इसमें शामिल हैं।
भाजपा का रुख साफ, अमल पर फंसी
भाजपा को 2019 के विधानसभा चुनाव में पेसा पर जवाब देते नहीं बन रहा। भाजपा के अहेरी से उम्मीदवार अंबरीश राव आतराम ने बताया कि हमारा नजरिया स्पष्ट है, जहां आदिवासी बाहुल्य है वहां कोई पेसा खत्म नहीं कर सकते और जहां अन्य समाज का बाहुल्य है वहां आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए फिर से निर्धारण करवा रहे हैं। यह प्रक्रिया है, जो समय लेती है।
कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बना पेसा
कांग्रेस मसले पर संभलकर बोल रही है। अहेरी से कांग्रेस उम्मीदवार दीपक आतराम ने कहा, पेसा आदिवासी हितों की रक्षा करता है। हम विभाज की सियासत नहीं करते। भाजपा सरकार ने वादा किया था, लेकिन किया नहीं। कई गांव ऐसे हैं जहां समस्याएं हैं। यह सामाजिक मसला, जिसे निपटा लिया जाएगा।
क्या है पेसा एक्ट, समझें यहां
प्रोवीजन ऑफ द पंचायत एक्सटेंशन शिड्यूल एरियाज एक्ट-1996 यानी पेसा एक्ट में आदिवासी गांवों को विशेषाधिकार प्राप्त हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय के मुताबिक आदिवासी गांवों की पंचायत को विधानसभाओं के समान अधिकार हैं। एक बार पेसा गांव होने के बाद गैर आदिवासियों को राजनीतिक अवसर नहीं मिलते। वहां की ग्रामसभा में सभी आदिवासी फैसले करते हैं।
जशपुर में भाजपा पर भारी पड़ा था पेसा
साल 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से एक साल पहले जशपुर में पेसा एक्ट की वकालत ने जोर पकड़ा। ओएनजीसी के रिटायर्ड अफसर और पूर्व आइएएस एचपी किंडो ने यहां पत्थलगड़ी आंदोलन शुरू किया। जशपुर वनक्षेत्र के गांवों में चारों ओर कब्जे वाले क्षेत्र को चिन्हित कर पत्थर गाड़े गए। इन पत्थरों पर पेसा एक्ट के तहत दिए अधिकारों की बात की गई। आंदोलन में आदिवासी गांवों में भारतीय संसद या विधानसभा से पारित कानून न लागू होने, गांव का भारत संघ का हिस्सा न होने जैसे शब्द लिखे थे। आंदोलन को रमन सरकार ने कुचल दिया, लेकिन जशपुर जिले की तीन विधानसभा सीटों में से भाजपा एक भी नहीं बचा पाई।
Published on:
19 Oct 2019 04:40 pm
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