स्टेशन पर लावारिस मिला था अर्जुन
2007 में परिवार से बिछड़कर इटारसी रेलवे स्टेशन पर लावारिस हालत में मिले छह साल के बच्चे को सिर्फ अपना नाम याद था। तुतलाती जुबान में उसने जीवोदय संस्था के सदस्यों को अपना नाम अर्जुन ठाकुर बताया था। बाकी कुछ याद नहीं था। रेस्क्यू करने के बाद वह 2016 तक जीवोदय संस्था में ही रहा। यहां रहकर पढ़ाई की। जीवोदय संस्था की सिस्टर क्लारा ने उसे मां की ममता दी। यही कारण है कि अर्जुन आज भी सिस्टर क्लारा को अपनी मां मानते हैं।
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ओलंपिक में पदक जीतने का सपना
अर्जुन ने साल 2008 से सॉफ्टबॉल खेलना शुरू किया और 5 नेशनल व एक इंटरनेशन अवॉर्ड जीता। खेल के उत्कृष्ट प्रदर्शन की वजह से साल 2015 में अर्जुन का चयन बुंदेलखंड एकेडमी में हुआ। अर्जुन ने बताया कि ओलंपिक में देश के लिए मेडल लेना उसका सपना है। अर्जुन को जब पता चला कि सॉफ्टबॉल ओलंपिक में शामिल नहीं है, तो सॉफ्टबॉल छोड़कर शूटिंग को अपनाया। साल 2016 में भोपाल एकेडमी में शूटिंग के लिए ट्रायल दिया। चयन होने के बाद शूटिंग में हाथ आजमाया, शूटिंग में अर्जुन ने 13 मेडल जीते हैं, इनमें 5 नेशनल और 2 इंटरनेशनल गेम्स के मेडल भी शामिल हैं।