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आवंटी जोह रहे राहत की बाट -हाउसिंग बोर्ड  नागौर

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Allottees are waiting for relief

एसीबी की जांच में हो चुकी घटिया निर्माण की पुष्टिटीपीआई ने भी की घटिया निर्माण की पुष्टि

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फिर भी ठेकेदारों के खिलाफ नहीं की कार्रवाईआवंटी जोह रहे राहत की बाटहाउसिंग बोर्ड मकान बेचकर भूला, आवंटियों में आक्रोश

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नागौर. शहर के बालवा रोड स्थित डॉ. भीमराव अबेडकर आवासीय योजना के मकानों में अधिकारियों की मिलीभगत से ठेकेदारों ने खड़े किए घटिया मकानों की हाउसिंग बोर्ड ने अब तक सुध नहीं ली है। जो मकान बिकने से रहे थे, उन्हें आधे दामों में बेचकर अधिकारी अब कुंभकर्णी नींद सो रहे हैं। ठेकेदारों की ओर से तैयार किए गए घटिया मकानों में आवंटी रहने से कतरा रहे हैं ।

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कई मकानों की छत गिर रही है तो कई में बबूल की झाड़ियां उग आई हैं।

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हाउसिंग बोर्ड घटिया मकानों की नहीं ले रहा सुधएसीबी जांच के साथ तत्कालीन मुयमंत्री राजे ने आवासों की गुणवत्ता की जांच स्वतंत्र तृतीय पक्ष (टीपीआई) से करवाने के निर्देश दिए थे। सरकार के आदेश पर हाउसिंग बोर्ड ने सेक्टर तीन में निर्माणाधीन 108 आवासों की गुणवत्ता की स्वतंत्र तृतीय पक्ष से जांच एवं परामर्श के लिए भारत सरकार के उपक्रम सर्टिफिकेशन इंजिनियर्स इंटरनेशनल लि. नवी मुबई को 22 जुलाई 2016 को कार्यादेश दिए। सीईआईएल ने विस्तृत जांच के बाद 8 अगस्त 2016 को जांच रिपोर्ट पेश की, जिसमें मकानों के मौजूदा प्लास्टर को हटाकर दूसरा करने की सलाह दी गई, लेकिन बोर्ड ने न तो प्लास्टर हटाया और न कोई सुधार करवाया।

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विधि विज्ञान प्रयोगशाला जयपुर की परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार हाउसिंग बोर्ड के सेक्टर एक के 60 मकानों में 2920 बैग सीमेंट कम काम में लेना पाया गया, जिसकी वर्ष 2012 में कीमत 7 लाख, 30 हजार 242 रुपए आंकी गई। इसी प्रकार सेक्टर 4 के 45 मकानों में 2604 बैग सीमेंट कम काम ली गई, जिसकी दस साल पहले कीमत 6 लाख, 51 हजार 160 रुपए थी। इस प्रकार दोनों फर्मों ने सेक्टर एक व चार के 105 मकानों में कुल 13 लाख, 81 हजार 402 रुपए का नुकसान पहुंचाया तथा हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन आवासीय अभियंता हाकमचंद पंवार व परियोजना अभियंता प्रमोद कुमार माथुर ने दोनों कन्ट्रक्शन कपनियों से मिलीभगत कर घटिया निर्माण कार्य होने के बावजूद फर्मों को भुगतान कर दिया। इसे लेकर एसीबी ने करीब डेढ़ साल की जांच पड़ताल के बाद 8 अक्टूबर 2014 को हाउसिंग बोर्ड से जुड़ा पहला प्रकरण 353/2014 दर्ज किया था।

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जी-शिड्यूल के अनुसार सेक्टर नबर 3 में मध्यम आय वर्ग-ए के 54 आवासों की चिनाई कार्य में 55,487 रुपए की सीमेंट कम काम ली गई। पीसीसी कार्य में सीमेंट, बजरी व रोड़ी का अनुपात 1:4:8 निर्धारित था, इसमें ठेकेदार ने सीमेंट, बजरी व रोड़ी का औसत अनुपात 1:6:7 के आधार पर कोई अनुपात नहीं बनता, इसलिए इसमें सीमेंट की खपत नहीं निकाली जा सकी। प्रयोगशाला ने माना कि इसमें एक भाग रोड़ी कम डाली व दो भाग बजरी ज्यादा डाली, जिससे सीमेंट कंकरीट की ताकत कमजोर हो गई।जो मकान नहीं बिके, उन्हें आधी दर पर बेचाहाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के चार सेक्टर में करीब 2100 मकान बनाए गए, जिनमें से करीब 1500 मकान हाउसिंग बोर्ड ने पहले ही बेच दिए, लेकिन जब घटिया निर्माण का मामला उठा और एसीबी में तीन प्रकरण दर्ज किए गए तो करीब पांच सौ आवंटियों ने मकान सरेंडर कर दिए, जबकि कुछ बिके ही नहीं। इस पर हाउसिंग बोर्ड ने पांच साल पहले मकानों को बेचने के लिए 50 प्रतिशत छूट देते हुए आधी कीमतों में बेच दिए। ऐसे में पुराने आवंटियों को पूरे दाम चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि छह-सात साल बाद जिन्होंने मकान खरीदे, उन्हें आधी दर में मकान मिल गए।इसी प्रकार सेक्टर नबर 2 में मध्यम आय वर्ग-ए के 68 मकानों की निर्माण सामग्री से लिए गए नमूनों की जांच रिपोर्ट में सामने आया कि ठेकेदार करणी कन्ट्रक्शन कपनी ने 1128 सीमेंट के बैग कम काम में लिए, जिसकी कुल कीमत 2 लाख, 82 हजार 30 रुपए आंकी गई। 4 दिसबर 2017 को प्रकरण संया 350 व 351 दर्ज किए गए।

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हाउसिंग बोर्ड दे राहतघटिया निर्माण के बावजूद हाउसिंग बोर्ड ने जिन लोगों से पूरे दाम वसूले हैं, उन्हें राहत देनी चाहिए। जल्द ही इस सबन्ध में बोर्ड ने सकारात्मक रुख नहीं दिखाया तो आंदोलन किया जाएगा। जब एफएसएल जांच में यह बात साबित हो गई है तो फिर सरकार को इस सबन्ध में उचित कदम उठाना चाहिए।

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यू खुलती गई पोलसीएम के निर्देश पर प्रकरण दर्ज, पर कार्रवाई नहींजनता व सरकार के दबाव में एसीबी ने अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ तीन प्रकरण दर्ज किए, लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। एक प्रकरण 10 साल पहले तथा दो प्रकरण तत्कालीन मुयमंत्री वसुंधरा राजे के निर्देश पर सात साल पहले एसीबी ने दर्ज किए थे, लेकिन जांच में भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद एसीबी ने कार्रवाई नहीं की।विधि विज्ञान प्रयोगशाला की जांच में खुली थी पोलएसीबी ने हाउसिंग बोर्ड के मकानों से अक्टूबर 2015 में लिए गए नमूनों की जांच विधि विज्ञान प्रयोगशाला जयपुर में करवाई थी। सभी नमूनों में यह पाया गया कि ठेेकेदारों ने अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों रुपए की सीमेंट निर्धारित मात्रा से कम काम ली। इससे मकानों की स्थिति खराब है। इसके बावजूद दोषी अधिकारियों एवं ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। यह एसीबी एवं सरकार की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा करता है।