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गांधी जयंती पर विशेष-यहां जिंदा है गांधी टोपी की परंपरा

locationनरसिंहपुरPublished: Oct 01, 2020 08:40:09 pm

Submitted by:

ajay khare

इस जिले से महात्मा गांधी की दो बड़ी ऐतिहासिक यादें जुड़ी हुई हैं। जिनमें से एक को यहां के एक सरकारी स्कूल के बच्चों ने अभी तक अक्षुण्य रखा है। जबकि दूसरी याद उनके बरमान आगमन से जुड़ी है।

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gandhi topi

नरसिंहपुर. इस जिले से महात्मा गांधी की दो बड़ी ऐतिहासिक यादें जुड़ी हुई हैं। जिनमें से एक को यहां के एक सरकारी स्कूल के बच्चों ने अभी तक अक्षुण्य रखा है। जबकि दूसरी याद उनके बरमान आगमन से जुड़ी है।गांधी टोपी अपनी एक खास पहचान रखती है, नेताओं के सिर से भले ही गांधी टोपी गायब हो गई है पर यहां के सिंहपुर बड़ा गांव के शासकीय माध्यमिक बालक शाला के बच्चे अभी भी आधुनिकता के इस दौर में गांधी टोपी लगाकर राष्ट्रपिता की यादों को अक्षुण्य रखे हुए हैं। इस गांव में 3 अक्टूबर 1945 को महात्मा गांधी आए थे और इस स्कूल भवन में ठहरे थे। उन्होंने दीवार पर एक संदेश भी लिखा था जो अब मिट चुका है।
गांधी के यहां आगमन के बाद से गांधी के आदर्शों और उनके सिद्धांतों पर चलने के संकल्प के साथ यहां गांधी टोपी लगाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी। लगभग 175 साल पुराने इस स्कूल में अभी तक बच्चे गांधी टोपी लगाकर स्कूल आने की परंपरा कायम है। बच्चे बापू के प्रिय भजन रघुपति राघव राजाराम नियमित का भी प्रार्थना के समय गायन करते हैं।
जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित सिंहपुर बड़ा गांव के शासकीय माध्यमिक बालक शाला में पढ़ाई कर चुके विजय शर्मा ने बताया कि ५० साल पहले उन्होंने स्वयं इसी स्कूल से पढ़ाई की है और तब वे गांधी टोपी लगाकर आते थे। १८४४ में स्थिापित लगभग 175 साल पुराने इस स्कूल में एक उद्योग कक्ष भी था, जिसमें विद्यालय के उपयोग में आने वाली सामग्री उदाहरण के तौर पर टाट, पट्टी, टोपी आदि बनाई जाती थी, इस टोपी को छात्र लगाते थे और बैठने के उपयोग में आने वाली पट्टी भी बनती थी। चरखा आदि के अवशेष अभी भी यहां की एक लकड़ी की अल्मारी में रखे हुए हैं।

जब मल्लाह ने पैर पखारने के अनुरोध के साथ नर्मदा पार कराया
जिले में महात्मा गांधी से जुड़ा दूसरा संस्मरण बरमान से संबंधित है। 1 दिसंबर 1933 को महात्मा गांधी नरसिंहपुर जिले के बरमान घाट पहुंचे थे। उन्हें नाव से नर्मदा पार कर अनंतपुरा देवरी जिला सागर जाना था। यहां शुकल मल्लाह ने उनसे अनुरोध किया कि वे पहले पांव पखारने का अवसर दें तब वह नर्मदा पार करायेगा।
गांधी दुविधा में थे कि पुण्य सलिल नर्मदा जिसके दर्शन मात्र से पुण्य प्राप्त होता है उस जल से कैसे पांव पखारने दें। इसका समाधान निकाला गया। गांधी ने पहले तट पर नर्मदा की पूजा अर्चना की फिर मल्लाह ने पांव पखारे और गांधी को नाव में सवार कर पार लगाया। महात्मा गांधी का यहां आगमन हरिजन दौरा को लेकर हुआ था। जबलपुर से वह पैसेंजर ट्रेन से करेली आए थे करेली से कार से नर्मदा तट बरमान पहुंचे थे। 1933 में उस समय नरसिंहपुर से सागर जाने के लिए पुल नहीं था, बल्कि चौड़ी पाट वाली नर्मदा को पार करने सिर्फ नाव का ही सहारा था। गांधी को नर्मदा पार कराने वाले शुकल मल्लाह का सितंबर 1991 में निधन हो गया। गांधी के साथ जबलपुर से उस वक्त सेठ गोविंददास और ब्योहार राजेन्द्र सिंह भी आए थे। सेठ गोविंददास ने अपनी आत्मकथा में बरमान तट पर मल्लाह के पैर पखारने के संस्मरण का उल्लेख किया है।
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