
Mumbaikar's negligence, Lifetime falling on Life
अरुण लाल
मुंबई. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की लाइफ लाइन मानी जाती है यहां की लोकल ट्रेन। खूबी यह कि मुंबई की लोकल स्टेशनों पर मिनट में नहीं कुछ सेकंडों के लिए रुकती है और फिर गंतव्य की ओर सरपट भाग लेती है। दो राय नहीं कि भागती-दौड़ती मायानगरी को पर लगाती है यहां की हांफती लोकल। पत्रिका यहां लोकल ट्रेन से जुड़े ऐसे पहलू पर सरकार और प्रशासन का ध्यान खींचना चाहती है, जिस पर जरूरत के बावजूद ध्यान नहीं दिया गया है। यह मामला है लोकल से महानगर में होने वाली मौतों का। जिसे कभी गंभीरता से नहीं लिया गया है। बीते पांच साल के दौरान महानगर में लोकल ट्रेन से 19 हजार 439 लोगोंं की जान गई है। 19 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इनमें बड़ी संख्या में वे लोग भी हैं जिन्हें, दुर्घटना ने दिव्यांग बना दिया। सवाल उठता है कि आखिर इतनी सस्ती कैसे हो गई इंसान की जान? लोकल से मौत के आंकड़ों पर गौर करें तो महामुंबई क्षेत्र में फैले लोकल नेटवर्क पर रोजाना 10 लोग जान गंवाते हैं। कमोबेश इतने ही लोग हर दिन घायल होते हैं। हजारों परिवारों का रुदन खटर-पटर करती मुंबई लोकल के शोर के नीचे दब-सा जाता है। छोटी-छोटी बातों को लेकर सजग मुंबईकरों के लिए ट्रेन से होने वाली मौतें सिर्फ एक आंकड़ा बन कर रह गईं हैं। उल्लेखनीय है कि महानगर में हर दिन 75 लाख लोग लोकल से सफर करते हैं।
लोकल से मौत के आंकड़े
साल 2013 में लोकल ट्रेन से एक्सीडेंट में 3,506 लोगों ने जान गंवाई, वहीं 3,318 लोग घायल हुए थे। इसी तरह 2014 में 3,423 लोगों की मृत्यु हुई और 3,299 लोग घायल हुए। 2015 में 3,304 लोगों की मौत हुई और 3,349 लोग घायल हुए। 2016 में कुल 3,202 लोगों ने जान गंवाई तो 3,363 लोग घायल हुए। 2017 में कुल 3,014 लोगों की मृत्यु हुई और 3,345 लोग घायल हुए। अगस्त 2018 तक कुल 2,981 लोगों की मृत्यु हुई और 2,300 से ज्यादा लोग घायल हुए।
नियम नहीं मानना भी मुसीबत
नियम विरुद्ध होने के बावजूद रोज लोग पटरी पार करते हैं। पटरी पार करते हुए कई लोगों की मौत भी होती है। बावजूद इसके लोग अपने अमूल्य जीवन को दांव पर लगाते रहते हैं। अधिकांश लोगों की मौत गोल्डन ऑवर (समय पर इलाज न मिलने) में उपचार नहीं हो पाने के चलते होती है। रेलवे के पास घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए स्टे्रचर व हमाल तक नहीं हैं। यह काम वे बहुत कम पैसे देकर कुलियों से कराते हैं। कुली इस काम से बचते हैं, और मौत का आकड़ा बढ़ जाता है। जल्दबाजी सबसे बड़ा कारण लोगों के दिमाग पर ऑफिस, स्कूल, कॉलेज जैसे स्थानों पर जल्द पहुंचने का भूत ऐसे सवार होता है कि वे बिना सोचे ट्रेन में लटक निकल जाते हैं। अनजाने में ही रेलवे ट्रैक पार करने का प्रयास करते हैं। लोगों को लगता है कि वे नहीं गिरेंगे, पर रोज गिरते हैं। कुछ जान गंवाते हैं तो कुछ गंभीर रूप से घायल भी होते हैं। रेल प्रशासन भीसजग नहीं महानगर में रेल सेवा नेटवर्क पर कई किलर प्वाइंट हैं, जहां लोग अपनी जान गंवा देते हैं। रेल प्रशासन ने भी इस मामले में उतनी सजगता नहीं दिखाई, जितनी की होनी चाहिए। वड़ाला एक्सपेरीमेंट्स से बहुत से लोगों की जान बचने की संभावना के बावजूद जाने क्यों रेलवे ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया।
Published on:
10 Jan 2019 11:27 pm
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