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National Library Day: 99 साल का सफर तय कर चुका ये पुस्तकालय, 1955 में हुई थी शुरुआत

National Library Day: वक्त बीतता चला गया, लेकिन पुस्तकालयों की पहचान कम नहीं हुई। जमाना सोशल मीडिया और इंटरनेट का आ गया, लेकिन पुस्तकालयों में अध्ययन की रुचि कम नहीं हो रही। आज भी सैकड़ों लोग पुस्तकालयों में पहुंचकर ही तैयारी कर रहे।

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नागौर. National Library Day: वक्त बीतता चला गया, लेकिन पुस्तकालयों की पहचान कम नहीं हुई। जमाना सोशल मीडिया और इंटरनेट का आ गया, लेकिन पुस्तकालयों में अध्ययन की रुचि कम नहीं हो रही। आज भी सैकड़ों लोग पुस्तकालयों में पहुंचकर ही तैयारी कर रहे। इसी का परिणाम माने कि अब अध्ययन के लिए भी शहर ही नहीं बल्कि गांव-कस्बों में लाइब्रेरी का प्रचलन हो चुका।

नागौर शहर की बात करें तो यहां गांधी चौक में करीब 68 साल पहले पुस्तकालय की शुरुआत हुई। इसका नाम नागौर पुस्तकालय रखा गया। अभी यहां 41 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह बताया। इसी प्रकार क्षेत्र में शिक्षानगरी के रूप में पहचान बना चुकी कुचामन सिटी में 99 वर्ष पहले भी शहरवासी शिक्षा का महत्व समझते थे, यहीं कारण रहा कि कुचामन नवयुवक मंडल ने श्रीकुचामन पुस्तकालय की स्थापना की। आज पुस्तकालय 99 वर्ष का हो गया। पुस्तकालय अध्यक्ष नटवर वक्ता के अनुसार वर्ष 1924 में शहर के नवयुवकों ने शाहजी की धर्मशाला में ‘कुचामन नवयुवक लाइब्रेरी’ के नाम से पुस्तकालय की शुरुआत की। उस समय समाचार पत्र मुश्किल से उपलब्ध होते थे। कोलकता, अहमदाबाद, मुम्बई, नागपुर से आने वाले प्रवासी वहां से अपने साथ पुराने अखबार लाकर पुस्तकालय को उपलब्ध कराते थे। उन समाचार पत्रों को लोग बढ़ी रुचि से पढ़ते थे। वर्ष 1930 में पुरानी धान मण्डी के एक कमरे से इस पुस्तकालय का संचालन शुरू किया गया।

1936 में श्रीकुचामन पुस्तकालय नाम से हुआ पंजीकृत
पुस्तकालय के लिए 1936 में बड़े भवन की आवश्यकता महसूस होने पर सेठ झूथालाल वाहेती ने जमीन खरीद कर वर्तमान भवन को मूर्तरूप दिया और 1938 में इसके संचालन के लिए एक मंजिला भवन बनाकर समाज को सुपुर्द किया। फिर दूसरी मंजिल का निर्माण सन् 1991 में करवाया गया। पुस्तकालय में रोजाना औसतन 35 पाठक पुस्तकें लेते एवं जमा कराते थे और 45 पाठक पुस्तकालय में बैठकर पत्र एवं पत्रिकाएं पढ़ते थे। 1960-70 के दशक में राजस्थान पत्रिका लोकप्रिय अखबार हो गया। जिसने आपातकाल का चुनौती पूर्ण समय निर्भयता से स्वीकार किया। 1970 के दशक में यहां दिन में तीन बार रेडियों व लाउडस्पीकर से समाचार प्रसारण की व्यवस्था की गई।
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शहरवासी देते थे पुरानी पुस्तकें
कुचामन शहरवासियों ने पुरानी पुस्तकें पुस्तकालय को उपलब्ध कराई। दोनों विश्व युद्ध के इस मध्य काल में हिन्दुस्तान भी स्वतंत्रता संग्राम और साम्प्रदायिक वैमनस्य के ज्वर से जूझ रहा था। समाचार पत्रों में इससे जुड़ी खबरें जानने की उत्सुक्ता लोगों को पुस्तकालय तक लाती थी। लोग दिन में अपना काम करते और रात्रि में पुस्तकालय में लालटेन और पैट्रोमेक्स की रोशनी में खबरें पढ़ते थे।

वक्त के साथ कर रहे अपडेट
नागौर पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1955 में की गई थी। वास्तव में वहां पहले से ही ‘नागौर पुस्तकालय’ नाम से एक पुस्तकालय था। जिसे कुछ स्थानीय लोगों ने शुरू किया था। अब पुस्तकालय में एक मंजिला इमारत जिसमें दो स्टैक रूम, रीडिंग रूम, चिल्ड्रन कॉर्नर और कार्यालय बना दिए। पुस्तकालय में अभी 41 हजार से ज्यादा पुस्तकें बताई।

इनका कहना
प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने व ज्ञानवर्धन के लिए श्रीकुचामन पुस्तकालय मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा। हम नियमित पुस्तकालय जाते थे। वहां कम्पीटिशन की पुस्तकों के साथ धार्मिक पुस्तकों व समाचार पत्रों से ज्ञान मिला।
सुरेश कुमार डबरिया, कुचामन निवासी , डीवाईएसपी, बाड़ी, धौलपुर
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वर्तमान में युवा मोबाइल का सहारा लेकर अध्ययन कर रहे, लेकिन जो ज्ञान पुस्तकों, समाचार पत्रों व पुस्तकालय में मिलता है वो मोबाइल से नहीं मिलता है। मेरी सफलता में कुचामन पुस्तकालय का अहम योगदान है। प्राइमरी शिक्षा से ही मैं पुस्तकालय जाने लग गया था। मुझे सफलता मिली तब तक नियमित पुस्तकालय में अध्ययन किया।
जे.एन. कांसोटिया, कुचामन निवासी, अतिरिक्त मुख्य सचिव, वन विभाग (उद्यानिकी), मध्यप्रदेश सरकार

विद्यार्थी अध्ययन के लिए सभी पुस्तकें नहीं खरीद सकतें। पुस्तकालय में सभी तरह की पुस्तकें मिलती है। इसलिए विद्यार्थियों को पुस्तकालय में ज्यादा से ज्यादा पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। कुचामन पुस्तकालय में पुस्तकों का भण्डार है। प्रतियोगी परीक्षा के लिए मैनें भी पुस्तकालय की पुस्तकों का अध्ययन किया है।
प्रिंयका कुमावत, कुचामन निवासी, पुलिस उप अधीक्षक, जैसलमेर (ग्रामीण)