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Nagaur patrika…रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम के अभाव में बरसात का लाखों लीटर पानी यूं ही बह जा रहा व्यर्थ…VIDEO

नागौर. रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्रति न तो जागरुकता आई , और न ही प्रावधानों की पालना हुई। फलस्वरूप इस बार के मानसून में भी बरसात के दौरान करोड़ों लीटर पानी नालियों, सडक़ों एवं नालों में यूं ही व्यर्थ बह गया। यह सिलसिला अभी भी बदस्तूर जारी है। स्थिति केवल रिहायसी या आवासीय क्षेत्रों […]

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नागौर. रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्रति न तो जागरुकता आई , और न ही प्रावधानों की पालना हुई। फलस्वरूप इस बार के मानसून में भी बरसात के दौरान करोड़ों लीटर पानी नालियों, सडक़ों एवं नालों में यूं ही व्यर्थ बह गया। यह सिलसिला अभी भी बदस्तूर जारी है। स्थिति केवल रिहायसी या आवासीय क्षेत्रों की नहीं है, बल्कि सरकारी संस्थानों की भी बनी हुई।
नियमों को ताक पर रखा
300 वर्गमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल के भूखण्ड पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाना अनिवार्य है। ऐसे लाखों भवन निर्मित हैं, लेकिन हार्वेस्टिंग सिस्टम 5 से 8 फीसदी भवनों में ही बनाए गए। इसमें भी कई तो महज दिखावा हैं। जिम्मेदारों की जिम्मेदारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दो सालों में नियमों को ताक पर रखने वाले एक भी निर्माणकर्ता के खिलाफ इस बाबत कोई कार्रवाई नहीं की गई। यही कारण है कि मानसून में करोड़ों लीटर पानी नालों में व्यर्थ बहाया जा रहा है।
कलक्ट्रेट परिसर: खानापूर्ति
कलक्ट्रेट परिसर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तो लगा है, लेकिन यह तकनीकी खामियों के साथ ही देखभाल के अभाव में यह लगभग अनुपयोगी हो गया है। सिस्टम इस तरह से लगना चाहिए था कि इससे पूरे परिसर का भवन कवर्ड होता, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां लगे हुए सिस्टम की साफ-सफाई का ध्यान भी नहीं रखा गया। वर्षा जल संग्रह के लिए बने टांका में ही कई जगह दरार है। इसमें बमुश्किल पानी आया भी तो ठहता नहीं,बल्कि व्यर्थ बह जाता है। इसके अलावा छतों के रास्ते सडक़ की ओर पाइप लगाए गए हैं। इससे भी पूरा पानी बह जाता है।
जिला परिषद: ग्रामीण प्रकोष्ठ
जिला परिषद के ग्रामीण प्रकोष्ठ में वर्षा जल संग्रह करने की जगह छतों के रास्ते पानी बाहर निकालने के लिए पाइप लगाए गए हैं। इसके चलते इस बार भी अब तक काफी मात्रा में पानी यूं ही व्यर्थ बहकर चला गया।
आवासीय एवं व्यवसायिक क्षेत्रों की नहीं हुई जांच
शहर के विभिन्न क्षेत्रों में तीन सौ वर्ग मीटर एवं इससे ज्यादा के एरिया वाले बने निर्माणों की संख्या बहुतायात है। हालांकि कुछ भवनों में यह सिस्टम केवल दिखावे के लिए लगे हैं, लेकिन इसमें जल संग्रहण की स्थिति नगण्य है। इसमें शहर के सुगन सिंह सिंह सर्किल एरिया से लेकर मूण्डवा चौराहा, गांधी चौक एवं दिल्ली दरवाजा क्षेत्र एवं मानासर चौराहा आदि क्षेत्रों में नजर डाले जाने पर ज्यादातर जगहों पर यह सिस्टम नजर ही नहीं आए।
नहीं लेते है भवन की पूर्णता का प्रमाण-पत्र
यूं तो आमजन स्वयं का घर निर्माण करने के लिए नगर परिषद से निर्माण स्वीकृति लेता है। इसमें सभी तरह की खानापूर्ति की जाती है। लेकिन घर मकान या व्यवसायिक परिसर का निर्माण होने के बाद नगर परिषद से पूर्णता प्रमाण पत्र कोई नहीं लेता है। जबकि नियमानुसार पूर्णता प्रमाण पत्र लेना भी आवश्यक होता है। प्रावधान के अनुसार इसकी एनओसी लिए बिना पेयजल आदि के कनेक्शन जारी नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन इसके बाद भी इसकी पालना नहीं की जा रही है।
क्या है वाटर हार्वेस्टिंग का यह है उद्देश्य
‘जल संचयन’शब्द का अर्थ आम तौर पर किसी विशेष क्षेत्र (जलग्रहण क्षेत्र) से वर्षा-जनित अपवाह को एकत्रित करना है, ताकि मानव, पशु या फसल के उपयोग के लिए जल उपलब्ध कराया जा सके। इस प्रकार एकत्रित पानी का उपयोग या तो तुरंत किया जा सकता है। जैसे कि सिंचाई के लिए, या बाद में उपयोग के लिए जमीन के ऊपर के तालाबों या भूमिगत जलाशयों, जैसे कि कुण्ड या उथले जलभृतों में संग्रहित किया जा सकता है।
यदि रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सरकारी बिल्डिंगों और घरों में बनाए जाते तो लाखों लीटर पानी जमीन में उतारकर बचाया जा सकता था। जानकारों के अनुसार 1000 स्क्वेयर फीट की एक छत में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इंस्टाल होता हैं तो वर्षाकाल के दौरान 50 से 60 हजार लीटर पानी बचाया जा सकता है। वर्षाकाल में भूमिगत जलसंरक्षण नहीं होने की वजह से ही हर साल गर्मी शुरू होते ही जलस्तर में गिरावट होना शुरू हो जाता हैं और अप्रेल-मई में जलस्त्रोत भी सूख जाते हैं।
इनका कहना है…
रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्रावधानों की पालना कराई जाएगी। इसके लिए विशेष रूप से विभिन्न क्षेत्रों में टीम बनाकर जांच कराई जाएगी।
गोविंद सिंह भींचर, कार्यवाहक आयुक्त एवं उपखण्ड अधिकारी नागौर