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मानव को जीना रामायण से एवं मरना श्रीमद्भागवत से सीखना चाहिए : नित्यानंद जी

शर्मा डेयरी में भागवत कथा का समापन

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Bhagwat Katha

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गाडरवारा। स्थानीय शर्मा डेयरी प्रांगण में विगत सात दिनों से चल रही श्रीमद्भागवत कथा में अंतिम दिवस सदाशिव स्वामी नित्यानंद गिरी जी महाराज ने भगवान के विवाह की कथा का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह हुए। जिनमें आठ भगवान की पटरानियां थी यह अष्ट पटरानियां और कोई नहीं अष्टधा प्रकृति ही पटरानियों के रूप में भगवान की सेवा में उपस्थित हुई। और जो 16 हजार पत्नियां हैं, वे उपासना कांड के 16 हजार मंत्र भगवान की सेवा में उपस्थित हुए। स्वामी जी ने सुदामा जी के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि जो लोग सुदामा को गरीब कहते हैं वह मूर्ख हैं। सुदामा जी तो अयाची ब्राह्मण थे, सुदामा जी संतोषी थे। उनके पास संतोष धन था, भक्ति का धन था। कहते हैं तुलसी या संसार में धनवंता नहीं कोई, धनवंता ते ही जानिए जाके राम नाम धन होई,, सुदामा जी भगवान के अनन्य भक्त थे, यहां तक कि पत्नी सुशीला के कहने पर भगवान से मिलने पहुंचे तब भी भगवान से कुछ नहीं मांगा। स्वामी जी ने कहा कि भागवत की कथा मुक्ति की कथा है। मानव को जीना रामायण से एवं मरना श्रीमद्भागवत से सीखना चाहिए। जिससे फिर किसी गर्भ में वास न करना पड़े।
बच्चों को बताया योग का महत्व
इसके पहले 12 जनवरी को ही प्रात: काल बीटीआई स्कूल प्रांगण में स्वामी जी ने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को जीवन कैसे तनाव मुक्त बने एवं बच्चे कैसे अपने बड़ों का सम्मान करें और विद्या अध्ययन के साथ अपने धर्म के अनुसार भगवान की आराधना करें। स्वामी जी ने योग के महत्व को बताते हुए कहा योग से तन और मन दोनों स्वस्थ्य रहते हैं।