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5 महीने से जाम हैं बसों के पहिए, आम आदमी परेशान

-घाटे के बाद भी ऑपरेटर बसें चलाने को तैयार नहीं

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पांच महीने से नहीं चल रहीं बसें

पांच महीने से नहीं चल रहीं बसें

नरसिंहपुर. जिले में बसों के पहिए करीब 5 महीने से जाम हैं। एक भी बस नहीं चली। पहले कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के कारण सरकार की ओर से बंदिश रही। अब बस ऑपरेटर हैं कि बसें चलाने को तैयार नहीं। इसका खामियाजा आम नागरिकों को उठाना पड़ रहा है।

बता दें कि बस सेवा ही जिले की लाइफ लाइन है। ये बात बस ऑपरेटर भली भांति जानते हैं, बावजूद इसके वो बसें चलाने को तैयार नहीं हैं। नरसिंहपुर बस एसोसिएशन चार प्रमुख मांगों पर अड़ा है। ये प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं...

1-लॉकडाउन की अवधि में सभी ऑपरेटरों का रोड टैक्स माफ किया जाए
2-अगले दो-तीन माह तक उनसे किसी तरह का टैक्स न लिया जाए
3-यात्री किराए में 60 फीसदी की बढ़ोतरी की जाए
4-दिल्ली राज्य की तर्ज पर बसों के लिए खासतौर से डीजल पर वैट कम किया जाए।

ऑपरेटरों का कहना है कि इन मांगों की पूर्ति हुए बगैर बसों का संचालन करना संभव नहीं है। इसके अलावा ऑपरेटर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा लगाई गई दो प्रमुख शर्तों को भी अव्यावहारिक बता रहे हैं। इसके अनुसार बसों में हैंड सैनिटाइजर रखना होगा, जो यात्री बिना मास्क पहने मिलेंगे, उनके हिस्से का जुर्माना ऑपरेटरों को भरना पड़ेगा।

बता दें कि नरसिंहपुर बस एसोसिएशन के अंतर्गत जिला परिवहन विभाग में छोटी-बड़ी 500 बसें पंजीकृत हैं। ये बसें जिले के भीतर और सागर, सिवनी, छिंदवाड़ा, नागपुर, मंडला जैसे रूटों पर 20 मार्च के पहले तक संचालित होती थीं। प्रत्येक बस से प्रतिदिन ऑपरेटर को सभी खर्चा निकालने के बाद 800 से 1000 रुपये की आय होती थी। एसोसिएशन के अनुसार लॉकडाउन के बाद बसों का संचालन भले ही बंद हो गया हो लेकिन प्रदेश सरकार ने रोड समेत विभिन्न टैक्स माफ नहीं किए हैं। कई बसों का फिटनेस सर्टिफिकेट भी खड़े-खड़े समाप्त हो गया है। ऐसे में नए सिरे से बसों का नियमित संचालन तभी संभव हो पाएगा, जब सरकार राहत देने की पहल करे। अन्यथा की स्थिति में कोई भी ऑपरेटर भारी-भरकम नुकसान उठाकर बसों का संचालन करने की स्थिति में नहीं है।

ऑपरेटरों के अनुसार भले ही सरकार ने उन्हें बसों में पूरी क्षमता के साथ यात्रियों को बैठाने की अनुमति दी हो लेकिन बस संचालन इतना आसान नहीं है। उनके अनुसार 20 मार्च से लगे लॉकडाउन, फिर अनलॉक के दौरान बसें जहां की तहां खड़ी हैं। खड़े-खड़े लगभग सभी बसों की बैटरी डिस्चार्ज हो चुकी हैं। कई बसों के पहिए खराब हो गए हैं। कुछ ऐसी बसें हैं जिनका बीमा भी खत्म हो चुका है। बसों के इंजन जाम हो चुके हैं। ऑपरेटरों के अनुसार प्रत्येक बस को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्हें प्रारंभिक रूप से तकरीबन 50 हजार रुपये का खर्चा आना तय है। ये राशि बिना सरकारी स्तर पर राहत मिले बगैर ऑपरेटर द्वारा उठाना संभव नहीं है।