
वोटर अधिकार यात्रा में बहन प्रियंका के साथ दिखे थे राहुल गांधी। (फोटो सोर्स - कांग्रेस FB pg)
बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस पार्टी बिना स्टेट कमेटी के चुनावी तैयारियों में जुटी है। सूत्र बताते हैं कि कमेटी आज से नहीं बल्कि 8 साल से नहीं बनी है। 2015 में कमेटी बनाई गई थी, जो दो साल चली थी। उस समय पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर अशोक चौधरी को बिठाया था। इसके बाद 3 प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सूत्रों के मुताबिक मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम मार्च में बनाए गए हैं लेकिन अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया है। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि स्टेट कमेटी पार्टी की मजबूत नींव होती है, जो पार्टी को जमीनी स्तर पर जनता से जोड़ती है और राजनीतिक रणनीतियों को लागू करती है। सूत्र बताते हैं कि स्टेट कमेटी के साथ-साथ प्रदेश इलेक्शन, कैंपेन और पॉलिटिकल अफेयर्स जैसी महत्वपूर्ण कमेटियां भी मौजूद नहीं हैं। ये कमेटियां चुनाव के लिए रणनीति बनाने और पार्टी की विचारधारा को वोटरों तक पहुंचाने में महती भूमिका निभाती हैं।
पाटलिपुत्र विवि की राजनीतिक विज्ञान की प्रो. रचना बताती हैं कि प्रदेश कमेटी राज्य में पार्टी की गतिविधियों के संगठन और प्रबंधन की जिम्मेदारी निभाती है। PCC का प्रमुख पद अध्यक्ष का होता है, साथ ही इसमें कई अन्य पदाधिकारी भी होते हैं, जो राज्य में पार्टी के कामकाज का ध्यान रखते हैं।
स्टेट कमेटी का मुख्य काम पार्टी की गतिविधियों का जिला और ब्लॉक स्तर पर तालमेल करना है। यह पार्टी के लिए जनसमर्थन जुटाने के लिए अभियान, रैलियां और अन्य कार्यक्रम आयोजित करती है। यह अन्य राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के साथ गठबंधन बनाकर चुनावी संभावनाओं को मजबूत करने का काम भी करती है।
कांग्रेस प्रवक्ता व पूर्व एमएलए अजय कुमार बताते हैं कि हरेक स्टेट कमेटी में एक कार्य समिति होती है, जिसमें लगभग 20 सदस्य होते हैं। इनमें से अधिकतर सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। राज्य पार्टी का नेता प्रदेश अध्यक्ष कहलाता है, जिसे राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनते हैं। जिन सदस्य को राज्य की विधानसभा में निर्वाचित किया जाता है, वे विधायिका दल के सदस्य बनते हैं और विधानसभा में पार्टी का नेतृत्व करते हैं।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 8 साल से बिना कमेटी पार्टी का चलना, उसके भीतर कमजोर निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है। इसका सीधा असर जमीनी स्तर पर पार्टी की पहुंच और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ता है। अगर कार्यकर्ताओं में जोश नहीं होगा तो चुनावी नतीजों पर उसका असर पड़ना लाजिमी है।
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Updated on:
18 Sept 2025 10:51 am
Published on:
17 Sept 2025 04:14 pm
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