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शंकराचार्य स्वरूपानंद ने कथित शंकराचार्यों पर की ये टिप्पणी…

-बोले, प्रमाणित शंकरारचार्यों को ही उस रूप में स्वीकार करना चाहिए

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शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

नरसिंहपुर/ गोटेगांव. द्वारकाशारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कथित शंकराचार्यों पर तल्ख टिप्पणी की है। उनका कहना है कि आजकल नकली शंकराचार्य बहुत बनाए जा रहे हैं। ऐसे में प्रमाणित शंकराचार्यो को ही शंकराचार्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

परमहंसी गंगा आश्रम में चातुर्मास कर रहे शंकराचार्य ने बताया कि साक्षात भगवान दक्षिणामूर्ति ही कालटी में आर्याम्बा और शिवगुरु के पुत्र रूप में अवतरित हुए तो ऐसे साक्षात शिव अवतार की पीठ पर विराजमान होनेवाला व्यक्ति भी श्रुति-महावाक्य के ज्ञान से संपन्न होना चाहिए। कहा कि अपने भौतिक कार्यो की पूर्ति के लिए नकली शंकराचार्यो को खड़ा किया जा रहा है। ऐसे ही आरएसएस से जुड़े लोग कहते है कि जो भारत मे जन्म लेता है वह हिंदू है लेकिन यह व्याख्या सनातन धर्म को मान्य नही है। हमारा मानना है कि जो वेद-शास्त्र को मानता है वही हिंदू है, जो प्रस्थानत्रयी आदि शास्त्र का पठन-पाठन नही जानता हो और उसको जीवन में सार्थक नही करता हो वह शंकराचार्य हो भी जाए तो अमान्य है। गुरु वही होता है जो ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हो। ऐसे में सन्यास की दीक्षा का अधिकारी ब्राह्मण माता-पिता से उत्पन्न पुत्र ही हो सकता है।

चातुर्मास अनुष्ठान व्रत के दौरान वेदांत वर्ग में विद्घानों को पढ़ाते हुए कहा कि केवल ब्रह्म ही नित्य है। ब्रह्म को छोड़कर सभी वस्तु अनित्य है। ब्रह्म एक अद्वितीय अखंड है उसी से जगत का निर्माण हुआ है। ब्रह्म से आकाश फिर आकाश से वायु निर्मित हुई। वायु से अग्नि और अग्नि से जल तथा जल से पृथ्वी बनी। ब्रह्म ही इन सब रूपों में है। वह एकमेवाद्वितीय है। ब्रह्म अर्थात वृहद् जो सबसे बड़ा है। बड़ा भी तभी हो जब कोई दूसरा न हो, यानी सबसे बड़ा, महान कोई है तो वह ब्रह्म है, वही जगत के रूप में प्रतीत होता है। शंकराचार्य ने कहा कि अलप को दूसरी वस्तुओं की तृष्णाएं रहती है जबकि ब्रह्म वृहद है। केवल ब्रह्म को जानने मात्र से सबकुछ जान लिया जाता है। ऐसे में ब्रह्म का ही अस्तित्व है बाकी सब मिथ्या है। जीव को अपने मूल स्वरूप ब्रह्म को जान लेना चाहिए यही वेदांत का सार है।