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परिवार के माहौल को देखकर सीखते हैं बच्चे

नागौर. आधुनिकता की ओर बढ़ते इस युग में बच्चे अपनी संस्कृति से मुंह मोडऩे लगे हैं। मां-बाप के पास बच्चों लिए समय नहीं है। इस कारण कुछ बच्चे संगत के कारण गलत रास्तों पर चले जाते हैं।

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babulal tak

Nov 15, 2016

karyashala

नागौर. आधुनिकता की ओर बढ़ते इस युग में बच्चे अपनी संस्कृति से मुंह मोडऩे लगे हैं। मां-बाप के पास बच्चों लिए समय नहीं है। इस कारण कुछ बच्चे संगत के कारण गलत रास्तों पर चले जाते हैं। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए रोजाना कुछ समय निकाले। उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान दें। ये बातें चिन्मय मिशन के आचार्य विशारद चैतन्य ने सोमवार को सेठ किशनलाल कांकरिया राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में चिन्मय मिशन, राजस्थान पत्रिका व लॉयन्स क्लब के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘पेरेंटिंग एक कला’ कार्यशाला में कहीं। आचार्य का कहना था कि बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए पहले खुद माता-पिता को यह कला सीखनी पढ़ेगी। छोटे बच्चों को बचपन में सीखने की अलग से जरूरत नहीं होती। वे तो परिवार के माहौल से ही सीख लेते हैं। आपके परिवार में जैसा बढ़े लोग बच्चों के सामने करते हैं वैसा ही वो सीखते हैं।

संरक्षण के नाम पर कर रहे कमजोर

आचार्य ने कहा कि आज शहरी क्षेत्रों में देखा जा रहा है कि महिलाएं बच्चों के पालन पोषण के नाम पर उन्हें कमजोर कर रही हैं। संसाधनों के नाम पर प्राकृतिक माहौल से दूरी बनाने के कारण उनकी सहन शक्ति खत्म होती जा रही है। देखने में आया है कि बच्चों को जरा सा डांटने पर वे इस प्रकार रूठ जाते हैं जैसे मानो उनका ईगो हर्ट हुआ हो। बात-बात पर गुस्सा कर बैठते हैं यह सब हमारी परवरिश का ही नतीजा है। बचपन में कुछेक माता-पिता बच्चों की सभी जिद्द पूरी करते हैं। इससे उसकी आदत फिर वैसी ही हो जाती है, यदि बच्चे की बात नहीं मानी तो वह गुस्सा करेगा या रूठ कर बैठ जाएगा। बच्चे के पालन-पोषण में लापरवाही बरतना मां-बाप को ही भारी पड़ता है।

मां-बाप व गुुरु का अधिकार

उन्होंने मां-बाप व गुुरु के अधिकार के संबंध में कहा कि पिता पुत्र को गले लगाकर उसका अभिनन्दन कर सकते हैं। लेकिन पुत्र ऐसा नहीं कर सकता। इस तरह गुरु शिष्य को गले लगा सकता लेकिन शिष्य गुरु को गले लगाकर अभिनन्दन नहीं कर सकता। इसी प्रकार पिता बेटे के कंधे पर हाथ रखकर उससे दोस्त जैसा व्यवहार कर सकता है, लेकिन पुत्र के पास यह अधिकार नहीं होता कि वह अपने पिता के कंधे पर हाथ रखे। उन्होंने बताया कि ५ या ८वीं कक्षा पास करने के बाद ही बच्चे का सबकुछ तय नहीं हो जाता। कोई भी बच्चा भविष्य में कुछ भी कर सकता है।

ये रहे मौजूद

कार्यक्रम के प्रारम्भ में चिन्मय मिशन के रोहित जैन ने मिशन के कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। राजस्थान पत्रिका, नागौर के संपादकीय प्रभारी रुद्रेश शर्मा ने आचार्य का स्वागत किया। लॉयन्स क्लब अध्यक्ष मुरली मनोहर सोलंकी ने आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया। चिन्मय मिशन की याचना जैन ने बच्चों व माता-पिता के सम्बंधों को मधुर बनाने सम्बंधी पुस्तकों की स्टॉल लगाई। इस मौके पर लॉयन्स क्लब के पूर्व प्रांतपाल जेठमल गहलोत, कोषाध्यक्ष नितिन मित्तल, जावेद गौरी, मधु सोनी, संतोष सोलंकी, भारत विकास परिषद के प्रांतपाल नृत्यगोपाल मित्तल, एनएम जैन, नागौर विकास समिति अध्यक्ष देवकिशन राठी, प्रवीण बांठिया, दीपक चौहान, विष्णु चाण्डक, राजेन्द्र टाक, प्रमिल नाहटा, नीलम मित्तल, डॉ. सुनीता गोदारा, श्यामसुन्दर चाण्डक, महेन्द्र सोनी, मुरलीधर सोनी, सुरेन्द्र भाटी, जेपी माहेश्वरी, कांकरिया स्कूल के व्याख्याता शिव शंकर व्यास, महेश ओझा आदि मौजूद थे।